कर्मयोग की प्रवृत्ति ही ध्यान

विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा अजमेर द्वारा हरिभाऊ उपाध्याय नगर (मुख्य) में प्रातः 5.45 से 7.15 बजे तक योग एवं ध्यान सत्र का आयोजन

WP_000166आज मनुष्य निरंतर कर्मशील हो रहा है परंतु ध्यान युक्त कर्म के अभाव में यह कर्मशीलता तनाव का कारण बनती जा रही है। ध्यान की नित्य साधना से किया गया कार्य योग का साधन बन जाता है जिसे महर्षि पतंजलि ने कर्मयोग कहा है। विवेकानन्द केन्द्र अपनी सुव्यवस्थित कार्यपद्धति के माध्यम से एवं अखिल भारतीय स्तर पर कार्यरत युवा सेवाव्रतियों के सहयोग से योग, स्वाध्याय एवं संस्कार को लेकर समाज में कार्य कर रहा है उसके लिए समाज को भी केन्द्र का योगक्षेम करने को तत्पर होना चाहिए। शास्त्रों में धन की तीन गतियाँ दान, भोग एवं नाश बताई गई हैं तथा दान को धन की सर्वोंत्तम गति बताया गया है। उक्त विचार सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतज्ञ डॉ. रजनीश चारण द्वारा विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की स्थानीय शाखा के तत्वावधान में आयोजित किए जा रहे योग एवं ध्यान सत्र के नवम दिवस के योग अभ्यास एवं ध्यान सत्र में व्यक्त किए। उन्होंने उपस्थित साधकों को प्रातःकालीन रागों पर आधारित ओंकार ध्यान का अभ्यास कराया।
योग वर्ग प्रमुख रविन्द्र जैन ने बताया कि इस योग सत्र में कुल 75 पंजीकरण हुए हैं तथा इस योग सत्र का समापन न करते हुए इसे नियमित योगवर्ग में परिणित किया जा रहा है। स्थानीय नागरिकों को योग का व्यवहारिक एवं सैद्धांतिक प्रशिक्षण प्रदान करते हुए स्थानीय नागरिकों के द्वारा ही इस नियमित योग वर्ग का संचालन सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, हरिभाऊ उपाध्याय नगर में प्रतिदिन प्रातः 5.30 से 7.00 बजे तक आयोजित किया जाएगा।

(डॉ. स्वतन्त्र शर्मा)
विभाग प्रमुख
9414259410

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