वेद को आचरण में लाने की आवश्यकता हैे

दो दिवसीय राष्ट्रीय वेद सम्मेलन हुआ शुरू
IMG_1081अजमेर/ओमकार ध्वनि का मूल विज्ञान है और यही वेद का आधार है। स्वतं़त्रता पूर्व वेद शिक्षा हमारी गुरूकुल परम्परा का महत्वपूर्ण हिस्सा थी किन्तु आज शिक्षा का स्वरूप ही बिगड़ गया है। वर्तमान समय में नये सिरे से वेदों की गवैषणा की जानी चाहिए। वेद कहता है कि मनुष्य होतो मनुष्यता के लिए जिओ। ये विचार आसाम से आए वेद विद्वान डॉ. देवेनचन्द्र दास ‘सुदामा‘ ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद् अजमेर एवं ग्लोबल सिनर्जी समिति जयपुर के संयक्त तत्वावधान में ऋषि उद्यान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेद सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में अध्यक्षीय उद्बोधन में कहे। वेद महर्षि डॉ. फतहसिंह की स्मृति में हो रहे इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए राजस्थान संस्कृत अकादमी की निदेशक डॉ. रेणुका राठौड़ ने डॉ फतहसिंह के शोध ग्रंथ ‘वाक‘ पर विवेचन प्रस्तुत करते हुए कहा कि वेदों पर वैज्ञानिक चिन्तन की आवश्यकता है। वेदों की भारत में पुनर्स्थापना के लिए वैज्ञानिक तरीके से वेदों की महत्ता व उपयोगिता को प्रायोगिक रूप से समझना चाहिए। विज्ञान और आध्यात्म को जोड़कर ही भारत के उज्ज्वल भविष्य की कामना की जा सकती है।
विशिष्ट अतिथि कनाडा से आए रोहित चौहान ने ‘आध्यात्मिकता और विज्ञान‘ विषय पर बोलते हुए कहा कि वेदों की ऋचाओं को समझने से अधिक वेदों को आज आचरण में लाने की आवश्यकता है। उन्होंने वेद, विज्ञान और अध्यात्म पर चर्चा करते हुए कहा कि विज्ञान आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति है। परमात्मा को पाने के लिए मृत्यु की जरूरत नहीं वरन् ध्यान के माध्यम से परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। संयोजक डॉ बद्रीप्रसाद पंचोली ने वेदों को व्यावहारिकता में लाने के लिए डॉ. फतहसिंह के योगदान के विषय में बताते हुए वेद सम्मेलन की रूपरेखा बताई। परिषद् के जिला संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने अतिथियों का स्वागत किया।
इस वेद सम्मेलन में देशभर से अनेक वेदविज्ञ व वेद शोधार्थी भाग ले रहे हैं। प्रथम दिन हुए विविध सत्रों में ग्लोबल सिनर्जी की अध्यक्षा डॉ श्रद्धा चौहान, डॉ श्रद्धा चौहान ने ‘हमारा जीवन दर्शन‘ पर विस्तार से वार्ता प्रस्तुत की। डॉ अखिलेश शर्मा, डॉ पूनम पाण्डे, अशोक, दुष्यन्त पारीक आदि ने विविध सत्रों के संचालन में सहयोग किया। इस अवसर पर डॉ फतहसिंह द्वारा रचित कृति ‘कामायनी सौन्दर्य‘ तथा जगदीश नागर व उर्मिला नागर रचित ‘शिक्षा की अवधारणाएं‘ पुस्तकों का लोकार्पण भी अतिथियों ने किया।
कल सात फरवरी को प्रातः 10 बजे से होने वाले दो सत्रों में ‘वेद और आधुनिक जीवन‘ तथा ‘वेद और पर्यावरण‘ विषयों पर चर्चा होगी। कोटा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ परमेन््रद्र दशोरा, मदस विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ पी एल चतुर्वेदी व जोधपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ लोकेश चन्द्र शेखावत विविध सत्रों में शिरकत करेंगे। सम्मेलन में वेदों से संबंधित शोध पत्र भी पढ़े जाएंगे।
उमेश कुमार चौरसिया
जिला संयोजक
अखिल भारतीय साहित्य परिषद
संपर्क-9829482601

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