अजमेर। भारत सदियांे से विश्व का आध्यात्मिक गुरू रहा है और यहां की सभ्यता और संस्कृति इतनी महान है कि हर कोई उसे अपनाना चाहता है। यह बात अलग है कि भारत के लोग ही अपनी संस्कृति का महत्व नही समझ कर पश्चिमी संस्कृति के पीछे भाग रहे है। यह उदगार वृन्दावन में चल रही इस्काॅन संस्था के धर्म गुरू इंडोरो जिमी स्वामी ने धार्मिक नगरी पुष्कर में व्यक्त किए। इस्काॅन गु्रप का 300 सदस्यीय दल गुरूवार को पुष्कर पहुंचा जहां पर जगतपिता ब्रह्मा का आर्शिवाद प्राप्त करने के बाद पुष्कर सरोवर के लिए रवाना हुआ। इस दौरान यह जत्था जहां जहां से गुजरा वहा हरे रामा हरे कृष्णा की गुंज सुनाई देने लगी। ग्रुप के सदस्यो ने बाजारो और सरोवर में भजनो के साथ नाच गाकर अपनी भक्ति का संदेश दिया। सभी मंदिरो के दर्शन करने के बाद गु्रप के सदस्यो ने कृष्णभक्ति के भजनो का ऐसा समां बंाधा की बाहर से आए श्रृद्धालु एक बार सोचने को मजबूर हो गए की विदेशी होकर इस तरह भक्ति में कैसे डूब सकते है। सरोवर में स्नान, कृष्णभक्ति का जाप, दडंवत प्रणाम, ढोलक की थाप सहित कई ऐसे नजारे थे जो लेागो के आर्कषण का केन्द्र रहे। धर्मगुरू ने बताया की में ना तो किसी धर्म से हुं ना किसी देश से हुॅ ना कोई मेरी कोई जाति है और ना कोई लिंग। मंै और समस्त संसार भगवान कृष्ण का अंश मात्र है इसलिए इस नश्वर शरीर पर अभिमान करने के बजाए भगवान को सौंप देना चाहिए। भागवत गीता को दुनिया का सबसे बडा ग्रंथ बताते हुए कहा कि गीता का सार ही जीवन का लक्ष्य है। इस दौरान महिलाओ ने भी हथियार शिक्षा का अनुठा प्रदर्शन किया।