मुनिम दिन पर दिन लखपति हो रहा था। उसने भी अपना एक सहायक रख लिया था । मुनिम अपने लिए सेठ के खाते में अलग से जितने खाने की जरुरत होती बुला लेता था और वह सब खा जाता था। अपने सहायक के भूखे होने पर भी वह उसके लिए कुछ नहीं छोड़ता था।
इसके पीछे मुनिम की यह सोच थी कि मालिक का झुठा खाउॅगा तो मैं भी मालिक जैसा ईमानदार हो जाउॅगा और मेरी दो नम्बर की कमाई व बचत खत्म हो जाएॅगी । वह सहायक के लिए इस लिए नहीं छोड़ता था कि यदि वह उसका झुठा खाएगा तो सहायक बेईमान हो जाएगा और मेरी कमाई हड़पने लगेगा । इसी तरह सेठ की यह सोच थी कि मेरा मुनिम भी ईमानदार हो इस लिए उसके लिए वह जानबुझकर ज्यादा खाना लेकर थाली में छोडता था। सिर्फ ईमानदार आदमी ही ईमानदार साथी नही चाहता वरन बेईमान आदमी भी ईमानदार साथी चाहता है ।
हेमंत उपाध्याय 9425086246/9424949839
व्यंग्यकार एवं लघुकथाकार कवि एवं ललित निबंधकार
साहित्य कुटीर,गणगौर साधना केन्द्र पं0रामनारायण उपाध्याय वार्ड खण्डवा म0प्र0450001
gangourknw@gmail.com