पटना। एनडीए से अलग होने के बाद बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों लगातार कड़वाहट घुलती जा रही है। दोनों पार्टियां एक दूसरे पर न केवल आरोप लगा रही हैं बल्कि एक दूसरे को सबक सिखाने का भी दावा कर रही हैं। पहले बिहार बीजेपी ने नीतीश के सामने नरेंद्र मोदी को खड़ा करने की मांग की और अब नीतीश ने बीजेपी से फिर दोस्ती नहीं करने और औकात दिखाने की बात कह डाली है। दरअसल, ये पूरा मामला शत्रुघ्न सिन्हा के उस बयान से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने कहा था कि नीतीश में पीएम बनने के सारे गुण और समय आने पर जेडीयू फिर से बीजेपी के साथ आ सकती है। इस पर नीतीश ने कहा कि हमने बीजेपी से पिंड छुड़ाकर बहुत अच्छा किया है और फिर दोस्ती मुमकिन नहीं है।
क्यों आया नीतीश कुमार को गुस्सा?
दरअसल, मंगलवार को विधानसभा में बोधगया मंदिर संशोधन पर चर्चा हो रही थी, लेकिन नीतीश कुमार के बोलने से पहले ही बीजेपी के विधायक वॉकआउट कर गये। इस पर नीतीश को गुस्सा आ गया और उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि बीजेपी में अब सुनने का धैर्य खत्म हो गया और इस पार्टी की बुरी गत होने वाली है।
कभी मेरे नाम पर वोट मांगते थे
नीतीश कुमार ने बीजेपी पर करारा प्रहार करते हुए कहा कि बीजेपी उनके नाम पर वोट मांगकर आज स्थिति में है, लेकिन अब और नहीं चलेगा। नीतीश कुमार ने कहा कि महाबोधि मंदिर प्रबंधन पर भी रुख स्पष्ट किया। इस कानून के अनुसार गया के जिलाधिकारी महोबोधि मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष तभी हो सकते है जब वह हिन्दू हों। उन्होंने कहा कि गया का जिलाधिकारी अगर किसी अन्य सम्प्रदाय का हो तो ऐसी स्थिति में राज्य सरकार किसी अन्य अधिकारी को नामित करती है, जो महाबोधि मंदिर प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बन सकता है। नीतीश कुमार ने कहा कि इस तरह का प्रावधान संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार ने संशोधन विधेयक लाई है, जिसमें गया के जिलाधिकारी को हिंदू सम्प्रदाय का रहने की स्थिति में ही महाबोधि मंदिर प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनने के प्रावधान को समाप्त किया जा सके।