स्वामीजी के बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील । दुर्भाग्य से 1884 में विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई जिससे घर का सारा भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। घर की आर्थिक अवस्था बहुत दयनीय हो गई थी। अत्यन्त दरिद्रता में भी नरेन्द्र बड़े अतिथि-सेवी थे। वे स्वयं भूखे रह कर अतिथि को भोजन कराते स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते। स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरु रामकृष्ण परमहंसको समर्पित कर दिया | जब रामक्रष्ण परमहंस बहुत बीमार हो गये तब नरेंद्र ने अपने घर और परिवार की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिन्ता किये बिना वे गुरु की सेवा में दिन-रात संलग्न रहे। स्वामी विवेकानन्द पुरोहितवाद, धार्मिक आडम्बरवाद, कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने धर्म को मानव मात्र की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन-मनन किया था। उनका हिन्दू धर्म अटपटा, रुढीवादी एवं अतार्किक मान्यताओं मानने वाला नहीं था। स्वामीजी ने उस समय क्रांतिकारी विद्रोही बयान देते हुए कहा कि “ इस देश के तैंतीस करोड़ भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी देवताओं की तरह मन्दिरों में स्थापित कर दिया जाये और मन्दिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाये “। उनका यह आह्वान आज भी एक बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा करता है। उनके इस आह्वान को सुनकर उस समय सम्पूर्ण पुरोहित वर्ग की घिग्घी बँध गई थी। आज कोई नामी गिरामी साधु तो क्या सरकारी मशीनरी भी किसी अवैध मन्दिर की मूर्ति को हटाने का जोखिम नहीं उठा सकती।
प्रस्तुतिकरण एवं सकलंकर्ता—डा.जे. के. गर्ग
सन्दर्भ—भारत ज्ञान कोष, विभिन्न पुस्तकें, पत्र-पत्रिकायें.मेरी डायरी के पन्ने आदि
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