
निसंदेह जिस तरह हिन्दुओं के लिए पांच दिनों का पर्व दीपावली का सबसे महत्वपूर्ण है और सभी हिन्दुस्तानी मिलजुल कर मनाते है | एक दुसरो के घर पर जा कर मिठाई खिलाते है आतिशबाजी करके कुशी का इजहार करते हैं | मुसलमानों का धार्मिक ज्लुज जब मस्जिद या बाजार से गुजरता था तब उनका स्वागत करते थे और फूल भी बरसाते थे | रावण के विशालकाय पुतले बना कर दशहरा की शोभा बढाते है मु स ल मा न मकान| बना ने के
कारी ग र मोटर मैकेनिक का काम कुशलता से करते है | देश के के निर्माण मे मुस्लिम हिन्दू सिख ईसाई फारसी जाएँ बौद्ध सभी भागीदारी निभाते हैं | ईद पर हिंदू मुस्लिमों के घर पर मीठी सिविया खाने के लिए उनके घर पर जाते हैं वहीं मुस्लिम दीपावली पर हिन्दू के घर पर पकवान भे ज ते ज हैं और आतिश बाजी भी करते है। ज गुरु पर्व पर सभी सिख लोगो के घर जाकर जाकर बधाई देते है और गुरु का प्रसाद खाते है। बढे दिन या कि स म स पर ईसाई लोगो के घर या चर्च जाकर बधाई देते है केक खाते है। सभी महिला पुरुष जो सी नि य र् नागरिक है उनको तीर्थ यात्रा पर रेल या हवाई जहाज से यात्रा करवाते है।
इन बातो से स्पष्ट है कि हमारे देश के अंन्द् र् सभी धर्मो का सम्मान किया जाता है।
ईद उल-फ़ित्र को मीठी ईद भी कहते हैं। रोजा (उपवास) खोलने का यह पर्व एक प्रमुख मुस्लिम पर्व है। ई द उत्सव इस्लामिक हिजरी कैलेण्डर के अनुसार शव्वाल माह के प्रथम दिवस पर मनाया जाता है। इस्लामिक हिजरी कैलेण्डर में, शव्वाल दसवाँ महीना है। ईद उल-फ़ित्र, रमजान के पवित्र महीने के अन्त का भी प्रतीक है। परम्परागत रूप से, इस्लामी कैलेण्डर में महीना अर्धचन्द्र के दर्शन के साथ शुरू होता है। अतः रमजान महीने के अन्तिम दिवस पर चन्द्र दर्शन के पश्चात् ही अगले दिन ईद उल-फ़ित्र का पर्व मनाया जाता है।
रमजान में मुस्लिम, सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजा रखते हैं तथा अल्लाह खुदा के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने के लिये अपना जीवन और समय उनको
समर्पित करते हैं। रमजान के माह में बहुत से मुस्लिम पूर्ण रूप से नियम-संयम का पालन करते हैं तथा अपना अधिकांश समय अल्लाह एवं उनकी शिक्षाओं को याद करके पांच बार नमाज पढते है।
निसन्देह ईद के दिन का आरम्भ स्नान के पश्चात् प्रातः प्रार्थना से होता है, जिसे सलात-उल-फज्र बोलते है।
परम्परा अनुसार ईद के दिन सामूहिक रूप से नमाज अदा की जाती है,
स्त्रियाँ एवं बालिकायें घर पर रहकर अथवा समूह में जाकर नमाज पढ़ती हैं।
नमाज के पश्चात् नवीन वस्त्रों में सजे स्त्रियाँ, पुरुष, बालक एवं वृद्ध सभी एक दूसरे के गले मिलकर, ईद मुबारक बोलते हुये बधाई देते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में इस दिन मुस्लिम अपनी पारम्परिक पोशाक सलवार-कमीज तथा पारम्परिक टोपी (तकियाह) पहनते हैं तथा एक दूसरे के घर जा कर उपहारों के आदान-प्रदान करते हैं। इस अवसर पर स्त्रियाँ अपने हाथों में हिना लगाती हैं। ईद के उपहार स्वरूप बालकों को व उम्र में छोटे लोगों को उपहार या धन की कुछ मात्रा ईदी के रूप में दी जाती हैं।
ईद उल-फ़ित्र के अवसर पर विशेष प्रकार के व्यञ्जन पकाये जाते हैं, जिनमें मुख्यतः मिष्ठान सम्मिलित होते हैं। यही कारण है कि ईद उल-फ़ित्र को भारत तथा अन्य दक्षिण एशियाई देशों में मीठी भी ईद कहा जाता है। सेवइयां ईद उल-फ़ित्र का मुख्य मिष्ठान होती हैं, जिसे गेहूँ के नूडल्स को दूध के साथ उबाल कर बनाया जाता है तथा इच्छानुसार सूखे मेवों से सुसज्जित कर, ठण्डा अथवा गरम परोसा जाता है। सेवइयां के अतिरिक्त इस दिन खीर, फिरनी, हलवा, गुलाब जामुन, मलाई कुल्फी तथा रस-मलाई इत्यादि भी तैयार की जाती हैं। ईद का त्यौहार तीन दिनों तक जारी रहता है।
ईद के दिन दान का विशेष महत्व है। जीवन के सभी क्षेत्रों के मुस्लिमों को यथाशक्ति धन या भोजन और कपड़े के रूप में कुछ दान करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। ज़कात उल-फ़ितर (ईद का दान) रमजान माह के अन्त में ईद की नमाज से पूर्व दिया जाता है। मुस्लिमों द्वारा ज़कात के नाम से अपनी वार्षिक आय का कुछ भाग निर्धनों व दरिद्रों को कर स्वरूप दिया जाता है। कुछ देशों में ज़कात व्यक्ति का निजी निर्णय होता है, जबकि अन्य देशों में सरकार द्वारा ज़कात-कर अनिवार्य रूप से एकत्रित किया जाता है।
मान्यता के मुताबिक ईद पर्व का आरम्भ मदीना नामक नगर से उस समय हुआ था, जब मोहम्मद मक्का से स्थानान्तरित होकर मदीना आये थे। मोहम्मद ने अल्लाह द्वारा कुरान में वर्णित दो सर्वाधिक पवित्र दिवसों को ईद के लिये निर्धारित किया था। इन दोनों दिवसों को ईद-उल-अज़हा तथा ईद-उल-फ़ित्र कहा जाता है। इस प्रकार ईद मनाने का चलन आरम्भ हुआ था।
अपनी आत्मशुद्धि हेतु अल्लाह के बताये हुये नियमों का पालन करते हैं। अनेक मुस्लिम रमजान के माह में कुरान का पाठ करते हैं तथा अल्लाह के साथ आत्मिक सम्पर्क स्थापित करते हैं।
भारत भर में ३१ मार्च या १ अप्रिल २०२५ को उल्ला स से मनाय
राष्ट् पिता बापू ने विभाजन के बाद मुस्लिम की सुरक्षा के लिए आमरण अंशन किया था जिससे हिंदू वादी लोगो ने बापू की ह्त्या कर दी थी इसीलिए ३० जनवरी को श ही द दिवस के रूप मैं मनाते
डा जे के गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा