मुझे वाह ड़े सिंधी वाह के नाम से पुकारने वाला चला गया

अरविंद गर्ग। शहर के लिए जाना-पहचाना नाम। शायद ही कोई राजनेता, अफसर, पत्रकार या सोसायटी के विभिन्न तबकों से जुड़ा कोई व्यक्ति उनसे अपिरिचित हो। बेशक उनकी पहचान एक पत्रकार के रूप में थी, मगर उनकी असल पहचान थी, हरदिल अजीज इंसान के रूप में। सदैव सहयोग के तत्पर उत्साही युवक के रूप में। बेहद प्यारा शख्स। दिल का साफ। हंसमुख। अफलातून टाइप की पर्सनल्टी। यायावर व्यक्तित्व। मजाकिया स्वभाव। गुस्से से कोसों दूर। बेबाक बयानी। कोई लाग-लपेट नहीं। साफगोई। सच को सच और झूठ को झूठ कहने का माद्दा। चाहे किसी को बुरा लग जाए। मस्त मौला, इतने कि गई कई बार शर्ट के बटन ऊपर-नीचे होने का भी भान नहीं रहता था। ये थे उनके विलक्षण गुण, जिनकी वजह से उन्होंने अजमेर में अपनी खास पहचान बनाई। उनके व्यक्तित्व की जितनी तारीफ की जाए, कम है। वस्तुत: ऐसे लोग विरले ही पैदा होते हैं।
उन्होंने मेरे साथ दैनिक भास्कर से पहले दिशा दृष्टि सांध्य दैनिक में भी काम किया। समाचार लेखन में सामान्य हिंदी का प्रयोग करते थे, अर्थात साहित्यिक रूप से बहुत पारंगत नहीं थे, मगर थे वे नंबर के वन खबरची। सांध्य दैनिक दिशादृष्टि छाया ही वरिष्ठ पत्रकार सुशील जी और उनकी वजह से। न जाने कहां से खबर खोद कर लाया करते थे। खूब धूम मचाई। बहुचर्चित अश्लील छायाचित्र कांड को प्रारंभिक तौर पर उजागर करने में इस जोड़ी का विशेष योगदान रहा। शहर की शायद ही कोई छोटी-मोटी घटना ऐसी होती थी, जो उनकी जानकारी में तुरंत न आती हो। उसकी वजह थी समाज के सभी तबके के लोगों के साथ उनकी अंतरगता। हर घटना पर पैनी नजर रखना उनके स्वभाव में था। दूसरी वजह थी, उनकी नया बाजारीय पृष्ठभूमि। उनका निवास व पैतृक व्यवसाय नया बाजार में ही है। सब जानते हैं कि नया बाजार में शहर की हर धड़कन स्पंदित होती है। इसी वजह से शहर की संस्कृति से भलीभांति परिचित थे। न्यूज की बीट उनकी चाहे जो रही, मगर दफ्तर में आते ही अन्य बीट के साथी पत्रकारों को बताया करते थे कि आज कहां क्या हुआ। उनकी इसी खासियत की वजह से स्थानीय संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल के खास चहेते थे। छेडख़ानी उनकी फितरत में थी। वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रताप सनकत से उनकी खूब पटती थी। दोनों एक दूसरे को खूब छेड़ा करते थे। इसी प्रकार वरिष्ठ फोटोग्राफर सत्यनारायाण जाला के साथ भी उनका जमकर धोल-धप्पा हुआ करता था। अजयमेरु प्रेस क्लब के वे अहम हिस्सा थे।
राजनीतिक गतिविधियों पर उनकी गहरी पकड़ रहा करती थी। कांग्रेस हो या भाजपा, हर पार्टी के नेता से उनके व्यक्तिगत संबंध थे। विशेष रूप से भूतपूर्व काबीना मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के बहुत चहेते थे। दरगाह बादाम शाह में उनकी गहरी आस्था थी।
संवेदना से भरपूर यह इंसान किसी भी पत्रकार साथी को किसी संकट में देख कर तुरंत उसका समाधान करने में जुट जाता था। शहर की धड़कन से जुड़ा फागुन महोत्सव हो या कोई खेल गतिविधि या शायद ही कोई ऐसा सार्वजनिक आयोजन हो, जिसमें उनकी सहभागिता नहीं रहती हो। भास्कर के आरंभिक काल में आई समस्याओं के समाधान में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। तत्कालीन विशेष संवाददाता एस. पी. मित्तल के साथ भास्कर को शुरू में स्थापित करने में उन्होंने कंधे से कंधा मिला कर काम किया। प्रबंधन उनके इस ऋण से कभी उऋण नहीं हो पाएगा। उन दिनों का मजाक में गढ़ा गया एक किस्सा मुझे आज भी याद है। मित्तल जी की टीम ने 18-18 घंटे काम किया। हालत ये होती थी कि कई बार एक वक्त ही खाना खा पाते थे। एक बार अरविंद जी को कब्ज की शिकायत हो गई। तीन दिन तक लेट्रिन ही नहीं आई। वे डॉक्टर के पास गए। उन्होंने पूरी जांच करने के बाद पूछा कि आप काम क्या करते हो, वे बोले भास्कर में। इस पर डॉक्टर साहब का कहना था कि ये लो मेरी ओर से दो सौ रुपए। खाना खा लेना। लेट्रिन आ जाएबी। अगर खाना ही नहीं खाओगे तो लेट्रिन आएगी कैसे?
बहरहाल, जैसे ही उनके निधन का समाचार मिला, मैं स्तब्ध रह गया। सहसा यकीन ही नहीं हुआ। दु:ख की एक लहर दिल के अंदर तक पहुंच गई। उनके अभाव को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। बेशक, उनकी कमी इस शहर को सदैव खलती रहेगी, मेरे लिए तो निजी तौर पर बहुत बड़ी क्षति है। अफसोस, अब मुझे वाह ड़े सिंधी वाह के मजाकिया संबोधन से पुकारने वाला नहीं रहा। ऐसे प्यारे साथी का यूं यकायक चले जाना बहुत पीड़ादायक है। अजमेर में उनके हर चाहने वाले की ओर से उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

-तेजवानी गिरधर
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