सिंधी समाज के पर्व गोगोड़ो का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह पर्व खासकर सावन महीने में नाग पंचमी को मनाया जाता है, और इसे गोगा देवता या गोगा जी की पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से सांपों से रक्षा और सर्पदंश से सुरक्षा की कामना से जुड़ा होता है।
गोगा जी जिन्हें गोगा वीर, गोगा चोबदार, या जाहरवीर गोगा भी कहा जाता है, को सर्पों के देवता के रूप में पूजा जाता है। सिंधी समाज में मान्यता है कि वे नागों पर नियंत्रण रखते हैं और अपने भक्तों को सर्पदंश से बचाते हैं।
इस दिन गोगड़ो की कथा सुनाई जाती है। स्त्रियां और बच्चे मिलकर गोगा जी के गीत गाते हैं और मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा करते हैं। यह पर्व सिंधी संस्कृति की उस जीवंत परंपरा को दर्शाता है जो सिंध से जुड़ी हुई है और प्रवासी सिंधियों में अब भी जीवित है। गोगडो यह सिखाता है कि जीव-जंतुओं के साथ मेलजोल बनाकर कैसे जीवन जिया जाए।
बहुत समय पहले की बात है, गोगा जी एक शक्तिशाली और पराक्रमी राजा थे। उनकी माता ने सर्पों की आराधना कर उन्हें प्राप्त किया था। जन्म के समय से ही गोगा जी के पास सर्पों पर नियंत्रण की शक्ति थी। वे जहां भी जाते, सांप उनकी आज्ञा का पालन करते। गोगा जी ने जीवन भर न्याय, धर्म और सेवा का मार्ग अपनाया और सर्पदंश से पीड़ित लोगों को बचाया। उन्होंने कई जगहों पर नागों का आतंक समाप्त किया और लोगों की रक्षा की। इसलिए लोग उन्हें सांपों के स्वामी कह कर पूजते हैं।
इस दिन सिंधी परिवारों में गुड़ या शक्कर डाल कर मीठी रोटी बनाई जाती है। इसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है और बाद में परिवार में बांटा जाता है। गोगड़ो के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता। एक दिन पहले बनाया गया ठंडा भोजन किया जाता है। इस दिन को नंढी थदडी कहा जाता है।
