चीन की सत्ता से विदा होने जा रहे राष्ट्रपति हू जिंताओ ने पूर्ण रूप से सेवानिवृत्त होने का निर्णय लिया है। वह सर्वाधिक शक्तिशाली सेना प्रमुख समेत सभी पदों से इस्तीफा दे सकते हैं। उनके इस निर्णय से भावी नेता शी जिनपिंग सबसे शक्तिशाली नेता के तौर पर देश की कमान संभालेंगे।
हांगकांग के साउथ चाइना मार्निग पोस्ट अखबार ने एक अधिकारी के हवाले से कहा कि अगले महीने 70 साल के होने जा रहे जिंताओ ने पार्टी की 18वीं कांग्रेस के समापन के दिन सेना प्रमुख के पद से भी इस्तीफा देने का फैसला किया है। चीन में एक दशक में एक बार होने वाले नेतृत्व परिवर्तन को लेकर इस समय जारी सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) केअधिवेशन के समापन दिन यानी बुधवार को जिंताओ पार्टी प्रमुख और राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे देंगे। उनकी जगह मौजूदा उपराष्ट्रपति 59 वर्षीय शी जिनपिंग को औपचारिक रूप से पार्टी का महासचिव नियुक्त किया जाएगा। 57 वर्षीय उप प्रधानमंत्री ली केकियांग प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के उत्तराधिकारी होंगे। हालांकि औपचारिक रूप से सत्ता का हस्तांतरण अगले साल की शुरुआत में होगा।
विशेषज्ञ हैरान : जिंताओ के पूर्ण रूप से सेवानिवृत्ति का फैसला लिए जाने की संभावनाओं पर विशेषज्ञों ने हैरानी जताई है। उन्हें उम्मीद थी कि वह सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के अध्यक्ष का शीर्ष पद अपने पास रखेंगे। यह कमीशन 23 लाख सैनिकों वाली सेना की निगरानी करता है। जिनपिंग इस समय इसके उपाध्यक्ष हैं। कम्युनिस्ट पार्टी में पिछले दो दशक में पहली बार जिंताओ द्वारा सत्ता का स्पष्ट तरीके से हस्तांतरण देखने को मिलेगा। दस साल पहले जब जिंताओ को राष्ट्रपति चुना गया था तो उनके पूववर्ती जियांग जेमिन ने सेवानिवृत्ति के बाद दो साल तक सेना प्रमुख का पद अपने पास रखा था। ताकि पार्टी और सेना पर प्रभुत्व कायम रहे। हालांकि दुनिया के अन्य देशों में ऐसी व्यवस्था नहीं है, लेकिन चीन में है।
जियांग श्ाघाई में कथित तौर पर सीपीसी के प्रमुख हैं। उन्होंने नए नेतृत्व के चयन को लेकर जारी अधिवेशन में भी अहम भूमिका निभाई है। जिनपिंग को उनका शिष्य माना जाता है। दस साल पहले उपराष्ट्रपति बनने से पहले वह शंघाई में पार्टी प्रमुख थे।
भारत की भी है नजर : जिंताओं के पार्टी और सेना से अलग होने पर भारत निगरानी रख रहा है क्योंकि माओत्से तुंग के बाद उनकी गिनती ऐसे चीनी नेताओं में होती है जिन्होंने भारत के साथ संबंधों को संतुलित किया। साथ ही चीन की पाकिस्तान समर्थक विदेश नीति में रणनीतिक संतुलन बनाया। उन्हें भारत-चीन संबंधों को नई दिशा देने और 1962 के युद्ध के बाद संबंधों को सुधारने की दिशा में उठाए गए कदमों के लिए जाना जाता है। चीन द्वारा 2009 में जम्मू और कश्मीर के लोगों को नत्थी वीजा जारी करने पर भारत की आपत्ति के बाद यह फैसला वापस ले लिया गया था।