किस्मत की किस्मत का फैसला करने वाले ये कौन ?

नाबालिग लड़की ने जब अपनी सगाई तोड़ी तो जाति पंचायत ने लगा दिया जुर्माना
img_20161216_165341-बाबूलाल नागा-
17 साल की नाबालिग किस्मत ने जब अपनी किस्मत का फैसला करना चाहा तो जाति पंचायत आडे़ आ गई। वह अभी पढ़ना चाहती है। आखिर उसने टीचर बनने का सपना जो देखा है। उसकी मर्जी के खिलाफ परिवारवालों ने उसकी सगाई कर दी। अपनी सगाई तोड़ने के लिए उसने कई बार घरवालों को समझाया। अपने परिवार को अपना निर्णय बता दिया। आखिरकार परिवार ने किस्मत के इस साहसिक निर्णय को स्वीकार करते हुए उसकी बात मान ली। लड़के के परिजनों को सगाई तोड़ने की सूचना भिजवा दी गई। इस बात पर लड़के के परिजनों ने जाति पंचायत बुलाई। जाति पंचायत को किस्मत का यह फैसला नागवार लगा। कानून को ताक में रख जाति पंचायत ने अपना फैसला सुना दिया। सगाई तोड़ने पर किस्मत के पिता पर 1.11 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। किस्मत के परिवार ने भी तय कर लिया है। चाहे परिणाम कुछ भी हो, जुर्माना तो नहीं चुकाएंगे। और ना ही किस्मत अपने निर्णय से पीछे हटेगी। भीलवाड़ा जिले के बनेड़ा क्षेत्र की सालरिया पंचायत के खारोलिया का खेड़ा गांव में हाल में यह मामला सामने आया जहां जाति पंचायत के एक तुगलकी फरमान का शिकार एक परिवार हुआ है।
इस पूरे मामले में जाति पंचायत अपने फैसले पर कायम है। मामले में लड़के का पक्ष लिया जा रहा है। कहा जा रहा है वैष्णव समाज में लड़कियों की कमी है। जिस लड़के के साथ किस्मत की सगाई हुई थी वह गरीब परिवार से है। उसकी उम्र भी 22 साल की है। ऐसे में अब सगाई तोड़ने के बाद उसे दूसरी लड़की मिलना मुश्किल हो जाएगा।
पड़ती है दोहरी मारः-अगर कोई फिर से पंचायत बुलाता है तो उसे 1100 सौ रुपए की फीस अलग से जमा करानी पड़ती है। साथ ही नियमानुसार पंचायत में शामिल होने वाले सभी पंचों के खाने का इंतजाम भी उसे ही करना होता है जो अतिरिक्त आर्थिक भार है। पंचायत जुर्माने के रूप में मिलने वाली कुछ राशि का उपयोग समाज के विकास में खर्च करती है जबकि कुछ राशि लड़के पक्ष को दी जाती है। सवाल है किसी कमजोर परिवार पर यूं जुर्माना लगाकर समाज का विकास करना क्या न्यायपूर्ण तरीका है।
किसी जाति पंचायत का यह मामला अकेला नहीं है। हरियाणा और पश्चिमी उŸार प्रदेश की खाप पंचायतों का रवैया छिपा नहीं है। जहां गोत्र या जाति के सवाल पर बर्बर तरीेके से प्रेमी जोड़ों पर किए गए हमले सामने आते रहे हैं। कहीं धर्म व जाति के नाम पर फतवे व आदेश जारी होते हैं। ये संविधान से ऊपर तो नहीं है। कहीं समाज की इज्जत के नाम पर संविधान का खुल्ला उल्लंघन होता है। कहीं तो वो अपनी पसंद से शादी करने वालों को मारने का फतवा तक जारी कर देते हैं। कहीं जबरन बाल विवाह को नामंजूर कराने से रोकते हैं। कहीं ये जाति पंचायतें लोगों की जान की दुश्मन तक बन जाती है। दरअसल, हमारा देश अभी भी जाति पंचायतों के गैर संवैधानिक और अमानवीय फैसलों के साए में जी रहा है। ऐसे तमाम मामलों को इन नाजायज फैसलों से रोकने के लिए कोई असरदार कदम नहीं उठाए गए हैं। इन पंचायतोें में एक तरफ आम जनता के इंसानी हकों को छीना जाता है दूसरी तरफ तरक्की पसंद नौजवानों को सरेआम दंडित किया जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन पंचायतों में न तो औरतों की भागीदरी होती हैं और ना ही कोई सुनवाईं। ये जाति पंचायतें पुरुषों की जमात हैं।
सवाल यह भी है कि जाति पंचायतों की बैठकें किसी बंद कमरे की बजाय खुले मैदान में होती हैं। इसके बाद भी कोई इन जातीय फैसलों की खिलाफत नहीं कर पाता। हैरानी है कि अब तक देश की सरकारों का ध्यान इन पंचायतों की तरफ क्यों नहीं गया। इनके खिलाफ अब तक कोई आदेश जारी क्यों नहीं किया गया। सरकारी तंत्र का मौन दर्शक बने रहना इस बात का संकेत है कि इसे औरतों की आजादी पसंद नहीं है। ऐसी जातीय पंचायतों पर नकेल कसने की सख्त जरूरत है।

बाबूलाल नागा
बाबूलाल नागा
किस्मत कक्षा 12वीं में पढ़ती है। परिवार में इकलौती बेटी है। दो भाई हैं। कहती है,’’ अभी मैं बालिग नहीं हूं। इसके बाद भी मेरी सगाई घरवालों ने कर दी। जिस लड़के के साथ मेरी सगाई हुई वह शिक्षित भी नहीं है। तो फिर मैं ऐसे लड़के के साथ शादी कैसे कर लूं ? मैं तो अभी पढ़कर कुछ बनना चाहती हूं। मैंने अपने माता- पिता से सगाई तोड़ने की बात की लेकिन उन्हें डर था कि अगर सगाई तोड़ दी तो जाति पंचायत जुर्माना लगा देगी। मैंने जिद की तो वो मेरी बात मान गए।

सगाई तोड़ने की दी थी सूचनाः- किस्मत वैष्णव की सगाई 15 साल की उम्र में जून 2014 में भीलवाड़ा के ही शाहपुरा के बावरिया का बोरड़ा के दौलत राम पुत्र लादूराम वैष्णव के साथ तय हुई थी। किस्मत उस वक्त सगाई को तैयार नहीं थी। बावजूद मई 2015 में सगाई का दस्तूर कर दिया। किस्मत के बार- बार इनकार करने पर माता- पिता ने उसकी बात मान ली। 6 महीने बाद लड़के के परिजनों को सगाई तोड़ने का संदेश भेज दिया। सगाई तोड़ने की सूचना 19 अक्टूबर, 11 नवंबर को रजिस्टर्ड डाक से लड़के को दी। 11 दिसंबर 2016 को डांग का बालाजी मंदिर में 56 गांव वैष्णव समाज मंडल की पंचायत बुलाई। पंचों ने सगाई तोड़ने का कारण पूछा। किस्मत के पिता ने बताया कि अभी बेटी शादी नहीं करना चाहती बल्कि पढ़ना चाहती है। पंचों ने सगाई दस्तूर में दिए गए गहने, कपड़े और 15-20 हजार रुपए क्षतिपूर्ति राशि देने की बात कही। लेकिन लड़के पक्ष के कुछ लोगों ने 2.20 लाख रुपए जुर्माना लगाने की बात रखी। पंचायत में निर्णय हुआ कि गहने लौटाने हैं इसलिए सूची बनाकर हस्ताक्षर कर लें। सीताराम ने सूची पर हस्ताक्षर कर दिए। लेकिन उस सूचि में 1.11 लाख रुपए जुर्माना राशि जोड़ दी। सीताराम ने पंचों के सामने जुर्माना नहीं भरने की बात बता दी।
हम नहीं मानंेगे फैसलाः- किस्मत के पिता सीताराम वैष्णव कहते हैं ढाई-तीन साल पहले बेटी की सगाई कर जो गलती की उसकी सजा उसे जिंदगी भर नहीं दे सकता हूं। जब तक वो पढ़ना चाहती है उसे पढ़ाऊंगा। सगाई तोड़ने पर समाज की पंचायत ने जुर्माना तो ऐसे लगा दिया जैसे मैंने कोई अपराध किया हो।
अपने फैसले पर कायम हैं पंचायतः- 56 गांव वैष्णव समाज पंचायत मंडल के अध्यक्ष सत्यनारायण अभी भी अपने इस फैसले पर कायम हैं। उनका कहना है कि यह पंचायत का निर्णय है। समाज ने कुछ नियम बना रखे हैं। अगर कोई समाज के निर्णयों के खिलाफ जाता है तो पंचायत सभी पंचों की सहमति से उस पर जुर्माना लगाने का फैसला लेती है। सगाई तोड़ने पर ही सीताराम वैष्णव पर 1.11 लाख का जुर्माना लगाया है। उनका यह भी कहना है कि हमारे लिए जाति पंचायत ही कोर्ट है। इसके बाद कानून और राजकोर्ट है। जाति पंचायत का फैसला ही सर्वमान्य है। अगर फैसला स्वीकार नहीं है तो सीताराम फिर से पंचायत बुला सकता है।

इनका कहना है-
ऐसे मामलों में जब जाति पंचायतों द्वारा पीड़िता पर ही सवाल खड़े किए जाते हैं तो उससे उसके जीवन पर नकारात्मक असर पड़ता है। जाति पंचायतों द्वारा थोपे गए ऐसे फैसले उनके हित में नहीं होते। अक्सर न्यायपालिका के समांतार जाति पंचायतों की ओर से लिए जाने वाले फैसले महिला विरोधी होते हैं। इसमें महिलाओं की भूमिका नगण्य होती है। कभी भी औरतों के हित में फैसले नहीं लिए जाते। आखिर इन जाति पंचायतों को ये किसने अधिकार दिया है कि वे ऐसे असंवैधानिक फैसले लें।- तारा अहूलवालिया, सचिव बाल एवं महिला विकास समिति, भीलवाड़ा

जयपुर में महिला सलाह एवं सुरक्षा केंद्र संचालित कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता रेणुका पामेचा का कहना है कि उन सभी जाति पंचायत पंचों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए जो इस मामले में फैसला सुनाया। उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भिजवाने की जरूरत हैं। ऐसी जाति पंचायतों के खिलाफ कठोर कानून बनाने की भी जरूरत हैं।

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