नई दिल्ली। अब जल्दी ही दुनिया भर के गरीब और मध्यवर्गीय परिवार के बच्चों को भी रोटावायरस से सुरक्षा देने वाले टीके लग सकेंगे। बच्चों को दस्त और आंत्रशोथ का शिकार बनाने वाले इस वायरस से आजादी दिलाने वाला ऐसा टीका भारत ने विकसित किया है, जो पुराने टीकों के मुकाबले 90 फीसद से ज्यादा सस्ता है।
केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की साझेदारी में विकसित किए गए इन टीकों के तीसरे चरण का क्लीनिकल परीक्षण भी पूरा हो चुका है। अब जल्दी ही भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआइ) की इजाजत से ये टीके बाजार में बेचे जाने के लिए बनाए जा सकेंगे। उम्मीद की जा रही है कि दुनिया के दूसरे मुल्कों में भी इन टीकों की खासी मांग होगी।
इस टीके के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले जैव प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव एम.के. भान कहते हैं कि लगभग तीन दशक की लगातार कोशिश के बाद यह संभव हो सका है। साथ ही ये बताते हैं कि यह टीका बच्चों में 56 फीसद तक प्रभावी पाया गया है। यानी, यह टीका लगाए जाने के बाद बच्चों में रोटावायरस के संक्रमण का खतरा इतना कम हो जाता है। तीसरे चरण का क्लीनिकल परीक्षण देश में तीन अलग-अलग जगहों पर 6,799 बच्चों में किया गया था। अब जल्दी ही क्लीनिकल परीक्षण की रिपोर्ट औषधि महानियंत्रक को सौंपी जाएगी। इसकी अनुमति मिलने के बाद इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो जाएगा।
इन टीकों की सबसे खास बात है इनका पहले के टीकों के मुकाबले 90 फीसद से भी ज्यादा सस्ता होना। निजी कंपनी ने इसकी कीमत लगभग 54 रुपए रखने का एलान किया है, जबकि पहले से मौजूद टीके 800 से 900 रुपए तक में बिक रहे हैं। बच्चों को रोटावायरस के संक्रमण से बचाने के लिए बच्चे को छह, दस और 14 हफ्ते की उम्र में इसकी तीन खुराक पिलानी होगी। रोटावेक नाम के वैक्सीन का तीसरे चरण का क्लीनिक ट्रायल पूरा हो चुका है।
उल्लेखनीय है कि डायरिया से प्रति वर्ष पांच साल से कम उम्र के एक लाख बच्चों की भारत में मौत हो जाती है। इस सस्ते इलाज से गरीब वर्ग के बच्चों की जान बचाईजा सकेगी। साथ ही इस वैक्सीन से डायरिया और आंत्रशोथहोने की 56 फीसद आशंका भी कम हो जाती है।