गाजियाबाद। आरुषि-हेमराज हत्याकांड के खुलासे में खुद सीबीआइ अफसर भी बाधा बने। यह खुलासा इस मामले के विवेचक और सीबीआइ के एएसपी एजीएल कौल ने कोर्ट में जिरह के दौरान किया। उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी नीलाभ किशोर का नाम लेकर कहा कि उन्होंने डा. नूपुर तलवार को गिरफ्तार करने की अनुमति नहीं दी। जबकि वह उन्हें गिरफ्तार कर पूछताछ करना चाहते थे। इस मामले में सीबीआइ कोर्ट में 26 को सुनवाई होगी।
बेटी आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या के आरोपी डा. राजेश तलवार व डा. नूपुर तलवार भी जिरह के दौरान बुधवार को सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश एस. लाल के समक्ष पेश हुए। बचाव पक्ष के अधिवक्ता सत्यकेतु सिंह, तनवीर अहमद मीर और मनोज सिसोदिया ने कौल से जिरह की, जो पूरी हो गई। अब बचाव पक्ष की गवाही शुरू होगी। कोर्ट में बचाव पक्ष ने कौल से पूछा कि जब उन्हें यह मालूम था कि डा. नूपुर तलवार हत्याकांड को अंजाम देने में डा. राजेश तलवार के साथ सह अभियुक्त थी तो उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? कौल ने कहा, विवेचना के दौरान उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर वह नूपुर तलवार को गिरफ्तार कर उनसे पूछताछ करना चाहते थे, लेकिन वरिष्ठ अधिकारी नीलाभ किशोर ने इसकी अनुमति नहीं दी और नूपुर तलवार को गिरफ्तार नहीं किया। इसीलिए उन्होंने अंतिम रिपोर्ट में नूपुर तलवार का नाम अभियुक्त के कालम में नहीं दिखाया है, लेकिन स्पष्ट लिखा है कि अपराध दोनों ने मिलकर किया है।
उन्होंने कहा कि एलसीएन [लो काउंट नंबर] डीएनए टेस्ट के लिए डा. राजेश तलवार ने विदेश के एक विशेषज्ञ का विवरण दिया था। लेकिन उस विशेषज्ञ व विदेश के चार-पांच अन्य विशेषज्ञों से संपर्क किया तो केवल उस विशेषज्ञ ने ही परीक्षण पर सहमति दी थी, जिसका नाम डा. राजेश तलवार ने बताया था। इस विशेषज्ञ के बारे में इंटरपोल के जरिए पता चला कि उसके पास अधिकृत लैब ही नहीं है। यह भी मालूम हुआ कि यह विशेषज्ञ पहले से ही डा. राजेश के संपर्क में था। एलसीएन डीएनए परीक्षण भारत में नहीं किया जाता, क्योंकि यहां पर यह मान्यता प्राप्त नहीं है।
कौल ने कहा, आरोपी मुझे सहयोग नहीं कर थे बल्कि भटका रहे थे। यह कहना गलत है कि 16 मई 2008 को एकत्र साक्ष्यों के आधार पर यह जाहिर हो रहा था कि घटना की रात में हेमराज के दोस्त कृष्णा, राजकुमार व विजय मंडल फ्लैट में आए और उन्हीं ने हत्या की।