इस भीड़ से भी व्यंग्य निकलता है ! (व्यंग्य)

सुनील कुमार महला
सोशल मीडिया को लेकर आजकल लेखकों में हल्का हल्का नहीं बहुत भारी सुरूर है। सोशल मीडिया ही असली गुरूर है। आजकल इतने कुकरमुत्ते लेखक पैदा हो गये हैं कि बेचारे कुकुरमुत्तों तक को भी शर्म सी आने लगी है। ये कुकुरमुत्ते, कुकरमुत्ती लेखन पैदा कर रहे है और हर तरफ़ गली-गली,मोहल्ले-मोहल्ले, गांव-गांव,शहर-शहर, सड़क, पनघट जित देखो तित साहित्य के घट भर रहे हैं । इन कुकुरमुत्ते लेखकों को बस लेखन का गुरूर है। बस लेखन का ही सुरूर है। शेष सब फिजूल है। जो भी लिखा जा रहा है, वह ऊल-जलूल है। लेकिन यही असली साहित्य का मूल है। शेष सब भूल है। साहित्य के लिए दिन-रात तपने वाले लेखकों का इन लेखकों(सोशल मीडिया के लेखक) को देखकर जल रहा खून है लेकिन जुनून तो जुनून है। अजी ! लेखन का जादू इन भारी-भरकम(सोशल मीडिया के कट,कॉपी,पेस्ट लेखक) लेखकों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है। फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम, इंटरनेट पर अनाप शनाप साहित्य इन्हीं कुकुरमुत्तों के बल पर ही तो डोल रहा है। अजी ! आज युवा पीढ़ी कविताई-सविताई, शायराना-फायराना हुई जा रही है। जैसे आजकल लव इन मेट्रो हो रहा है, ‘सोशल मीडिया’ आज के लेखकों का असली लव हो रहा है। लेखक आजकल लेखन में इतने मशगूल हो गये हैं कि वे लेखन को लेकर इतने इतराते लगे हैं कि जिगर मुरादाबादी की पंक्तियों को लेखन के संदर्भ में गुनगुनाने लगे हैं। एक लेखक बोला-‘हम को मिटा सके(सोशल मीडिया से), ये जमाने में दम नहीं। हम से ज़माना खुद है, ज़माने से हम नहीं।’ दूसरा बोला-‘ मैं अकेला ही चला था(सोशल मीडिया पर) जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए(सोशल मीडिया पर) और कांरवा बनता गया।’ तीसरा बोला-‘कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं जमीन कहीं आसमां नहीं मिलता।(आज तक सोशल मीडिया के अभाव में स्टेज नहीं मिली थी,अब लेखन के लिए सोशल मीडिया की स्टेज मिल गई है।) सोशल मीडिया पर लेखकों का गज़ब का कांरवा बन रहा है। तोताराम जी कहते हैं अजी ! जिंदगी तेजतर है तो आजकल के कुकुरमुत्ता ‘लेखक’ भी तो ज़रा जल्दी में हैं। तकनीक ने इन लेखकों को साधन- सम्पन्न बना दिया। अजी ! बड़े बड़े लेखकों की नब्ज़ तक को इन्होंने हिला दिया। एक क्लिक पर ‘मैटर पर मैटर’ उपलब्ध है। व्याकरण, वर्तनी, कंटेट को देखकर कोई आज क्यों स्तब्ध है ? यही तो प्रारब्ध(आरंभ किया हुआ/भाग्य/तकदीर) है। अजी ! लेखकों को आज मिल रहा है गज़ब का फायदा। लेखन का आज यही रह गया है असली कायदा। कट,कॉपी,पेस्ट। डू नोट वेस्ट द टाइम, करो खूब रेस्ट। पाठकों को नित नवीन लेखन का मिल रहा है आज टेस्ट। लेखन की फसल हो रही है हार्वेस्ट(कटाई)।
अजी ! रेस्ट के बाद अंगूठे से सर्च बटन दबाओ, मनचाहा साहित्य और कंटेंट पल में पाओ और पल में ही कट,कॉपी,पेस्ट से मशहूर लेखक बन जाओ। खुद का लिखा बड़ा महान् है। सोशल मीडिया बना आज साहित्यिक जहान है। साहित्य की यही असली खान है। युवाओं की अटकी इसमें जान है। ज्यादा लाइक,ज्यादा कमेंट। लेखन जॉब हो रही परमानेंट। अजी ! हमारे कवि हैं, हमारे ही शायर हैं और हमारे ही साहित्यकार। यही साहित्य के हैं असली फनकार। शेष सब है बेकार। उनका लिखा हमारी सांस हैं। शेष तो गले की फांस है।इन कुकुरमुत्तों में छिपी हुई आस(आशा) है। सोशल मीडिया पर आप भी फेंक दीजिए अपना साहित्यिक पासा। हमें पता है दिल है छोटा सा, लेकिन छोटी सी है आशा। लेखन और लेखकों का यही सुनहरा दौर है। जिसका न कोई आदि अंत न कोई छोर है। अंत में, बुरा आप मेरी बातों का बिल्कुल भी नहीं मानना। आप भी लिखना(सोशल मीडिया पर) ठोक बजाकर, अजी आप भी फिर कहलायेंगे साहित्य के रत्नाकर(रत्नों की खान)। अजी ! सच बताऊं कीचड़ में ही कमल खिलता है। इस भीड़ से भी व्यंग्य निकलता है।

(आर्टिकल का उद्देश्य पाठकों का स्वस्थ मनोरंजन करने तक सीमित है। किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना इस आर्टिकल का उद्देश्य नहीं है।)

सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
ई मेल mahalasunil@yahoo.com

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