सज्जनता एवं सादगी की प्रतिमूर्ति राजेन्द्र बाबू के जीवन के अनछुए पहलू—भाग 1

rajendra-prasadप्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म3दिसम्बर1884को हुआ था। |पूरे देश में उनकी लोकप्रियता के कारण उन्हें देशरत्न राजेन्द्र बाबू के नाम से पुकारा जाता था। स्वाधीनता से पहले जुलाई सन् 1946 में आजाद भारत का संविधान बनाने के लिए गठित संविधान सभा का उन्हें अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। देश के गणतन्त्र बनने के संविधान ने उन्हें राष्ट्रपति निर्वाचित किया | 1952 में राजेन्द्र प्रसाद भारत के विधीवत निर्वाचितके प्रथम राष्ट्रपति बने और दस वर्षों तक यानि 1962 तक इस पद पर रहे।
जब सूची में नहीं था पहले राष्ट्रपति का नाम

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
प्रिंसिपल ने एफ.ए. में उत्तीर्ण छात्रों के नाम लिए तो राजेन्द्र प्रसाद का नाम उस सूची में नहीं था। राजेन्द्र प्रसाद एक मेधावी छात्र थे उन्हें अपने अनउत्तीर्ण होने पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन्हें अपनी एफ.ए की परीक्षा में सर्वोच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण होने का पूरा भरोसा था, इसलिए उन्होंने खड़े होकर प्राचार्य से कहा कि वे फेल नहीं हो सकते हैं इसलिए आप परीक्षा में हुए उत्तीर्ण विद्यार्थीयों की सूची को एक बार पुनः देख लें, प्रिंसिपल ने क्रोधित होकर राजेन्द्र प्रसाद से कहा कि वह फ़ेल हो गए होंगे अत: उन्हें इस मामले में तर्क नहीं करना चाहिए। राजेन्द्र का हृदय धक-धक करने लगा और वे हकलाकर घबराते हुए बोले ‘लेकिन, लेकिन सर’ क्रोधित प्रिंसिपल ने कहा, ‘पाँच रुपया ज़ुर्माना’ राजेन्द्र प्रसाद साहस कर दुबारा बोले तो प्रिंसिपल चिल्लाये और बोले ‘दस रुपया ज़ुर्माना’| राजेन्द्र प्रसाद बहुत घबरा गए। अगले कुछ क्षणों में ज़ुर्माना बढ़कर 25 रुपये तक पहुँच गया। एकाएक हैड क्लर्क ने राजेन्द्र को पीछे से बैठ जाने का इशारा किया और वे प्रिंसिपल से बोले कि सर एक ग़लती हो गई है, वास्तव में राजेन्द्र प्रसाद कक्षा में प्रथम आए हैं। राजेन्द्र प्रसाद की छात्रवृत्ति दो वर्ष के लिए बढ़ाकर 50 रुपया प्रति मास कर दी गई। उसके बाद स्नातक की परीक्षा में भी उन्हें सर्वोच्च स्थानप्राप्त हुआ। इस घटना के बाद राजेन्द्र प्रसाद ने यह जान लिया था कि आदमी को अपना संकोच को दूर कर आत्मविश्वासी बनना चाहिए।

संकलनकर्ता एवं प्रस्तुतिकरण—डा. जे.के.गर्ग
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