भारतवर्ष के त्योंहारो की यह बात है बड़ी निराली,कार्तिक माह में पूर्णिमा को मनाते है देव दीवाली।
हंसी खुशी संग मनाते है कोई पर्व न जाता ख़ाली,
काशी की पावन धरा पर उतरे मनाने देव दीवाली।।
एक वक्त त्रिपुरासुर दैत्य का बढ़ गया यह आतंक,
ऋषि मुनि नर नारी एवं देवो के लिए बना घातक।
तब भगवान शंकर ने काटा उस असुर का मस्तक,
उसी खुशी में बधाई देने आए देवगण काशी तक।।
हिन्दू पंचांगो के अनुसार तब आए थे वहां देवगण,
है आज भी वहां पर उन देवगणो के कमल चरण।
आते है हर वर्ष जहां देव दीवाली को भ्रमण करने,
मिलता है आशीष उन्हे और पाते ईश्वर की शरण।।
मुख्य रुप से काशी में जो गंगा तट पे मनाई जाती,
जिस दिन चारो और काशी में सजावटे की जाती।
गंगा घाट के चारो और मिट्टी के दीये जलाए जाते,
शुभ-मुहूर्त और पूजन विधि से पूजा कराई जाती।।
होती है मनोकामनाएं पूर्ण जो भक्त यहां पर आते,
दीपदान करके वहां देवताओं की कृपा दृष्टि पाते।
होता है महत्वपूर्ण इस दिन का गंगा नदी मे स्नान,
रोग दोष एवं कष्ट-पीड़ा उन सभी के दूर हो जाते।।
सैनिक की कलम
गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान