गिरगिट की तरह दोनों ही रंग बदलती रहती है । मौसम के अनुसार दोनों के ही खान- पान और परिधान बदल जाते है । समयानुकूल चलना भी ज़रूरी , चाहे कितनी भी हो मज़बूरी ।
कभी तबियत बेक़ाबू हो जाती है तो कभी पत्नी । बेचारा आदमी घनचक्कर बना हुआ घर और ऑफिस के साथ – साथ इनके भी चक्कर लगाता रहता है , दोनों में संतुलन बनाए रखने के लिए जीवनभर उलझा रहता है । नववर्ष की शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए मेरा तो यही संदेश है कि ख़ुश रहिए और तबियत व पत्नी दोनों का ही ध्यान रखिए । किसी ने सच कहा है – जान है तो जहान है ।
– नटवर पारीक