जिस स्त्री ने स्वयं की भकित, ज्ञान एवं कर्म संबंधी अंतश्चेतना का अधिकतम विसतार कर लिया है वह वेद जैसी ही है, जैसे – अरुंधति, शचि, सीता, राधा, गार्गाी और वर्तमान समय की अनेक प्रसिद्ध महिलाऐं। जो स्त्री अपने सम्पर्क में रहने वाले पुरुष के भी आंतरिक व्यकितत्व को स्थूल से सूक्ष् म तक सम्भावित विसतार देने में सहचर रहती है वह भी स्त्रीवेद में समाविष्ट होने के योग्य है। जिन्होंने स्त्री को वेद की तरह पढा वे ऋषि हो गए, महातमा हो गए। सामान्य पुरुष ऐसा नहीं करता है। वह स्त्री के शरीर को ही पढता है, देह को ही देखता और सुनता है। उसके लिए अरुंधति स ेले कर विश्व की वर्तमान शीर्षस्थ महिला वैज्ञानिक, लेखिकाएं, खिलाड़ी, प्रशासनिक अधिकारी आदि केवल कहानियां हैं। यही कारण है कि स्त्री को विगत छह हजार वर्ष से स्वयं की सामाजिक एवं वैश्विक स्वीकृति के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ रहा है।
स्त्री शब्द संस्कृत भाषा के ‘स्त्ये’ धातु से बना है। इसका अर्थ है शब्द करना, बोलना,संचय करना। संचय – प्रजनन ऊर्जा का, सौंदर्य का, भाव वैभव का, मन-कर्म-वचन में मृदुता का संचय। हमारी दार्शनिक अवधारणा में स्त्री को शकित का, सर्वभूतेषंु देवी का और प्रकृति का प्रतीक भी माना गया है। अर्द्धनारीश्वर में भी आधा अंग स्त्री है। स्त्री का अर्थ किसी भी जीव का पूरक यानी मादा यानी सृजन शक्ति भी है।
स्त्री यानी प्रकृति का सम्पूर्ण वैभव। स्त्री यानी सृजन की ऊर्जा। स्त्री यानी हृदय का वैभव – भाव, उत्सव, त्योहार, , परिवार का मंगलाचरण। स्त्री यानी अर्पण, भाव, भक्ति। स्त्री यानी पुरुष की मुक्ति, उन्मेष, उत्कर्ष। स्त्री यानी परिवार, समाज एवं देश की पृष्ठभूमि में मनुष्य के उत्कर्ष की सम्भावना का संकल्प। वह केवल भोग एवं प्रजनन तक सीमित नहीं है। उसकी चेतना में विस्तार है, विविधता है, कसमसाहट है। वह रस भी है तो शक्ति भी। पत्नी है तो सहचर भी। पुत्री, बहिन, पत्नी, भाभी, चाची आदि के अतिरिक्त वह ‘स्त्री’ भी है- रिश्तों से ऊपर एक निज अस्तित्व, स्वयंसिद्धा वाला अस्तित्व।जब उसकी निजता अदम्य हो जाती है तब समाज के सामने शची, गार्गी, लोपमुद्रा, राधा, द्रौपदी, मीरा, लक्ष्मीबाई, एवं अनेक आधुनिक लौह महिलाओं के रूप में आती है। आधुनिक युग में भी विज्ञान, साहित्य, प्रशासान, खेल, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में हजारों महिलाएं अग्रणी हो रही हैं। वैश्विक विकास में स्त्रियों की बढती हुई सहभागिता नारी चेतना का ही प्रमाण है