–दिग्विजय सिंह- भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता, लाल कृष्ण आडवानी का इस्तीफा देश की विपक्ष की राजनीति को दिन भर झकझोरता रहा लेकिन शाम तक आर. एस. एस. ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि आडवानी जी के इस्तीफे से उपजा भाजपा का संकट खत्म हो गया। काँग्रेस पार्टी को हमेशा से मालूम है कि भाजपा में कोई भी काम आर. एस. एस. की मर्जी के खिलाफ नहीं होता। यह भी निश्चित था कि संघ का हस्तक्षेप होगा और सब कुछ नागपुर की मर्जी के हिसाब से चलने लगेगा। लाल कृष्ण आडवानी वापस अपनी पार्टी में पहुँच गये हैं लेकिन इस प्रकरण ने बहुत सारे सवाल पैदा कर दिये हैं जिस पर देश की जनता को एक बार फिर से गौर करना ज़रूरी है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जिन आडवानी को पार्टी अपना सबसे बड़ा नेता बताती थी उन्हीं को एक दिन के मतभेद के बाद सोशल मीडिया पर गाली गलौज का पात्र बना दिया गया। सबको मालूम है कि सोशल मीडिया पर आर. एस. एस. और भाजपा की जो पकड़ है उसकी कमान नरेन्द्र मोदी के हाथ में ही रहती है। इसलिये यह बिलकुल स्पष्ट है कि लाल कृष्ण आडवानी को औकात बताने की जिस योजना पर काम चल रहा था उसके सूत्रधार गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी हैं। नरेन्द्र मोदी मूल रूप से संघ के प्रचारक हैं। आर. एस. एस. के प्रचारकों के बारे में काँग्रेस की समझ में कभी कोई दुविधा नहीं रही है। इसी वजह से काँग्रेस ने कभी भी आर. एस. एस. के अधीन काम करने वाली पार्टियों को भरोसे लायक नहीं माना। यह अलग बात है कि देश में मौजूद लगभग सभी पार्टियों ने कभी न कभी जनसंघ या भाजपा के साथ चुनाव लड़ा है, या उनके साथ मिलकर सरकार बनायी है या ऐसी किसी सरकार को समर्थन दिया है जिसमें वामपन्थी और दक्षिणपंथी सभी ताक़तें एकजुट रही हों। काँग्रेस इकलौती पार्टी है जिसने आर. एस. एस. के किसी संगठन को कभी भी राजनीतिक सहयोगी बनने का मौक़ा नहीं दिया।
पिछले कई दिनों से यह चर्चा है कि भाजपा का मोदी युग आ गया है। हालाँकि काँग्रेस के लिये नरेन्द्र मोदी कोई भी फैक्टर नहीं हैं लेकिन जब वे भाजपा में आडवानी जैसे नेता को हाशिए पर ला चुके हैं तो उनकी राजनीति को समझना और उसे देश को बताना ज़रूरी है।
नरेन्द्र मोदी संघ के प्रचारक थे। उनकी विचारधारा और सोच वही है जो बचपन से संघ के लोगों के दिमाग में कूट-कूट कर भर दी जाती है। यदि आप नरेन्द्र मोदी का राजनीतिक जीवन देखें तो पता चल जायेगा कि वे संघ की ओर से भाजपा को सौंपे गये थे। उन्होंने ही आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या वाली रथयात्रा का प्रबन्धन किया था। उस यात्रा के बाद से उनकी समझ में आ गया था कि जनसम्पर्क के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में उस तरह की यात्राओं का महत्व है। शायद इसीलिये जब मुरली मनोहर जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और उन्होंने रथयात्रा करके श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने का मन बनाया तो नरेन्द्र मोदी उसमें सबसे पहले शामिल हो गये। लेकिन यात्रा शुरू होने के कई दिन बाद जोशी जी ने नरेन्द्र मोदी को यात्रा के प्रबन्धन से हटा दिया क्योंकि नरेन्द्र मोदी कई बार मुरली मनोहर जोशी के आग बढ़कर मीटिंग कर लेते थे और अखबारों और अन्य मीडिया में वे सारी बातें बता देते थे जो जोशी जी को बतानी होती थीं। हालाँकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता किइसके पहले भी नरेन्द्र मोदी राजनीतिक षड्यन्त्र किया करते रहे होंगे लेकिन सार्वजनिक रूप से प्रचारित नरेन्द्र मोदी का यह पहला प्रमुख षड्यन्त्र है। उसके बाद तो वे षड्यन्त्र के ज़रिये राजनीतिक सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ना शुरू हो गये।
अक्टूबर 2001 में जब वे गुजरात के मुख्यमन्त्री बने तो वह सफलता भी षड्यन्त्र की राजनीति की एक लम्बी कड़ी का नतीजा थी। जब भाजपा को 1995 में गुजरात की सत्ता मिली तो केशुभाई पटेल को मुख्यमन्त्री बनाया गया। नरेन्द्र मोदी उनके सबसे करीबी थे लेकिन मोदी ने ऐसा माहौल बनाया कि केशुभाई को मुख्यमन्त्री पद से हटना पड़ा। उस दौर में गुजरात भाजपा के जितने भी बड़े नेता थे सबको नरेन्द्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवानी के साथ मिलकर राजनीतिक रूप से ठिकाने लगाने का काम शुरू कर दिया। शंकर सिंह वाघेला, केशुभाई पटेल और सुरेश मेहता भी मोदी की षड्यन्त्र की राजनीति के शिकार बने। अक्टूबर 2001 में जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमन्त्री बने तो उन्होंने अहमदाबाद कीएलिसब्रिज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की योजना बनायी। उनको एक निश्चित समय सीमा में विधानसभा की सदस्यता लेनी ज़रूरी थी। एलिसब्रिज के विधायक हरेन पांड्या से मोदी ने सीट खाली करने को कहा। उन्होंने मना कर दिया। बाद में उनकी ह्त्या कर दी गयी। स्व. हरेन पंड्या के परिवार के लोगों ने सार्वजनिक रूप से हत्या के षड्यन्त्र में नरेन्द्र मोदी के शामिल होने की बात कही है।
मोदी के मुख्यमन्त्री बनने के कुछ महीनों की अन्दर ही गोधरा रेलवे स्टेशन पर हुये हादसे के बाद जिस तरह से गुजरात में 2002 का नरसंहार हुआ, उसको सभी जानते हैं। नरेन्द्र मोदी के षड्यन्त्रपूर्ण व्यक्तित्व का ही नतीजा है कि तीन दिन तक गुजरात में आर. एस. एस. के सहयोगी संगठन, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल वाले चुन चुन कर मुसलमानों को मारते रहे और सरकार ने नरसंहार के शिकार लोगों को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया। देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसे कई मामले विचारधीन हैं जिनसे पता लगता है कि गुजरात में हुये नरसंहार में नरेन्द्र मोदी का हाथ था लेकिन अभी तक उन्होंने देश और गुजरात की जनता से माफी नहीं माँगी है। गुजरात के नरसंहार का उदाहरण देकर नरेन्द्र मोदी के साथी पूरे देश में मुसलमानों के बीच में दहशत फैलाने का काम कर रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी जहाँ भी जाते हैं दावा करते हैं कि उनके राज्य में आर्थिक विकास बहुत तेज़ी से हो रहा है। लेकिन सच्चाई इस से बिलकुल अलग है। गुजरात सरकार का एकसोशियो-इकॉनॉमिक रिव्यू प्रकाशित किया जाता है। जो अफसर इसे तैयार करते हैं उनका काम बहुत ही कठिन होता है। उनको बता दिया जाता है कि अपनी छवि दुरुस्त करने के लिये मुख्यमन्त्री को ऐसे आँकड़े चाहिये जिनसे राज्य को विकास का मॉडल बताया जा सके। मुख्यमन्त्री के इस फरमान के बाद सोशियो-इकनामिक रिव्यू तैयार करने वालों का काम बहुत ही कठिन हो जाता है क्योंकि सही आँकड़े तो विकास की बात नहीं साबित कर पाते। सोशियो-इकनामिक रिव्यू में मोदी ने लिखवाया है कि उनके राज्य का आर्थिक विकास पिछले दस वर्षों में दहाई में रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि यह विकास दर कभी भी आठ प्रतिशत के आस पास से ऊपर गया ही नहीं जबकि देश के अन्य बहुत से राज्यों में विकास की बिलकुल अलग कहानी है जो गुजरात से बहुत अच्छी है। गुजरात में बच्चे और महिलायें कुपोषण की शिकार हैं। आर्थिक और औद्योगिक विकास के लिये नरेन्द्र मोदी ने अपने मित्रों को चुना है और उनके ही उद्योग लाभ कमा रहे हैं। उनके जिन मित्रों ने गुजरात में उद्योग लगा रखे हैं, उनको सरकारी सुविधा बिना किसी नियम क़ानून के दी जाती हैं और उनकी सम्पन्नता नरेन्द्र मोदी की मुख्य प्राथमिकता रहती है।
नरेन्द्र मोदी के विकास के आँकड़ों का ज़िक्र करने का उद्देश्य केवल यह है कि उनकी सच्चाई को छिपाने की क्षमता का उल्लेख किया जा सके। यही काम वे लाल कृष्ण आडवानी के मामले में भी कर रहे हैं। यह अलग बात है कि लाल कृष्ण आडवानी भी साम्प्रदायिक शक्तियों की ही प्रतिनिधि हैं। वे ही देश की राजनीति को बाँटने के लिये सबसे ज्यादा जिम्मेवार हैं। राम मन्दिर के नाम पर उन्होंने इस देश की गंगा-जमुनी संस्कृति को बाँटने का काम किया, हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच भेद पैदा करने की कोशिश की। बाबरी मसजिद ढहाने के केस में आज भी उनके ऊपर मुक़दमा चल रहा है। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने संगठन की मर्यादा को नहीं तोड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर उन्होंने भाजपा को मजबूती देने की कोशिश की। एक फासीवादी विचारधारा के संगठन, आर. एस. एस. के अधीन काम करते हुये भी उन्होंने कभी तानाशाह के रूप में काम नहीं किया। लेकिन आज उनको ही नरेन्द्र मोदी ने निहायत ही तानाशाही और फासीवादी तरीके से अपमानित किया और संघ के ज़रिये दबाव डलवाकर अपना इस्तीफ़ा वापस लेने के लिये मजबूर किया। नरेन्द्र मोदी ने यही लक्षण गुजरात के नरसंहार, हरेन पंड्या की ह्त्या, गुजरात में बहुत सारे लोगों के फर्जी इनकाउंटर में भी दिखाया है।
संकेत साफ़ है कि जो उनसे सहमत नहीं होगा उसे मार दिया जायेगा। अपने साथियों और संरक्षकों केशुभाई पटेल, शंकर सिंह वाघेला। हरेन पंड्या ,गोरधन झडपिया, काशीराम राना, सुरेश मेहता और अब लालकृष्ण आडवानी , सबके साथ नरेन्द्र मोदी ने षड्यंत्र किया। यह किसी भी फासीवादी राजनेता की सबसे खास पहचान है और नरेन्द्र मोदी फासीवादी राजनीति के समकालीन युग के सबसे ज्वलंत उदाहरण हैं।

जहाँ तक काँग्रेस का प्रश्न है, वह हमेशा ही फासीवादी और साम्प्रदायिक ताक़तों का मुकाबला करती रही है। आगे भी करती रहेगी। आजादी के पहले हिन्दू महासभा, आर. एस. एस. औरमुस्लिम लीग की साम्प्रदायिकता का मुकाबला काँग्रेस ने किया, आज़ादी के बाद जनसंघ, आर. एस. एस., शिवसेना और अकाली दल की साम्प्रदायिकता का मुकाबला भी काँग्रेस कर रही है। काँग्रेस ने साम्प्रदायिकता विरोध की अपनी राजनीति से कभी समझौता नहीं किया और अपने बड़े से बड़े नेताओं की शहादत को देखा। महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की ह्त्या देश में सक्रिय साम्प्रदायिक ताक़तों की तरफ से फैलाई नफरत के कारण ही हुयी। एक बात और गौर करने की है कि आर. एस. एस. और भाजपा का कोई भी नेता आज़ादी की लड़ाई में शामिल नहीं हुआ था। इसलिये अक्सर देखा गया है कि भाजपा वाले महात्मा गांधी और सरदार पटेल को अपना बताने के चक्कर में रहते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि आर. एस. एस. के सबसे बड़े नेता को महात्मा गांधी की हत्या के अपराध में हिरासत में लिया गया था सौर सरदार पटेल ने गृहमन्त्री के रूप में आर. एस. एस. से अण्डरटेकिंग लेकर उनको जेल से रिहा किया था। काँग्रेस को मालूम है कि जिस तरह से 2004 के चुनावों के पहले असत्य को आधार बनाकर चलाया गया भाजपा का कार्यक्रम,” इंडिया शाइनिंग“ मजाक का विषय बना था उसी तरह से भाजपा की तरफ से शुरू हुआ फासीवाद का कार्यक्रम भी जनता की निगाह से बच नहीं पायेगा और भाजपा 2014 में भी मुँह के बल गिरेगी।
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