संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि परमात्मा ने हम पर कितना उपकार किया है, इस बात पर विचार करें। प्रभु का हमारे ऊपर अनंत उपकार है, क्योंकि उन्होंने हमें पाप से मुक्त होने का मार्ग बताया है। जिस प्रकार वे माता-पिता धन्य होते हैं, जो अपने बेटे को कुमार्ग पर नहीं जाने देते। उसी प्रकार परमपिता परमात्मा भी हमें पापों का परिणाम बताते हुए उस और जाने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं।
इसी क्रम में 18 पापों का वर्णन चल रहा है। छटे पाप क्रोध पर हमारी चर्चा चल रही है। यह पाप जहर से भी ज्यादा खतरनाक होता है ।क्योंकि जहर तो ज्यादा से ज्यादा व्यक्ति का एक ही भव बिगाड़ता है मगर क्रोध तो भवों भव को बिगाड़ देता है।
क्रोध को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है पहले है स्वप्रतिष्ठित क्रोध यानी जो क्रोध स्वयं पर किया जाता है और दूसरा है परप्रतिष्ठित क्रोध जो दूसरों पर किया जाता है।
दसवेंकालिक सूत्र में बताया गया है कि यह क्रोध आदि कषाय जन्म और मरण की परंपरा का सिंचन करने वाले हैं।
क्रोध करने से पूर्व क्रोध के परिणामों को जान लेना भी आवश्यक होगा। क्रोध का पहला परिणाम है कि क्रोध संबंधों को खत्म करने वाला होता है। क्रोध के कारण भाई-भाई माता-पिता पत्नी आदि संबंधों में भी टूटन हो जाती है।
क्रोध का दूसरा परिणाम है कि इससे स्वयं की वह परिवार की शांति खत्म हो जाती है. क्रोधी व्यक्ति के घर की स्थिति के बारे में कहा गया है कि उसका घर नरक व शमशान के तुल्य हो जाता है।अतः घर के वातावरण को सुंदर रखने के लिए क्रोध से बचने का प्रयास करना चाहिए।
क्रोध करने का तीसरा परिणाम है की क्रोध से सदगती बिगड़ जाती है। कहा जाता है कि अगली गति के आयुष्य का बंध जीवन में एक बार ही होता है और उसी पर परभव की स्थितियां निर्भर करती है।अगर क्रोध की अवस्था में अगली गति का आयुष्य बंध हो जाए,तो व्यक्ति को काल करके अशुभ गति नरक या तिर्यंच में भी जाना पड़ सकता है।अतः इस प्रकार क्रोध के परिणामों को जानकर इससे जितना ज्यादा बचने का प्रयास करेंगे तो यत्र, तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
आज की धर्म सभा में मद्रास, भीलवाड़ा,सरवाड़ आदि क्षेत्र से श्रदालुजन पधार कर दर्शन प्रवचन का लाभ लिया। प्रतिदिन चौहमुखी पंचासन भक्तांबर स्त्रोत का कार्यक्रम नियमित रूप से गतिमान है।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।
पदमचंद जैन