नाटकों का हुआ प्रभावी प्रदर्शन

कबीर के संवादों ने किया रोमांचित
विश्व रंगमंच दिवस की पूर्व वेला पर हुआ अनूठा आयोजन

IMG_1270IMG_1272अजमेर/कला व साहित्य के प्रति समर्पित संस्था ‘नाट्यवृंद‘ द्वारा विश्व रंगमंच दिवस व संस्था के 30 वें स्थापना दिवस की पूर्व वेला पर शनिवार 26 मार्च, 2016 को टर्निंग पाइंट स्कूल में ‘नाट्य चेतना कार्यशाला‘ का अनूठा आयोजन हुआ। प्रसिद्ध रंगकर्मी उमेश कुमार चौरसिया की परिकल्पना व निर्देशन में नाट्यवृंद थियेटर एकेडमी के युवा कलाकारों के साथ स्कूली बच्चों ने सम्मिलित रूप से विविध रोचक थियेटर एक्सरसाइज के माध्यम से नाट्यविधा के विविध पहलुओं को जाना। इस कार्यशाला की विशेषता यह रही कि नाट्याभ्यास के दौरान जहाँ बच्चे वर्तमान ज्वलंत समस्याओं से रूबरू हुए वहीं उन्होंने नाट्यजगत के आधार माने जाने वाले नाटककारों की रचना शैली को भी समझा। महाकवि कालिदास, रामकुमार वर्मा और भीष्म साहनी रचित नाटकों के सस्वर पठन में प्रभावी संवादों ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। प्रशिक्षण ऐसा बंधा हुआ कि मात्र. आधे घण्टे के अभ्यास में छः लघु नाटकों की प्रभावी प्रस्तुति भी हो गई। कार्यशाला में कुल 36 बच्चों व युवाओं ने भाग लिया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार एस.पी.मित्तल ने कहा कि नयी पीढ़ी को नाट्यकला के माध्यम से वर्तमान चुनौतिपूर्ण स्थितियों से मुकाबले का सामर्थ्य प्राप्त करते हुए अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा मिलती है। संस्कार भारती राजस्थान के क्षेत्रप्रमुख डॉ सुरेश बबलानी ने नाट्यशास्त्र के प्रणेता भरतमुनि के संदर्भ में नाटक को सामाजिक समरसता का प्रतीक बताया। समाजसेवी सोमरत्न आर्य ने कार्यशाला के द्वारा निखरी रचनात्मकता की सराहना की। समन्वयक डॉ अनन्त भटनागर ने भारतीय नाट्य परम्परा के श्रेष्ठ रचनाकारों व उनके नाटकों का विशेष परिचय दिया। कुशल संचालन गीतकार डॉ पूनम पाण्डे ने किया। प्राचार्य रश्मि जैन ने आभार व्यक्त किया। इंजीनियर संदीप पाण्डे, जनसंपर्क अधिकारी वर्षा चड्ढा, सह संयोजक अंकित शांडिल्य, दीपिका वैष्णव, इमरान, मोहित, हितेश माथुर, भवानी कुशवाहा व लखन चौरसिया इत्यादि का सहयोग रहा।
भारतीय नाट्य परम्परा को जाना- कार्यशाला में नाट्यपाठ सत्र के तहत महाकवि कलिदास रचित नाटक अभिज्ञान शकुन्तलम्, रामकुमार वर्मा रचित कौमुदी महोत्सव और भीष्म साहनी रचित कबिरा खड़ा बजार में नाटकों का सस्वर पाठ बच्चों ने किया। शकुन्तला के पुत्र भरत के प्रसिद्ध संवाद ‘हे सिंहनी! जम्हाई ले, मैं तेरे दाँत गिनूंगा‘ जैसे प्रसंगों ने रोमांचित कर दिया। कौमुदी महोत्सव में चन्द्रगुप्त और चाणक्य के प्रखर संवादों ने भारतीय गौरवशाली इतिहास और उत्कृष्ट नाट्यशैली का परिचय दिया। कबीर की ‘मो को कहाँ ढूँढे बंदे मैं तो तेरे पास में‘ जैसी तीखी साखियों ने दिखावे से परे स़च्ची भक्ति का संदेश दिया। हुई प्रभावी नाट्य प्रस्तुतियां- समापन सत्र में कार्यशाला के दौरान केवल आधे घण्टे के इंप्रोवाइजेशन अभ्यास के तहत तैयार किये गए तीन लघु नाटकों सावरकर बोलता है, आजादी की कहानी व शिक्षा का प्रभाव की प्रभावी प्रस्तुतियां भी हुईं। अंग्रेजों के अत्याचार सहते सावरकर की देशभक्ति, मंगल पाण्डे, भगतसिंह, लाजपत राय व लक्ष्मीबाई के आजादी में योगदान और स्त्री सम्मान, कौमी एकता व बेराजगारी की समस्या जैसे मुद्दों की प्रस्तुति ने दर्शकों को खासा प्रभावित किया।
-उमेश कुमार चौरसिया
निर्देशक ‘नाट्यवृंद‘
संपर्क-9829482601

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