
वर्ष 2004 में देवनानी और भदेल दोनों को अप्रत्याशित रूप से टिकट मिला था। देवनानी तो उदयपुर से चुनाव लड़ने लाए गए थे और भदेल को आरक्षित सीट होने के कारण कोई मजबूत दावेदार नहीं मिलने के कारण मैदान में उतारा गया था। दोनों ने जीत दर्ज की और उसके बाद दोनों टिकट पर कुंडली मारकर बैठ गए। लगातार जीतने के कारण टिकट कटता भी तो कैसे? इसके बाद दोनों को हराने के लिए कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार बदल कर भी देख लिए, लेकिन हर बार उसे पराजय का सामना करना पड़ा। उत्तर (पहले अजमेर पश्चिम) में तो उसने सिंधी प्रत्याशी की ही जीत को बेधने के लिए और गैर सिंधी वोटरों के ध्रुवीकरण के लिए लगातार तीन बार गैर सिंधी उम्मीदवार के रूप में पहले दो बार वैश्य समाज से डा.श्रीगोपाल बाहेती और पिछली बार राजपूत समाज से महेंद्र सिंह रलावता का मैदान में उतारा। लेकिन देवनानी का किला भेदने में दोनों नाकाम रहे। जबकि दक्षिण (पहले अजमेर पूर्व) में दो बार हेमंत भाटी व एक-एक बार स्वगीय ललित भाटी व राजकुमार जयपाल को भदेल ने शिकस्त दी।
इस साल होने वाले चुनाव में भी अजमेर से इन दोनों की उम्मीदवारी को ही सबसे मजबूत माना जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद आम लोगों में ही नहीं,भाजपा कार्यकर्ताओं में भी यह सुगबुगाहट होने लगी है कि इस बार पार्टी को दोनों उम्मीदवार बदलने चाहिए। दरअसल, इसके पीछे कोई मजबूत तर्क नहीं हैं,लेकिन कहते हैं कि 20 साल में भी दोनों ने अजमेर के विकास के लिए कोई ऐसा कार्य नहीं किया है,जिसे मील का पत्थर माना जाए। जबकि इस दरमियान दोनों मंत्री भी रह लिए। जलसंकट बदस्तूर है। शहर में रोजगार के साधन नहीं हैं। सड़कों की हालत खराब है। उद्योग-धंधे नहीं लगे। स्मार्ट सिटी के नाम पर अरबों रूपए खर्च हो गए, लेकिन शहर स्मार्ट नहीं बन सका।
भाजपा के कई नेताओं का यह भी कहना है जब तक नए चेहरों को मौका नहीं मिलेगा,वो चुनावी राजनीति में अपनी पकड़ कैसे साबित करेंगे। देवनानी जनवरी में 73 साल के हो गए हैं यानी वो भाजपा की 70 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को टिटट नहीं देने की चर्चित ल अघोषित नीति में आ सकते हैं। जबकि भदेल को भी इस बार मेयर हाडा दम्पत्ति से टिकट के लिए मुकाबला करना पड़ सकता है। लेकिन दूसरा पक्ष ये भी कह रहा है कि देवनानी की संगठन और आरएसएस में मजबूत पकड़ है,इसीलिए वो चुनावी साल में अपने समर्थक रमेश सोनी को अध्यक्ष बनवाकर ले आए हैं यानि संगठन की सिफारिश उनके लिए ही होगी। उधर,भदेल को इस साल सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार मिला है। ऐसे में भाजपा उनका टिकट कैसे काट सकती है। उन्हें तो कांग्रेस सरकार ने ही श्रेष्ठ माना है।
बहरहाल देखना दिलचस्प होगा कि देवनानी और भदेल की विधायकी का तम्बू इस बाएर भी तना रहेगा या पार्टी अथवा मतदाताओं में से कोई उखाड़ फेंकेंगा। टिकट नहीं देकर भाजपा या वोट नहीं देकर जनता।
*ओम माथुर*
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