दीपक से दीपक क्यों नहीं जलाना चाहिए?

हमारे यहां दीप से दीप जले की बड़ी महिमा है। ज्ञान के प्रसार के लिए इस उक्ति का प्रयोग किया जाता है। व्यवहार में यह बिलकुल ठीक भी है। एक व्यक्ति से ही दूसरे में ज्ञान का प्रकाश जाता है और उससे आगे वह अन्य में। इस प्रकार यह सिलसिला चलता रहता है। मगर धर्म के जानकार कहते हैं कि एक दीपक से दूसरा दीपक नहीं जलाना चाहिए। हर दीपक को नई दियासलाई से जलाने की सलाह दी जाती है। सवाल ये उठता है कि यह मान्यता कैसे स्थापित हुई?
सामान्यत: हमें एक दीपक से दूसरे दीपक को जलाने में कुछ भी गलत प्रतीत नहीं होता। चाहे दीपक से जलाओ या दूसरी दियासलाई से, क्या फर्क पड़ता है? अगर हमें अधिक दीपक जलाने हैं तो यह निरी मूर्खता ही होगी कि हर दीपक को जलाने के लिए नई दियासलाई काम में लें। तो फिर धर्म के जानकार अलग-अलग दीपक को अलग-अलग जलाने की सलाह क्यों देते हैं?
बताया जाता है कि जब हम किसी दीपक को जलाते हैं तो वह अग्नि की एक इकाई होती है। जिस भी देवी-देवता के नाम दीपक जलाया गया है, वह उसी के नाम होता है। उसको शेयर नहीं किया जा सकता। यदि हम उसी दीपक से दूसरा दीपक जलाते हैं तो वह जूठन के समान हो जाता है। जब हम किसी का जूठा नहीं खाते तो एक देवता की जूठी अग्नि दूसरे को कैसे अर्पित कर सकते हैं। मान्यता है कि ऐसी जूठी अग्नि दूसरे दीपक के देवता को स्वीकार्य भी नहीं होती।
कुछ जानकार कहते हैं कि दीपक से दीपक जलाने से ऋण का भार बढ़ता है। इसके पीछे क्या तर्क है, क्या विज्ञान है, पता नहीं। हो सकता है ऐसा इसलिए माना जाता हो एक दीपक की ज्योति दूसरे दीपक के लिए उधार लेने की घटना हमारे जीवन में ऋण लेने के रूप में घटित होती हो।
प्रसंगवश इस जानकारी पर भी चर्चा कर लेते हैं। एक दियासलाई से सिर्फ एक ही सिगरेट जलाने का भी चलन है। हद से हद दो सिगरेटें जलाई जाती हैं। तीसरी सिगरेट तक के लिए दियासलाई बच जाने पर भी उसे बुझा कर नई दियासलाई जलाई जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह चलन तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा की मान्यता के कारण है। कुछ लोग बताते हैं कि इसका चलन सेना से आया। सैनिकों की मान्यता है कि लगातार एक के बाद एक सिगरेट एक ही दियासलाई से जलाने पर एक रेखा निर्मित होती है। दुश्मन को पता चल जाता है कि वहां सैनिक पंक्तिबद्ध खड़े हैं और वह आक्रमण कर सकता है।

-तेजवानी गिरधर
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