ऋषि मेले के दूसरे दिन रही विभिन्न प्रेरक ज्ञानवद्र्धक कार्यक्रमों की धूम

dsc_0015dsc_0186दिनांक ५ नवम्बर २०१६, शनिवार- परोपकारिणी सभा अजमेर के तत्त्वाधान में नवजागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती का १३३वाँ बलिदान समारोह-”ऋषि मेलाÓÓ के दूसरे दिन विभिन्न प्रेरक, ज्ञानवद्र्धक और अन्धविश्वास निवारक कार्यक्रमों की धूम रही।
प्रात: ५.०० से ६.३० बजे तक आसन-प्राणायाम-ध्यान-संध्या का कार्यक्रम चला। तत्पश्चात् ३१ अक्टूबर से ही ऋषि उद्यान की भव्य यज्ञशाला में प्रात: सायं दो सत्रों में चल रहे ”ऋग्वेद पारायण यज्ञÓÓ के छठे दिन पवित्र यज्ञाग्रि में सुमधुर वेद मन्त्रों के साथ आहुतियाँ प्रदान की गई। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य सत्यानन्द वेदवागीश ने अपने उपदेश में वेद मन्त्रों की व्याख्या करते हुए कहा कि ईश्वर एक है और उस एक ईश्वर के ही गुणों के अनुसार कई नाम है- एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति।-(वेद)
गणेश कोई हाथी के सूंड वाले कल्पित देवता नहीं बल्कि सभी गणों में विद्यमान-ईश्वर का नाम है। इसी प्रकार भारती, शिव, इड़ा, सरस्वती (अनेक प्रकार के ज्ञानों को जाननेवाला) एक ईश्वर के ही गुणवाचक नाम हैं, कोई कल्पित पौराणिक देवियों के नहीं-यह वेद स्पष्ट करता है। पुलिंग, स्त्रीलिंग व नपुंसक लिंग-तीनों लिंगों में वेदों में एक ही ईश्वर के अनेक नाम आये हैं।
”द्वा सुपर्णा सयुजा सखयाÓÓ- इस वेद मन्त्र की व्याख्या करते हुये आपने कहा कि वेद के अनुसार ईश्वर, जीव व प्रकृति (त्रैतवाद) अनादि सत्तायें हैं। वेद मंत्र की व्याख्या में आपने कहा कि महिलायें उत्तम गुण, कर्म और स्वभाव वाली होगी तभी परिवार, समाज और राष्ट्र उन्नति करेगा क्योंकि माता निर्माता भवति मातायें ही राष्ट्र का निर्माण करती हैं। ईश्वर ही मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है क्योंकि वह हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित कर हमारा कल्याण करता है। सुपात्र को देने की भावना रखने वालों का ही मार्ग प्रशस्त होता है। जैसे शक्तिशाली राजा के मित्र को कोई तंग नहीं करता वैसे ही ईश्वर को मित्र बना लेने (उसकी वेदाज्ञानुसार चलने) पर काम, क्रोध मद मोह, लोभ, मत्सर तंग नहीं करते। हम भक्ति भी करें और सदा पुण्य कर्म भी करते रहें, तभी जीवन सफल होगा।
आज के यज्ञ के यजमान राजस्थान के लोकायुक्त श्री सज्जन सिंह कोठारी जी, अजमेर के प्रसिद्ध ‘शारदाÓ परिवार के श्री मनोज शारदा और सियाराम मिल्स के मैनेजर श्रुतिशील झंवर जी थे।
लोकायुक्त का सम्मान
यज्ञ के पश्चात् इमानदार लोकायुक्त श्री सज्जन सिंह कोठारी जी को परोपकारिणी सभा की ओर से ‘न्याय रत्नÓ की उपाधि प्रदान करा व शाल ओढ़ाकर करतल ध्वनि के बीच सम्मानित किया गया।
पुस्तक विमोचन
तत्पश्चात् ‘आन्ध्रा मेंÓ सर्वाधिक प्रसारित तेलुगु दैनिक ‘आन्ध्रभूमिÓ के मुख्य सम्पादक श्री एम.वी.आर. शास्त्री द्वारा स्वामी श्रद्धानन्द के ऊपर लिखित अंग्रेजी पुस्तक का लेखक द्वारा ही किया गया। हिन्दी अनुवाद ”असली धर्मात्माÓÓ पुस्तक का विमोचन गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुरेन्द्र कुमार, प्रो. राजेन्द्र ‘जिज्ञासुÓ, श्री सज्जन सिंह कोठारी लोकायुक्त द्वारा किया गया। पुस्तक की विषय वस्तु को स्पष्ट करते हुये इतिहासज्ञ प्रो. राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द ही एक मात्र ऐसे पवित्रात्मा थे जिन्होंने अंग्रेजी सिपाहियों के संगीनों के सामने निर्भयता से अपनी छाती आगे कर दी थी। साथ ही एक मात्र स्वामी जी को अंगेजी सरकार ने अतिखतरनाक समझते हुए लोहे के पिंजड़े में कैद किया था।
वेद प्रवचन
यज्ञोपरांत वेद प्रवचन करते हुए प्रो. डॉ. वेदपाल जी (मेरठ) ने कहा कि सब मरण धर्मामनुष्य चाहते हैं कि मैं अमत्र्य हो जाऊँ, परन्तु इस शरीर क साथ मानव अमत्र्य नहीं हो सकता, शरीर नाशवान है। परन्तु जो विचक्षण (रागरहित) बुद्धिवाला हो जाता है वह अमरत्व को प्राप्त कर लेता है। जन्म जन्मान्तरों के बुरे संस्कार कब आलम्बन आने पर जागृत हो जायें – यह कहा नहीं जा सकता। अत: हमें सतत सचेत जागरुक रहना होगा और ईश्वर की उपासना करनी होगी। जिसका वैभव जितना बढ़ता है, उसको ईश्वर उतनी ही अधिक उपासना करनी चाहिये ताकि चित्त में निर्मलता और आत्मा में बल आ जाय। तभी वह बुराई को छोडऩे में समर्थ होगा। आत्मा में बल न रहने पर बुराई नहीं छूटती। ज्ञान और कर्म की श्रेष्ठता से हम अमृतत्व को प्राप्त करते हैं। यश: शरीर से जीवित रहते हैं।
वेद गोष्ठी
ऋषि उद्यान के सरस्वती भवन में चल रहे वेद गोष्ठी के दूसरे दिन, हैदराबाद स्थित शोध संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बी.एम. मेहत्रे ने ‘आधुनिक विज्ञान और वैदिक विज्ञानÓ विषय पर अपना विचार प्रस्तुत करते हुये कहा कि आइन्सटीन समेत कई वैज्ञानिक ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। वैज्ञानिक पदार्थ का पूर्ण नाश नहीं अपितु रूपान्तरण मानते हैं जो कि वैदिक सिद्धान्त है कि प्रकृति अनश्वर अनादि है।
आज लगभग दो अरब (१ अरब ९६ करोड़ ८ लाख) पूर्व सृष्टि उत्पत्ति की वैदिक मान्यता को नासा समेत विश्व के कई वैज्ञानिक स्वीकारने लगे हैं। वेदगोष्ठी में प्रो. शिवनाराण उपाधयाय (कोटा) ब्र. कविता, बाबूलाल जोशी (इन्दौर) डॉ. मोक्षराज जी (अजमेर) आदि ने अपने शोध-पत्र पढ़े। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. प्रो. वेदपाल जी (मेरठ) व संचालन वेदप्रकाश जी (हिन्दी निदेशालय, दिल्ली) ने किये।
धर्मान्तरण पर गोष्ठी- धर्मान्तरण अर्थात् राष्ट्रान्तरण
”धर्मान्तरण समस्या और समाधानÓÓ विषय पर अपना विचार व्यक्त करते हुये प्रधानाचार्य डॉ. ओमप्रकाश जी (माउंट आबू) ने कहा कि धर्मातरण के प्रति हम सचेत नहीं हुये तो भारतीय संस्कृति का नामोनिशान मिट जायेगा हम पुन: गुलाम हो जायेंगे और विश्व में आतंक, अशान्ति, अराजकता का साम्राज्य होगा। समाधान बताते हुये उन्होंने कहा कि जन्मगत जाति को अस्वीकार कर छुआछुत मिटाकर हमें सबको गले लगाना होगा। प्रत्येक देशभक्त को वोट डालने जरुर जाना होगा और वोट और वोट क्षेत्र जाति के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता और देशभक्ति के आधार पर देना होगा। जो योग्य को वोट देने नहीं जायेगा वह अधार्मिक व्यक्ति होगा, क्योंकि वेद योग्य राजा को चुनने की आज्ञा देता है। श्री इन्द्रजीत देव जी (यमुनानगर, हरियाणा) ने कहा कि हमें उतसाहपूर्वक शुद्धि के कार्य में लगना होगा। सबको आर्य बनाना वेद में ईश्वर का आदेश है। उन्होंने स्वामी दयानन्द और स्वामी श्रद्धानन्द को स्मरण करते हुये कहा कि उन्होंने लाखों विधर्मियों को शुद्ध कर पुन: वैदिक धर्म में लाकर ईश्वरीय आदेश का पालन किया।
हमें साहसपूर्वक शुद्धिकरण के कार्यक्रम चलाकर देश की और वैदिक संस्कृति की रक्षा करनी होगी। वस्तुत: शुद्धिकरण एक अविद्याग्रस्त मनुष्य को सच्चा मानव बनाने की प्रक्रिया है। हमें विधर्मियों को ‘सत्यार्थप्रकाशÓ पढ़ाना होगा। गोष्ठी की अध्यक्षता श्री ओममुनि ने की।
आधुनिक शिक्षा शिष्टाचार नहीं, भ्रष्टाचार सीखती है
१०.०० से १.०० बजे तक चलने वाली ”शिक्षा नीति देश का भविष्यÓÓ परिचर्चा में बोलते हुये डॉ. सुभाष वेदालंकार ने कहा कि अच्छा इन्जीनियर, अच्छा डाक्टर आदि बनाने पर जोर देती है पर अच्छा मनुष्य नहीं बनाती। प्रो. डॉ. वीरेन्द्र वेदालंकार (पंजाब वि. विद्यालय, चण्डीगढ) ने कहा कि लाहौर, पाकिस्तान के सेन्ट्रल लाइब्रेरी में स्थित एक पुस्तक में लिखा मिला कि महर्षि दयानन्द जब भी लाहौर आते थे, ऋग्वेद को अपने सिर पर उठाकर लाहौर की गलियों में घुमा करते थे। उनका उपदेश था कि वेदों के ज्ञान और सदाचार को जीवन में करेगें तभी हमारी वास्तविक उन्नति होगी। हमारा अंतिम लक्ष्य विद्या है-
विद्या वही जो इंसान को इंसान बनाने डॉ. अलंकार ने कहा कि जो शिक्षा मानव को सदाचारी संयमी नहीं बनाती वह शिक्षा नहीं है अपितु कुशिक्षा है।
आज हम देखते हैं कि एक आधुनिक शिक्षा में शिक्षित भ्रष्ट व्यक्ति देश, समाज का भारी नुकसान कर रहा है। शिक्षा गलत होगी तो विद्या ठीक नहीं होगी। अथर्ववेद में अध्यापक-शिष्य संबंध को स्पष्ट करते हुये उन्होंने कहा कि उनका संबंध माता और उसके गर्भ में स्थित बच्चे के संबंध जैसा होना चाहिये। जैसे माता अपने गर्भ स्थित शिशु गोरा-काला आदि सूरत को देखे बिना उसका सदा ध्यान रखती है, वैसे ही गुरु को शिष्य की जाति, रंग, को भूलकर सतत उसकी उन्नति का ध्यान रखना चाहिये, तभी समाज उन्नत होगा।
परिचर्चा में बोलते हुए डॉ. सूर्यादेवी चतुर्वेदा ने महर्षि दयानन्द शिक्षा की परिभाषा को उद्धृत किया शिक्षा वह है जिससे विद्या सभ्यता: धर्मात्मा और जितेन्द्रियतादि शुभ गुण होवें ओर जिससे व्यक्ति दुगुणों से छूट सके। विद्या वही है जो हमें भवसागर से पार कर दे। जब आचार्य चरित्रवान् और शिष्य समर्पण करने वाला होता है तभी शिष्य की उन्नति होती है।
व्याकरण पढऩे का मतलब है कि जो अच्छा है, उपादेय है उसका ग्रहण करना और अहितकारी गुण कर्म स्वभाव का व्याम कर देना। उन्होंने कहा कि महिलाओं को धर्म शिक्षा के साथ-साथ चरक-सुश्रुत का आयुर्वेद अवश्य पढऩा चाहिये। यदि मातायें आयुर्वेद की ज्ञाता होगी तो उनका परिवार स्वस्थ होगा, उन्हें डाक्टर के पास नहीं जाना पड़ेगा।
आचार्य वही है जो सदाचार को सीखाता है और बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करता है।
संस्कृत=सम् (=भला)+कृत (=करना)
जो संस्कृत सीख ऋषिकृत और वेद साहित्य पढ़ेगा वह अपना और समाज का भला करेगा।
ठाकुर विक्रम सिंह (दिल्ली) ने कहा सह शिक्षा की अहितकारी बताते हुये उसे हटाने की बात कही तभी हम चरित्रवान् नागरकि बना पायेंगे। साथ ही उन्होंने मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने की बात कही।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. सुरेन्द्र कुमार (उपकुलपति कांगड़ी, हरिद्वार) ने कहा कि आज की शिक्षा पद्धति की सबसे बड़ी त्रुटि यही है कि उसमें सदाचार संयम और धर्म को विस्मृत कर दिया गया है।
=(उदात्त नैतिक मूल्य)
आज शिक्षक और विद्यार्थी में शिष्टाचार नहीं अपितु भ्रष्टाचार का बोलबाला है। दुव्र्यसनी शिक्षक अपने शिष्य को सद्गुणी नहीं बना सकता। आज शिक्षा विभाग ने शिक्षक के ऊपर चरित्र निर्माण का दायित्व सौंपा ही नहीं है। सदाचार रहित शिक्षा का कुपरिणाम आज जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों में देखने को मिला जब उन्होंने इसी देश के अन्न से पलकर इसी देश के टुकड़े करने की बातें की।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में इन्जिनियरिंग, मेडिकल, बी.फार्मा आदि के छात्रों के लिये भी भारतीय संस्कृति और सदाचार का एक पेपर पढऩा होता है।
विद्वानों का सम्मान
आज एक कार्यक्रम में निम्रलिखित तीन विद्वानों का सम्मान किया गया
१. प्रो. राजेन्द्र जी जिज्ञासु (अबोहर, पंजाब) को अमेरिका स्थित डॉ. वीरदेव बिष्ट के विक्रम प्रस्थान) पुरस्कार द्वारा २१०००/- की राशि व शाल प्रदान कर सम्मानित किया गया।
२. प्राधानाचार्य ओमप्रकाश आर्य (गुरुकुल माउंट आबू) को आर्ष गुरुकुल अध्यापक पुरस्कार से।
३. ब्र. वरुणदेव शर्मा को
गोष्ठी- ऋषि दयानन्द के विचारों की प्रासंगिकता-
अध्यक्ष- सज्जन सिंह कोठारी, लोकायुक्त, राजस्थान
संयोजक- डॉ. दिनेश शर्मा
इस गोष्ठी में बोलते हुये डॉ. प्रशस्य मित्र शास्त्री (राष्ट्रपति पदक प्राप्त व साहित्य अकादमी से पुरस्कृत) ने कहा कि महर्षि दयानन्द के विचारों से ही मानव, समाज और राष्ट्र की उन्नति संभव है। सबके लिये समान और सदाचारपूर्ण शिक्षा जो कि महर्षि की मान्यता ािी के द्वारा ही हमारा कल्याण होगा। वेद के अनुसार प्रत्येक मनुष्य में सुबुद्धि की प्राप्ति के लिये उसे शिक्षित करना अनिवार्य है। दयानन्द के अनुसार हम कुरीतियों अन्धविश्वास, पाखण्ड ओर अपसंस्कृति का निवारण कर ही समाज राष्ट्र का कल्याण कर सकते हैं। परिचर्चा जारी है।
गहरा रिश्ता है सामाजिक धार्मिक क्रान्ति के प्रणेता महर्षि दयानन्द का ऐतिहासिक नगरही अजमेर से- यही महर्षि ने अपना शरीर त्यागा तथा अजमेर महर्षि की कर्म भूमि रहा है।
ऋषि उद्यान बना ”लघु भारतÓÓ
देश के कोने-कोने से व विदेशों से श्रद्धालु जन ऋषि उद्यान में आये हैं जिससे ऐसा लग रहा है मानो एक ‘मिनी भारतÓ (लघु भारत) बस गया है।
सम्पूर्ण वातावरण वेद और ईश्वर भक्तिमय हो उठा
समय-समय पर उच्चरित होने वाले सुमुधुर ‘वेद मन्त्रोंÓ और देश के कोने-कोने से आये भजनोपदेशकों द्वारा ईश्वर भक्ति के सुमधुर आह्लादकारी भजनों से ऋषि उद्यान का वातावरण ईश्वर भक्ति रस से आप्लावित हो गया है।
डॉ. सुरेन्द्र कुमार कार्यकारी प्रधान चयनित- गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के उपकुलपति डॉ. सुरेन्द्र कुमार का कल सायं परोपकारिणी सभा के कार्यकारी प्रधान के रूप में चयन किया गया।
डॉ. सुरेन्द्र कुमार का आर्यजनों और समस्त देशवासियों के नाम सन्देश में डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि हम सबको मिलजुल कर एकताबद्ध होकर महर्षि दयानन्द के अधूरे कार्यों को पूरा करने में अपना तन-मन-धन सब लगा देना है, तभी हम अपना और अपने देश का कल्याण कर सकेंगे। महर्षि दयानन्द को उद्धृत करते हुये उन्होंने कहा कि मनुष्यों को उन लोगों की ही प्रशंसा करनी चाहिये जो सबके सुखों की वृद्धि करे। जो मनुष्य परस्पर वृद्धि करते हैं, वे सब ओर से बढ़ते हैं।
प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को दी गई शुभकामनाएँ भारत के सभी विश्वविद्यालयों में केन्द्र सरकार के मानव संसाधन विकास मन्त्रालय द्वारा ‘दयानन्द शोध पीठÓ की स्थापना करने के आदेश जारी करने के लिये डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को विश्व के सम्पूर्ण आर्यों और देशभक्तों की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ प्रदान की।
दिनांक ६ नवम्बर के कार्यक्रम-
५.०० से ६.३० बजे तक- आसन प्राणायाम-ध्यान संध्या
७.०० से ९.३० बजे तक-यज्ञ, वेद पाठ, पूर्णाहुति
९.३० से १०.०० बजे तक- वेद प्रवचन
१०.३० से १२.३० तक- भजन, प्रवचन, सम्मान और युवा सम्मेलन
२.०० से ५.०० बजे तक-गुरुकुल सम्मेलन
६.०० से ८.०० बजे तक-यज्ञ-सन्ध्या
८.०० से १०.०० बजे तक-धन्यवाद व समापन सत्र

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