तीन दिवसीय कहानी एवं कविता लेखन/प्रशिक्षण कार्यशाला सम्पन्न

’’साहित्य तभी आकृति लेता है जब उसमें सोच रूपी बीज बोया जाता है’’

जयपुर, 25 सितम्बर (वि.)। राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा तीन दिवसीय सिन्धी कहानी एवं कविता लेखन/प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन आज झालाना संस्थानिक क्षेत्र स्थित अकादमी संकुल, जयपुर में हुआ।

अकादमी सचिव योगेन्द्र गुरनानी ने बताया कि कार्यशाला में भारतीय सूचना सेवा के पूर्व निदेशक एवं कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार किशन रतनानी ने ’बाल कहानी, मिनी
कहानी एवं नई कहानी’ के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने सिन्धी बाल कहानी, लद्यु कथा पर अपने अनुभव बांटते हुये कार्यशाला के प्रतिभागियों को बताया कि साहित्य की प्रत्येक विधा-कहानी, कविता, गज़ल आदि तभी आकृति लेकर सामने आती हैं जब सोच रूपी बीज बोया जाता है। प्रकृति की तरह रचना धर्म में भी अच्छा बीज, सही धरती, सही और सतत सार-संभाल मिलकर कहानी को जन्म देते हैं। उन्होंने बताया कि सिन्धी बाल साहित्य की शुरूआत 171 वर्ष पूर्व 1853 में मानी जाती है। वर्ष 1952 में ’चन्दामामा’ (बच्चों की सुप्रसिद्ध पत्रिका) सिन्धी भाषा में प्रकाशित होती थी। उन्होंने अपने पहले बाल कहानी संग्रह ’बीज’ की कहानियों के जन्म की सोच और अहसासों के अंश को पढ़कर समझाया। उन्होंने बाल मनोवृत्तियों, बाल संस्कारों, बाल मनोविज्ञान का उदाहरण देते हुये बताया कि बाल कहानियों की भाषा सरल एवं शुद्ध होनी चाहिये।

कार्यशाला में जयपुर की साहित्यकार डा.माला कैलाश ने ’सिन्धी कहानी में नये अनुभव’ पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि विभाजन के पश्चात् कहानी तीन दौर – तरक्की पसन्द दौर, रोमानवी दौर व नई कहानी का दौर से यात्रा करके आज की स्थिति में पहुंची है। हर दौर दूसरे दौर से सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से निराला व भिन्न होता है। अतः एक दौर की तुलना दूसरे से करना ग़लत होगा। उन्होंने प्रत्येक दौर की कहानियों में हुये नये प्रयोग (तर्जुबे) का कहानीकारों की कहानियों के उदाहरणों का नाम सहित उल्लेख किया।

कार्यशाला में आज का अन्तिम सत्र प्रशिक्षणार्थियों के लिये ’खुला सत्र’ के रूप में रखा गया जिसमें कार्यशाला में तीन दिनों तक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रशिक्षणार्थियों की कहानी एवं कविता लेखन की परख़ की गई जिसमें प्रशिक्षणार्थियों ने उत्साह से भाग लिया एवं अपने अनुभव सांझा किये।

(योगेन्द्र गुरनानी)
सचिव

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