प्रभु भक्ति सत्य एकता सच्चाई और सद्दभाव की निरंकुश आततायी और असहिष्णु राज्य शक्ति पर जीत का पर्व होली

j k garg

हमारे मुल्क के अंदर पर्व मनाने के पीछे तर्क यही है कि जिंदगी को एक उत्सव के रूप में जिया जाये, जीवन का हर पल सुखमय और आनंदमय हो | प्रतेयक पर्वों का धार्मिक सामजिक और वैज्ञानिक महत्व होता है | होली के पर्व का सामाजिक पहलू भी है क्योंकि होली का पर्व  परिवार, आसपडोस,समाज, विभिन्न समुदाय और  विभिन्न वर्ग  के लोगो को स्नेहसोहार्द  सद्दभाव और  भाईचारे के अटूट बंधन में बांधता है और उनके बीच में पनपे अविश्वास, शंका, विवादों को मिटाकर पारस्परिक रिस्तों को फेवीकोल के जोड़ जैसा मजबूत बनाता है । होली का पर्व आपसी संबंधों को पुनजीवित करने और मजबूती के टॉनिक के रूप में भी कार्य करता है।  |

असुर सम्राट हिरण्यकश्यप  की बहन होलिका कोई साधारण स्त्री नहीं थी किन्तु वह तो  मायावी असुर थी जो ईर्ष्या, रागद्वेष, अनाचार तथा समस्त दुष्कर्मों की प्रतीमुर्ती एवं घोर नास्तिक थी | दस्युराज हिरण्यकश्यप की अपार शक्ति के आगे नन्हेमासूम प्रहलाद की क्या बिसात थी ? नन्हेमासूम प्रहलाद  के पास भक्ति सत्य निष्ठा प्रभु के चरणों में सम्पूर्ण समर्पण की शक्ति थी | अंत में जीत तो भक्ति, विश्वास एवं सत्य की ही हुई | याद रक्खे सत्य ही परमात्मा है |

भगवान क्रष्ण ने बताया कि स्त्री पुरुष को निष्काम भाव से सात्विक करते हुए उन्हें प्रभु के श्री चरणों में समर्पित कर देना चाहिए इसी वजह से आदि काल से सनातन धर्म में सात्विक, राजसी और तामसी तामसी प्रवृत्तियों को त्यागने को कहा गया  में से सुखी जीवन के लिये सात्विक प्रवृत्ति को ही श्रेष्ट माना गया है, राजसी प्रवृत्ति को भी त्याग ने को कहा गया है | होलिका दहन का का वास्तविकता में मतलब है जीवन के रोम रोम में से समस्त दुष्कर्मों और तामसी आदतों का जड़ से समूल नाश और दहन | आप की मजबूत इच्छाशक्ति आपको सारी बुराइयों से बचा सकती है | तामसी प्रवत्ति होली की दिव्य अग्नि में भस्म कर देना ही सच्चा ‘होलिका दहन’ है।

भारत में  होली का त्योहार यों तो  वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे,पशु-पक्षी एवं सभी नर-नारी उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है | यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन तक मनाया जाता है। इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च 2025 को धूमधाम से मनाया जाएगा |

इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी होली पर्व का प्रचलन था | वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है।  सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपनी ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का  विस्तार से वर्णन  किया है।  उन्होंने लिखा है कि होली को केवल हिंदू ही नहीं वरन मुसलमान भी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरें हैं मुगलकाल की हैं, इसी काल में अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन भी\ मिलता है। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे। उन दिनों में होली का पर्व धार्मिक सौहार्द और  पारस्परिक भाई चारे के पर्व के रूप में मनाया जाता था |

होली दहन के दूसरे दिन को धुरड्डी,धुलेंडी,धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, इस दिन बच्चे-बूढ़े,स्त्री पुरुष  अपने मनमुटाव मतभेद को भुला कर निसंकोच ढोलक, मंजीरे  के साथ नाचते गाते हुए टोलियां बना कर आसपास के घरों और दोस्तों तथा रिश्तेदारों के घर पर जाकर उन्हें रगं गुलाल लगाते हैं पुरानी कटुता एवं दुश्मनी को भूल कर आपस में प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं और  दुश्मनी को छोड़ कर घनिष्रट दोस्त बन जाते हैं | रंग खेलने के बाद के दोपहर में  स्त्री पुरुष बच्चे बुजुर्ग   स्नान करते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर  अपने स्वजनों ईष्ट मित्रों पास पड़ोसियों से मिलने  उनके घर पर जाते हैं | आजकल किसी सार्वजनिक जगह पर भी होली मिल्न का सामूहिक आयोजन किया जाता है हैं।  स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ प्रीति भोज में शामिल होकर  मोज मस्तती करते हुए गाने बजाने का प्रोग्राम भी  करते हैं  |

फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण  होली को फाल्गुनी भी कहते हैं ।  अन्न को होला भी कहते हैं, इसलिए इस पर्व का नाम से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। होली के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत के आरंभ का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादि तिथि भी कहते हैं।

होलिका दहन का वैज्ञानिक महत्व भी अनूठा है क्योंकि होलिका दहन के समय उत्पन्न गर्म  वातावरण हमारे लिये सुरक्षा कवच का काम भी करता है | सर्दी के मौसम में कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया वातावरण में रहते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिये हानि कारक होते हैं | पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर होलिका दहन की प्रक्रिया से वातावरण का तापमान 145 डिग्री फारेनहाइट या इससे अधिक तक बढ़ जाता है जो बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक कीटों को नष्ट करने में प्रभावी भूमिका निभाता है। होलिका दहन के वक्त सभी नर नारी घेरा बना कर जलती हुई होली को देखते हैं | होलिका दहन के बाद लोग वहां की राख जिसे विभूति कहते हैं को चंदन और आम के पत्तों के साथ मिला कर अपने मस्तिष्क पर लगा कर उसका लेप करते हैं | कुछ स्थानों पर जलती हुई राख और अंगारों को छलनी में डाल कर अपने घर ले जाकर उसमें नई गेहूं की बालियों को पकाते और पापड़ खीचें भी सकते है  | होली के जलते हुए कोयलों पर गेहूँ की बालियों को भुन कर नई फसल के लिये परमात्मा को धन्यवाद देते हुये पापड़ खीचें भी भुन कर खाते हैं | नई फसल के आ जाने से किसानों सहित जनमानस के चहेरे पर खुशी और उल्लास  जगमगा उठती  है |

निसंदेह होली का मतलब हो ली यानी जो हो गया सो हो गया अथवा जो बीत गया सो बीत गया | संत कबीर ने सही कहा था “ बीती ताई बिसार दे और आगे की सुध लें “अर्थात जो बीत गया उसकी चिंता न करें तथा आगे के लिए जो भी काम करे वो सही करें | घ्रणा की जगह प्रेम करें, दूसरों का सम्मान करें और उनकी बात सुनें | इंग्लिश के शब्द Holy का हिन्दी में मतलब होता है “‘पवित्र” यानि हमारे सारे काम स्वार्थ की जगह समाज, परिवार और देश हित हो।

सही मायने में होली अन्याय पर न्याय की, कटुता पर मधुरता ,नकारात्मकता पर सकारात्मकता, झूठ-फरेब पर सच्चाई,स्नेह, सौहार्द एवं सद्भावना की जीत का पर्व है। इस होली पर हम संकल्प लें कि हम हमारे परिवार,समाज और देश में सभी तरह के भेदभाव और बुराइयों को जला देगें। होली या रंग महोत्सव को स्नेह-प्यार-मोहब्बत का त्यौहार” बनाएंगे। तामसी प्रवृत्ति यानी  ईर्ष्या,अनाचार,दुर्भावना  क्रोध हिंसा अभिमान असहिष्णुता,अविश्वास रूपी होलिका को होली की दिव्य अग्नि में भस्म कर देना ही सच्चा ‘होलिका दहन’ है। रंगोत्सव यानि होली खेलने की सार्थकता तभी होगी जब हम परमात्मा में श्रद्धा रखते हुए सात्विक विचार, सकारात्मकता,स्नेह, प्रेम, सौहार्द, सहिष्णुता,सहृदयता और करुणा दया के रंग में अपनी अंतरात्मा को आत्मसात कर देगें |

हम सभी जानते हैं कि हमारे आराध्य देव शिवजी के परिवार में बिच्छू , बैल और सिंह , मयूर एवं सर्प बैल और चूहा जैसे घोर विरोधी स्वभाव के प्राणी भी प्रेमपूर्वक साथ साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो क्यों नहीं हम हमारे समाज एवं देश में बिना किसी भेदभाव के गिरे हुओं को , पिछड़े हुओं को , विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को साथ लेकर चल सकते हैं ?   जब मुगल काल के अंदर हिंदू मुसलमान मिलकर होली बनाते थे तो आज क्यों नहीं विभिन्न धर्मालंबी  होली को परस्पर स्नेह प्रेम और भाई चारे के पर्व के रूप में मिलजुल कर बना सकते  हैं | क्यों हम श्मशान कब्रिस्तान मंदिर मस्जिद के व्यर्थ विवादों में उलझे रहतें है ? क्यों हम हिजाब या भगवा के विवाद खड़े करते हैं ? राष्ट्र की प्रगति के लिये  हम सभी मिलके क्यों नहीं काम करते हैं? अब तय आपको ही करना है कि इस होली पर भी आप विगत वर्षों की होली के भाति सिर्फ घास फूस जलाने ही जा रहे हैं या फिर अपनी बुराइयों  राग द्वेष  मनमुटाव  को सच्चे दिल से जलाने और भस्म करने का मजबूत संकल्प लेंगे |

डा. जे. के. गर्ग

पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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