पाठ्यक्रम चरित्र निर्माण एवं देषभक्त नागरिक तैयार करने वाला होना चाहिये

DSC03528DSC03519DSC03521अजमेर 14 मई, पाठ्यक्रम चरित्र निर्माण, संस्कारक्षम एवं देषभक्त नागरिक तैयार करने वाला तथा प्राचीन से लेकर नवीनतम ज्ञान से समृद्ध करने वाला होना चाहिये। यह बात रूक्टा (राष्ट्रीय) के द्वारा सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर में ‘‘पाठ्यक्रम का स्वरूप’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए षिक्षाविद् एवं चिन्तक हनुमान सिंह राठौड़ ने कही। हनुमान सिंह राठौड़ ने वर्तमान में पाठ्यक्रम बदलाव पर हो रहे दुष्प्रचार के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए बताया कि पिछले 60-65 वर्षों से योजनाबद्ध रूप से केवल कुछ महापुरूषों को ही केन्द्रित कर एक विषेष विचारधारा को प्रोत्साहित करने के लिये पाठ्यक्रमों का निर्माण किया गया। उन्होंने बताया कि वर्तमान पुस्तकों में पहली बार बाबा साहेब अम्बेडकर के समग्र चिन्तन, राजस्थान के महापुरूषों, शहीदों, लेखकों, क्रांतिकारियों, वीरांगनाओं एवं विभिन्न धर्मों के सन्त-महापुरूषों को शामिल किया गया है ताकि विद्यार्थी न केवल संस्कारवान बन सके, अपितु अपनी गौरवषाली संस्कृति को जानकर प्रेरणा पा सके। उन्होंने बताया कि पं0 नेहरू के योगदान को इतिहास से हटाने की बात सोचना भी कल्पना से परे है। वर्तमान में कक्षा 9 व 11 की पुस्तकें माध्यमिक षिक्षा बोर्ड द्वारा जारी हुई हैं जिनमें यथोचित स्थान पर उनके महत्वपूर्ण योगदान का वर्णन है इसके अतिरिक्त कक्षा 10 व 12 की पुस्तकें आना शेष हैं। अतः पाठ्यक्रम को समग्र रूप से देखने के बाद ही प्रतिक्रिया देनी चाहिये। लेकिन दुर्भाग्य है कि पुस्तकों को बिना गम्भीरता से देखे महज राजनीति से प्रेरित होकर दुष्प्रचार कर समाज में भम्र फैलाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि षिक्षण सत्र 2009-10 की पाठ्यपुस्तकों में एक राजनैतिक विचारधारा विषेष के दबाव में तत्कालीन सरकार ने पी.सी.व्यास कमेटी बनाकर बड़े पैमाने पर पाठ्यपुस्तकों में अनुचित कांट छांट की थी। यहां तक कि नयी पुस्तकें लिखवाने की भी प्रतीक्षा नहीं करते हुए महापुरूषों के नामों एवं अन्य गौरवपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों पर कालिख पोतकर विद्यालयों में पुस्तकों को भेजा गया।उन्होंने पी.सी. व्यास कमेटी की रिपोर्ट के कुछ निम्न उद्धरण प्रस्तुत किएः-

(1) ‘‘हिन्दुआ सूरज महाराणा प्रताप’’ – पुस्तक में जहां भी उल्लेखित था वहां हिन्दुआ सूरज पर कालिख पोती गई।
(2) दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, वीर सावरकर के नामों पर दिये गये अध्यायों को विलोपित कर दिया गया।
(3) ‘‘नवीन अनुसंधानों के अनुसार भारत ही आर्यों का मूल स्थान है’’ को विलोपित किया गया जबकि अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने डी.एन.ए. मैपिंग के द्वारा सिद्ध कर चुके है कि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे।
(4) ‘‘लक्ष्मण: रामस्य भ्राता’’ के स्थान पर ‘‘श्याम: रमेषस्य भ्राता’’ पढ़वाया गया। जबकि राम व लक्ष्मण भारतीय मानस में अत्यन्त पवित्र स्थान रखते हैं।
(5) पाठ्यक्रम में से भारत की सांस्कृतिक धरोहर ‘‘कुम्भ मेला’’ पाठ विलोपित कर दिया गया। इसी प्रकार राष्ट्र भाव जगाने वाला पाठ ‘‘स्वराष्ट्र’’ भी विलोपित कर दिया गया।
(6) कांग्रेस की स्थापना से जुड़े हुए ‘‘सेफ्टी वाल्व’’ जैसे ऐतिहासिक तथ्यों को भी हटा दिया गया।
(7) प्राचीन संस्कृत सुभाषित ‘‘संघे शक्ति कलौयुगे’’ केवल इसलिए हटाया गया कि कहीं इसे आर.एस.एस. से जुड़ा हुआ जानकर लोग प्रभावित ना हो जाए।
(8) चन्द्रगुप्त, शुक्र नीति, प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन, महर्षि वाल्मीकि, भारतीय सांस्कृतिक एकता आदि भारत के गौरवषाली इतिहास का बोध कराने वाले पाठों को मात्र इसलिये हटाया गया कि यह ‘‘वामपंथी चिन्तन’’ जो भारत के गौरवषाली इतिहास पर विष्वास नहीं रखता है, के संगत नहीं थे।
श्री हनुमान सिंह राठौड़ ने आह्वान किया कि सभी षिक्षकों एवं समाज बन्धुओं का कर्तव्य है कि हमारे बालक क्या पढ़ें इसका गहन चिन्तन व विष्लेषण कर पाठ्यक्रम निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं ताकि इतिहास का कोई तथ्य मात्र एक परिवार को प्रस्थापित करने के लिए छिपाया ना जा सके।
इस गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए सर्वधर्म मैत्री सभा के अध्यक्ष श्री प्रकाष जैन ने पाठ्यक्रम बदलाव का स्वागत करते हुए कहा कि बालक को संस्कारवान बनाने के लिए देष एवं राज्य के सभी धर्मों एवं महापुरूषों का आवष्यकतानुसार पाठ्यक्रम में अध्ययन करवाना ही चाहिये। संगोष्ठी में अखिल भारतीय स्वाध्याय प्राज्ञ सभा की अध्यक्षा श्रीमती सुषीला पोखरणा ने कहा कि पाठ्यक्रमों में संस्कारवान नागरिक तैयार करने की क्षमता होनी चाहिये । वर्षों तक अपनी जड़ों से काटने का ही परिणाम है कि परिवार विखंडित हो रहे हैं तथा भ्रष्टाचार बढ़ा है। उन्होंने आचार्य भिक्षु एवं आचार्य तुलसी को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर सरकार का आभार जताया।संगोष्ठी में समाजसेवी श्री छीतरमल टेपण ने भी बाबा साहेब अम्बेडकर पर पाठ शामिल करने हेतु सरकार का आभार जताया। उन्होंने बताया कि देषभक्ति एवं समरसता बढ़ाने वाले पाठों को आगे आने वाले पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिये। संगोष्ठी के प्रारम्भ में विषय प्रवर्तन करते हुए रूक्टा (राष्ट्रीय) के महामंत्री डॉ0 नारायण लाल गुप्ता ने कहा कि पाठ्यक्रम परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया होती है इसलिए चुनाव आयोग की भांति एक सर्वाधिकार सम्पन्न निष्पक्ष ‘‘षिक्षा नियामक आयोग’’ की स्थापना की जानी चाहिये। पाठ्यक्रम का निर्माण एवं परिवर्तन इस आयोग की अनुषंसा पर होगा तो इस तरह के दुष्प्रचार का कोई स्थान नहीं रहेगा। डॉ0 गुप्ता ने कहा कि जे.एन.यू. जैसी घटनाओं के पीछे छात्र इतने जिम्मेदार नहीं है जितना कि उनके मस्तिष्क में विष डालने वाली विचारधारा विषेष की पुस्तकें एवं पाठ्यक्रम हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के उपाचार्य प्रो0 एस.के. देव ने की। कार्यक्रम का संचालन इकाई सचिव डॉ0 लीलाधर सोनी ने किया। संगोष्ठी में प्रदेष के विभिन्न महाविद्यालयों के षिक्षक, अभिभावक तथा समाज के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
(डॉ0 नारायण लाल गुप्ता)
म्हामंत्री रूक्टा (राष्ट्रीय)

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