’’माध्यमिक परीक्षा प्रणाली: समीक्षा एवं समुन्नयन‘‘

अजमेर 31 जुलाई। राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जे.पी. सिंघल ने कहा है कि शिक्षा और परीक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की बात पिछले कई दशकों से राजनीतिज्ञ से लेकर आम आदमी कर रहा है, परन्तु क्या परिवर्तन होना चाहिए इस बिन्दु पर चिन्तन-मंथन का अभाव है। जब तक प्राथमिक, माध्यमिक, विश्वविद्यालय, पेशवर शिक्षा में इन्टीग्रेटेड सिस्टम अर्थात् आपसी तालमेल नहीं होगा तब तक शिक्षा का परिदृश्य नहीं बदल सकता। शिक्षा में परिवर्तन का आधार राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक और समाज की आवश्यकतायें हो और पश्चिमी देशों की शिक्षा व्यवस्था को आत्मसात़ नहीं किया जाये।
प्रो. सिंघल रविवार को राजस्थान माध्यमिक षिक्षा बोर्ड एवं शैक्षिक मंथन संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ’’माध्यमिक परीक्षा प्रणाली: समीक्षा एवं समुन्नयन‘‘ विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि परीक्षा प्रणाली सिर्फ इसी बात का मूल्यांकन कर रही है कि सूचना कितनी है और विद्यार्थी ने इसको कितना स्मरण किया है। परीक्षा प्रणाली में ज्ञान और विवेक का आंकलन नहीं किया जा रहा है। शिक्षकों में ही परिवर्तन करने की प्रतिबद्धता का अभाव है। उनमें विचारधारा और प्रयोग करने की क्षमता लुप्त प्रायः हो गई है। शिक्षक को वेतनभोगी कर्मचारी की मानसिकता दूर कर आचार्य जैसा आचरण में ढ़लना होगा तभी बदलाव की कोशिशें कारगर होंगी। सूचनाऐं इन्टरनेट पर ओवरलोड की स्थिति में है। विद्यार्थी के मन में शिक्षक केवल तर्क और प्रमाण के आधार पर ही अपना स्थान बना सकता है। किसी भी युवा मन को सन्तुष्ट करने के लिए तर्क चाहिए और जो परिवर्तन शिक्षक करने चाह रहे है उसका प्रमाण चाहिए। परितर्वन के तर्क को प्रमाण के साथ रखा जायेगा तो सर्वग्राह्य होगा। शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य केवल परीक्षा में अव्वल रहना नहीं अपितु विवेक हासिल करना होना चाहिए।
संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. बी.एल. चौधरी ने कहा कि देश में सरकारी विद्यालयों में शिक्षा, अंग्रेजी माध्यमों के स्कूल और पब्लिक स्कूलों की अवधारणा जब तक समाप्त नहीं होगी और सभी विद्यार्थियों को एक समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं मिलेगा तब तक वर्ग भेद की खाई को नहीं पाटा जा सकता है। देश में नक्सलवाद और उग्रवाद होने का एक कारण शिक्षा में असमानता भी है। पिछले कुछ दशकों में शिक्षक के विद्यार्थी के मन में श्रद्धा और समाज में प्रतिष्ठा का ह्नास हुआ है। अध्ययन-अध्यापन के लिए अध्यापक और विद्यार्थी का अनुपात तय होना आवश्यक है। जिस अनुपात में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी उस अनुपात में शिक्षकों के पद नहीं बढ़े।
प्रो. चौधरी ने कहा कि किसी भी शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थी को सम्पूर्ण मानव बनाने वाले तीन तत्व आई.क्यू. यानि तर्क और स्मरण शक्ति और बुद्धिमतता ई.क्यू अर्थात् भावनात्मक पहलू और एस. क्यू अर्थात् आध्यात्मिक पहलू आवश्यक है। परीक्षा प्रणाली में सिर्फ आई.क्यू. का ही मूल्यांकन किया जा रहा है। शिक्षा में भावनात्मक और आध्यत्मिक पहलू को किसी स्तर पर स्थान नहीं दिया जा रहा है। गोष्ठी के अन्तिम दिन चौथा चर्चा सत्र्-परीक्षा के मनोवैज्ञानिक पक्ष पर हरिभाऊ उपाध्याय महिला शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय में व्याख्याता डॉ. सुमन बाला बिस्सु और पंचम चर्चा सत्र् में राजसान ओपन स्कूल के पूर्व सचिव दयाराम महरिया ने सतत् एवं समग्र मूल्यांकन पर अपनी वार्ता दी। इस सत्र की अध्यक्षता बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रो. भरतराम कुम्हार ने की। समापन सत्र के प्रारम्भ में बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. चौधरी ने राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जे.पी. सिंघल का शॉल और श्रीफल भेंट कर स्वागत किया। अन्त में बोर्ड के उपनिदेशक-जनसम्पर्क राजेन्द्र गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
उप निदेषक (जनसम्पर्क)

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