श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन सुदामा चरित्र का वर्णन

DSC_0042DSC_0030अजमेर / 02 जुलाई 2015 गुरुवार / पुरूषोत्तम मास के पावन अवसर पर हाथी भाटा स्थित लक्ष्मीनारायण मन्दिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन सुदामा चरित्र का वर्णन किया गया एवं सम्पूर्ण कथा का माहत्म्य वह शोभायात्रा के साथ श्रीभागवत् जी का विश्राम हुआ। सुदामा चरित्र सुनाते हुये वृन्दावन के संत भागवत भ्रमर आचार्य मयंक मनीष ने कहा भी-
‘सुदामा चरित्र’ अत्यन्त स्वाभाविक, हृदय ग्राही सरल, एवं भावपूर्ण कथा है। इसमें एक ही गुरु के यहां अध्ययन करने वाले दो गुरु-भाईयों, सुदामा और श्रीकृष्ण की आदर्श मैत्री का अत्यन्त मनोहारी चित्रण किया गया है। सुदामा एक दरिद्र ब्राह्मण था और कृष्ण यदुवंशियों के सिरमौर। सुदामा एक सामान्य मनुष्य थे किन्तु श्रीकृष्ण आर्य जाति में नवजीवन संचार करने वाले योगिराज और महापुरूष ही नहीं अपितु ‘धर्मसंस्थापनार्थाय’ ईश्वर के अवतार भी थे, ऐसे दो विपरीत स्थिति, स्वभाव और सत्ता वाले व्यक्तियों के बीच मैत्री की रसपूणर्् व्यन्जना की है वह अपने में एक अलभ्य और अनूठा चरित्र है।
मैत्री प्रेम भावना की एक उदात्त कोटि है। यद्यपि इसकी गति द्वयाश्रित होती है किन्तु उस अन्योन्याश्रयिता में स्वार्थ की भावना के लिये किन्चित भी स्थान नहीं होता। सामान्यतया यदि मैत्री का व्यवहारनुकूल विभेद करें तो एक संसार यात्रा के मार्ग में परस्पर सहायता का रूप ग्रहण करके सद्व्यवहार मात्र रहती है, किन्तु दूसरी हृदय में उतर कर एक ऐसे दिव्य भावलोक की सृष्टि करती है जिसमें केवल सब कुछ दे देने की ही मंगल कामना दिखाई पड़ती है। इस स्थान पर पहुंची हुई मैत्री भक्ति का स्वरूप ग्रहण कर लेती है। सुदामा चरित्र में यद्यपि मैत्री की दोनों विधाओं का निरूपण किया गया है।
कथा के विश्राम के अवसर पर श्रीमद भागवत जी की शोभायात्रा निकाली गई। कथा के विश्राम पर मुख्य यजमान वासुदेव मित्तल ने भागवत जी का पूजन एवं आरती की।
उमेश गर्ग
मो. 9829793705

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