अपनी शक्ति को पहचाने नारी

पाश्चात्यीकरण से बढ़ी स्त्री में असुरक्षा
तीन दिवसीय अखिल भारतीय महिला साहित्यकार सम्मेलन के दूसरे दिन महिलाओं की स्थिति पर हुई चर्चा

IMG_0094अजमेर/अखिल भारतीय साहित्य परिषद् अजमेर और महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘अखिल भारतीय महिला साहित्यकार सम्मेलन‘ में आज 26 अक्टूबर, 2015 को हुए विविध विचार सत्रों में भारतीय संस्कृति में स्त्री गौरव, परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति व समस्याओं पर खुलकर चर्चा हुई। खास बात यह रही कि अजमेर के साथ-साथ पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़ आदि स्थानों के महाविद्यालयों से 50-60 से अधिक युवा छात्र-छात्राओं ने भी मनपूर्वक चर्चा में हिस्सा लिया। कई बार महिला व पुरूष संभागियों में नोंक-झोंक भी हुई, पर यही इस सम्मेलन का सकारात्मक पहलु भी रहा। मुख्य संयोजक डॉ बद्रीप्रसाद पंचोली ने कहा भी कि महिलाओं की समस्याओं पर महिला व पुरूष दोनों को साथ बैठकर चिन्तन करना पड़ेगा तभी कोई सार्थक समाधान निकल सकेगा। सह संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने सत्रों में भाग लेने वाले सभी प्रबुद्धजनों का आभार जताया। डॉ विमलेश शर्मा, डॉ पूनम पाण्डे, डॉ शमा खान, अखिलेश शर्मा, दुष्यंत पारीक, गौरव चौरसिया, डॉ अजीत पटेल, डॉ जयदेव, लालसिंह पुरोहित, अशोक बागावत, कविता मीणा, डॉ अशोक चारण व सुमित्रा ने आयोजन में सहयोग किया।
सत्रों में हुई सार्थक चर्चा- आज तीन सत्रों में विचार विमर्श हुआ। महिला सुरक्षा विषय पर हुए प्रथम सत्र में ये विचार उभर कर सामने आए कि वेद और हमारी सांस्कृतिक परम्पराएं जिस प्रकार के पहनावे, हाव-भाव, व्यवहार की बात कहती हैं, आज उससे इतर आधुनिकता के नाम पर होने वाला प्रदर्शन भी महिला सुरक्षा को बेधता है, वहीं पाश्चात्यीकरण के प्रभाव से उपजी विकृत मानसिकता के कारण ही आज स्त्री मे असुरक्षा का भाव दिखाई पड़ता है। सत्र की अध्यक्षता डॉ क्रांति कनाटे ने की तथा सारस्वत अतिथि डॉ श्रद्धा चौहान रहीं। संचालन बिहार से आई डॉ मीनाक्षी मीनल ने किया। महिला शक्तिकरण विषय पर केन्द्रित दूसरे सत्र में कहा गया कि नारी शक्ति ही है किन्तु वह स्वयं इसे भूल गयी है। आज फिर से नारी को अपनी शक्ति को पहचानकर, समाज और परिवार के उत्थान में अपनी भूमिका को जानकर व्यवहार में लाना ही यथार्थ में महिला शक्तिकरण है। यहाँ प्रकृति, विकृति और संस्कृति का भेद स्पष्ट करते हुए बताया गया कि महिला में निहीत ऊर्जा और शक्ति में ही समाज के विकास की संभावनाएं देखनी चाहिए। सत्र की अध्यक्षता केन्द्रीय विश्वविद्यालय की डॉ एन लक्ष्मी अय्यर ने की तथा सारस्वत अतिथि बड़ौदा से आयीं डॉ जयश्री जोशी थंीं। संचालन डॉ. पूनम पाण्डे ने किया। तृतीय सत्र का विषय था-नवउदारवाद की चुनौतियां और महिला। इसमें विद्वानों ने कहा कि नवउदारवाद की कल्पना सर्वथा विदेशी है क्योंकि भारत तो सदैव उदार ही रहा है। पाश्यात्य अंधानुकरण के बजाय पश्चिमी आचरण के अनुसरण में हमें अपनी संस्कृति के अनुरूप मूल्यों का निर्वहन का ख्याल रखना होगा। महिलाएं स्वयं को बाजारवाद का शिकार होने से स्वयं रोकें। सत्रों में डॉ नवल किशोर भाभड़ा, डॉ सरोज गुप्ता, डॉ कृष्णा जैमिनी, जेबा रशीद, डॉ.रेखा ताम्रकर, आदि ने भी विचार व्यक्त किये। सांयकाल में कवयित्री सम्मेलन में कविताओं का रंग खूब जमा। डॉ. क्रांति कनाटे ने संचालन किया और अध्यक्षता डॉ प्रतिमा वाजपेयी ने की।
आज 27 अक्टूबर को प्रातः 9.00 बजे से परिवार निर्माण में महिला की भूमिका विषय पर चर्चा सत्र होगा, जिसकी अध्यक्षता चिति संधान योग की अधिष्ठात्री स्वामी अनादि सरस्वती करेंगी। प्रातः 10.30 बजे समापन समारोह होगा। इसमें मुख्य अतिथि गोवा की माननीय राज्यपाल डॉ मृदुला सिन्हा हांेगी तथा विशिष्ट अतिथि जल संसाधन मंत्री किरण माहेश्वरी रहेंगी। राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्षा सुमन शर्मा कार्यक्रम की सरस्वत अतिथि होंगी तथा अध्यक्षता मदस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो कैलाश सोढाणी करेंगे। स्वागताध्यक्ष महापौर धर्मेन्द्र गहलोत हों्रगे।

उमेश कुमार चौरसिया
सह-संयोजक
एवं अजमेर जिला संयोजक(अ.भा.सा.प.)
संपर्क-9829482601

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