2.खुशी आदमी के भीतर ही होती है तथा रिलेक्स मन ही प्रगति और खुशहाली का प्रवेशद्वार है| वास्तव में सभी इन्सान और अन्य प्राणी अविनाशी पवित्र और शांती प्रिय आत्मायें हैं और परमपिता परमात्मा की संतान है , उनका कोइ रगं नहीं ना ही कोइ धर्म ना ही कोई लिंग है धर्म का चेहरा तो उनको समाज ने दिया है| याद रक्खें कोई धर्म आपस में घ्रणा और वैर करना नहीं सीखाता है | आपस में वैमनस्य फेलाने का काम तो तथाकथित धर्म के ठेकेदार ही करते हैं| बापूजी के भजन ईश्वर अल्लाह एक ही नाम, सबको सन्मति दें भगवान” का अक्षरस पालन करें | इसीलिए लिये किसी से भेदभाव नहीं करें वरन सभी को स्नेह, प्रेम और प्यार दें |
3. दूसरों के दुःखदर्द एवं पीड़ा को समझें, उनकी मदद करें, उनके दुःख एवं तकलीफों को दूर करने मै मदद करें | करुणामय बनें |संवेदनशील बने |
डा. जे. के. गर्ग