नूतन उत्साह के साथ ऋषि मेला का समापन

dsc_0410दिनांक ६ नवम्बर २०१६, रविवार- परोपकारिणी सभा, अजमेर के तत्त्वाधान में नवजागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द का १३३ वाँ बलिदान समारोह- ‘ऋषि मेलाÓ का ऋषि सपनों को साकार करने क नूतन संकल्प क साथ आज समापन हो गया। ३१ अक्टूबर से ही ऋषि उद्यान में चल रहे ‘ऋग्वेद पारायण यज्ञÓ की यज्ञाग्रि में पवित्र वेद मन्त्रों के सुमधुर उच्चारण के साथ पूर्णाहुति की अंतिम आहुतियाँ श्रद्धापूर्वक प्रदान की गई। इससे पूर्व प्रात: ५.०० से ६.३० बजे तक आसन-प्राणायाम ध्यान सन्ध्या के कार्यक्रम चले।
कल दिनांक ५ नवम्बर की रात्रि ८.०० से १०.०० बजे तक चले ‘डॉ. धर्मवीर कृतज्ञता सम्मेलनÓ में परोपकारिणी सभा के पूर्व प्रधान दिवंगत (६ नवम्बर २०१६) अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक विद्वान् (अमेरीका, भारत, यूरोप, हॉलैण्ड में सतत वेद प्रचारक) प्रो. डॉ. धर्मवीर जी को भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित की गई। सम्मेलन में अपने भाव व्यक्त करते हुये गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के उपकुलपति, परोपकारिणी सभा के नवनिर्वाचित कार्यकारी प्रधान तथा डॉ. धर्मवीर जी के बालसखा व सहपाठी डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि डॉ. धर्मवीर के सपनों का सकार कर ही हम उन्हें वास्तविक श्रद्धाञ्जलि दें। इसी क्रम में सभी के मन्त्री श्री ओममुनि जी ने परोपकारिणी सभा द्वारा वेद प्रचार के लिये एक करोड़ रुपये का ‘डॉ. धर्मवीर स्थिर निधिÓ स्थापित करने की घोषणा की। रामयश कॉलेज दिल्ली के पूर्व प्राचार्य डॉ. रघुबीर वेदालंकार ने कहा कि विद्वान् डॉ. धर्मवीर के चले जाने से उत्पन्न हुई खाई को पाटने के लिये हम सभी आर्यों को एकताबद्ध हो जाना चाहिये। इतिहासज्ञ प्रो. राजेन्द्र जिज्ञासु (अबोहर, पंजाब) ने कहा कि डॉ. धर्मवीर जैसा विद्वान्, आचरणवान् सफल लेखक और वक्ता सदियों बाद ही उत्पन्न होते हैं। हैदराबाद स्थित शोध संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. बाबूराव मेहत्रे ने कहा कि-डॉ. धर्मवीर की दृष्टि ओर लेखनी पूर्ण वैज्ञानिक थी।
आज प्रात: ७.०० से ९.०० बजे तक चले ‘पारायण यज्ञÓ के यजमान परोपकारिणी सभा के कोषाध्यक्ष श्री सुभाष नवाल, मन्त्री श्री ओम मुनि व रोहतक (हरियाणा) के पूर्व प्राचार्य डॉ. जगदेव विद्यालंकार और कन्हैयालाल जी थे। यज्ञ के ब्रह्मा श्री सत्यानन्द वेदवागीश ने ऋग्वेद के सृष्टि निर्माण संबंधी सुप्रसिद्ध ‘नासदीय सूक्तÓ की व्याख्या करते हुये कहा कि ईश्वर अदृश्यमान प्रकृति के सत्व, रज और तम-परमाणुओं से दृश्यमान जगत की रचना करता है।
सारा ब्रह्माण्ड ईश्वर की तुलना में समुद्र में बिन्दु के समान है। ईश्वर के निर्दोष गुण, कर्म ओर स्वभाव का ध्यान-चिन्तन करने से हमारे मोह, मद मत्सर ईष्र्या, लोभ, क्रोध की भावनायें दूर होती हैं ओर उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। ईश्वर ही सर्वाधिक प्रशंसनीय और सर्वश्रेष्ठ है। ईश्वर की वेदाज्ञा का पालन करने से निश्चय ही कल्याण होता है। उन्होंनेे कहा कि मैक्समूलरादि पाश्चात्य विद्वानों के मत में वेद मानव इतिहास की सबसे प्राचीन पुस्तक है जबकि भारतीय विचार धारा के अनुसार वेद आदि सृष्टि में मानव के लौकिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिये दिया गया ईश्वरीय ज्ञान है जिसे महान विचारक टामस पेन भी मानते हैं।
संसार का सार ईश्वर-वेदमन्त्रों की व्याख्या करते हुये ब्रह्मा जी ने कहा कि-वेद ओर संसार का सार ईश्वर हैं और दयानन्द का सार-ईश्वर और सत्य को धारण करने की ईश्वराज्ञा है। महर्षि दयानन्द सत्य ओर न्याय के आचरण को ही सच्चा धर्म मानते हैं। वैदिक साहित्य में कहा गया-न हि सत्यात् परो धर्म: नानृतात् (असंत्य) पातक म्परम्। ईश्वर रूपी अग्रि ही हम सबको सच्चा रास्ता दिखाने वाला और आगे बढ़ाने वाला है। हम सबको पहले भजन (ईश्वराज्ञा का चिन्तन और आचरण) फिर भोजन करना चाहिये-तभी हमारी सच्ची उन्नति हो पायेगी। हमें ईश्वराज्ञा पालन रूप कर्मों को करने में ही अपना समय लगाना चाहिये, व्यर्थ के कर्मों में नहीं। उन्होंने वेद और महर्षि दयानन्द की प्रतिदिन यज्ञ करने की आज्ञा का उल्लेख करतेह हुये कहा कि वेद की बात न मानने से वेद की नहीं अपितु हमारी स्वयं की पराजय है। यज्ञ करने वातावरण शुद्ध, आरोग्य प्रदायक ओर बुद्धि पवित्र होती है। यज्ञ मनुष्य को स्वस्थ, नीरोग और उत्तम बुद्धिवाला बनाने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
पति-पत्नी समान मन वाले बनें- वेदमन्त्र की व्याख्या करते हुये आपने कहा कि जब पति-पत्नी और गुरु-शिष्य ईष्र्या, द्वेष से रहित होकर समर्पण भाव से परस्पर सहयोग के लिये समान मन वाले होंगे तभी परिवार, समाज और राष्ट्र की वास्तविक उन्नति होगी।
उन्होंने कहा कि जिसने महर्षि दयानन्द लिखित ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिकाÓ नहीं पढ़ी, वह वेद से लाभ नहीं उठा सकता। सायण महीधरादि भारतीय विद्वानों और पाश्चात्य विद्वानों के अश£ील भाष्य पढ़कर हम वेद से लाभ नहीं उठा सकते। हमें दयानन्द का कल्याणकारी ऋषि सम्मत भाष्य पढऩा ही भद्र होगा। आपने वेद मन्तव्येां को बताते हुये कहा कि यज्ञ करने-स्वास्थ्य और धन बढ़ते हैं। तथा ईश्वर की उपासना करने से आयु और सुख बढ़ते हैं। तथा ईश्वर की उपासना करने से आयु और सुख बढ़ते हैं।
यज्ञोपरान्त परोपकारिणी सभा के कोषाध्यक्ष ने घोषणाा कि मलूसर श्मशान स्थल पर जहाँ महर्षि दयानन्द का दाह संस्कार किया गया था, वहाँ लगभग १५ करोड़ की लागत से एक भव्य स्मारक बनाया जायेगा। साथ ही केन्द्र सरकार की सहायता से लगभग ५०-६० करोड़ की लागत से अजमेर में महर्षि दयानन्द स्मृति स्थल बनाया जायेगा।
१०.३० से १२.३० बजे तक चलने वाले ‘युवा सम्मेलनÓ में बोलते हुये अजय जी (दिल्ली) ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की दिशा तथा दशा उस राष्ट्र के युवा ही निर्धारित करते हैं। अत: युवाओं का चिन्तन तथा आचरण सदा सकारात्मक होना चाहिये और इस प्रकार की सकारात्मकता हमें वेद और महर्षि दयानन्द की शरण में आने पर ही प्राप्त होती है। कुछ एकांगी विद्वानों का मत है कि आज की व्यवस्था में युवा गलत करने के लिये मजबूर हैं, यह विचारधारा अति खतरनाक है।
आचार्य नन्दकिशोर जी (कुरुक्षेत्र, हरियाणा) ने कहा कि यदि हम बाल्यावस्था में ही बच्चों को अच्छे वैदिक संस्कार देंगें तभी हमें सकारात्मक सोच वाले युवा प्राप्त होंगे। आज नशाखोरी और अश्लीलता से युवाओं को बचाने के लिये गहन वेद और ‘सत्यार्थप्रकाशÓ के प्रचार की आवश्यकता है। ब्र. प्रभाकर जी ने कहा कि यदि कोई युवा एक बार भी मननपूर्वक महर्षि दयानन्द रचित कालजयी ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाशÓ पढ़ लेगा तो वह कभी कुमार्ग पर नहीं चलेगा। युवाओं को आज वेद और ऋषि कृत ग्रन्थों का स्वाध्याय करने के लिये प्रेरित करने से ही सभी समस्याओं का समाधान होगा। आचार्य सर्वमित्र जी (हरियाणा) ने कहा कि आज लोग वेद और नवजागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द को सुनने के लिये तैयार हैं पर हम ही उन्हें सुनाने नही जा रहे।
पं. भूपेन्द्र जी का भजन-
नौजवानों उठो जाति क ो जगाने के लिये
नाद वेदों का जमाने को सुनाने के लिये-
पर पूरा सभा पंडाल झूम उठा। ब्र. सोमेश जी- उपनिषद् वाक्य-अशिष्ट, बलिष्ठ, दृदिस्ठ- को उद्धृत करते हुये कहा कि सच्चा युवा वही है जो आशावादी, शारीरिक, मानसिक बौद्धिक बल वाला और दृढ़ संकल्प वाला हो। वेद ज्ञान से ही ऐसे युवा तैयार होंगे।
डॉ. मृत्युञ्जय जी (अजमेर) ने कहा कि आर्य वैदिक विचारधारा से ही भारतीय संस्कृति फली-फूली थी और पुन: इसी विचारधारा से वह कुमार्गों से हटकर पुन: प्रगति को प्राप्त करेगी। उन्होंने दीनबन्धु सी.एफ. ऐन्ड्रूज द्वारा यह कहने पर कि रवीन्द्रनाथ टैगोर के शान्ति निकेतन के छात्र अति सुन्दर गाते हैं। स्वामी श्रद्धानन्द ने गुरुकुल कांगड़ी के छात्रों की तरफ ईशारा करते हुये कहा कि यहाँ के छात्र सुन्दरता को जीता है। अपने जीवन में उतारे हुये हैं।
सम्मेलन की अध्यक्षता प्रो. राजेन्द्र जिज्ञासु और संचालन आचार्य कर्मवीर जी ने किया।
२ से ५ बजे तक चलने वाले गुरुकुल सम्मेलन में बोलते हुए ब्र. राजन जी ने कहा कि जीवन के सच्चे उद्देश्य का पता गुरुकुल में ही होता है। गुरुकुल के चरित्रवान् औश्र विद्वान् आचार्य ही हमें सन्मार्ग में प्रेरित करते हैं। ब्र. शिवनाथ ने डॉ. धर्मवीर जी को भावभीनी श्रद्धांजली दी। ब्र. भूदेव ने कहा कि गुरुकुल के ब्रह्मचारी दयानन्द मनिषी, चाणक्य और योगेश्वर श्रीकृष्ण ने समाज को नई दिशा दिये समाज का उद्धार किये।
ब्र. देवेन्द्र ने कहा कि आज की शिक्षानीति ने हमें हमारे वास्तविक महापुरुषों को हमारी नजरों से ओझल कर दिया है और अकबर, औरंगजेब आदि क्रूर नकली व्यक्तियों को हमारा महापुरुष बता रहे हैं।
ब्र. प्रशान्त ने महर्षि दयानन्द औश्र वेद की शिक्षाओं को जीवन में धारण करने की बात कही।
ब्र. सत्यव्रत व ब्र. रोशन ने प्रेरक मधुर भजन गाये।
होम्योपेथिक, आयुर्वेदिक, प्राकृतिक चिकित्सा विभाग की ओर से तीन दिवसीय शिविर का आयोजन भी किया गया। इन चिकित्सा शिविरों में सैंकड़ों लोगों ने उपचार लाभ प्राप्त किया। रोगियों को नि:शुल्क औषधियाँ प्रदान की गई।
करो वेद हाँ, नहीं तो सहो वेदना- अपने अध्यक्षीय भाषण में आचार्य सत्यजीत् जी ने कहा कि भारतीय इतिहास में जब-जब हम वेदों के पास रहे हैं, तब-तब हमारी व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शारीरिक, बौद्धिक, सभी प्रकार की उन्नतियाँ होती रहीं और जब-जब हम वेदों से दूर हुए, तब-तब हम अन्धविश्वास, पाखण्ड, अज्ञान और कुरीतियों में फंस कर अपना सर्वनाश कर लिये, गुलाम तक हो गये। अत: हमें पुन: वेदों की ओर लौटना होगा, सिर्फ तभी हमारा और हमारे समाज राष्ट्र का कल्याण होगा।
आर्यवीरों द्वारा भव्य व्यायाम प्रदर्शन- आर्यवीरों द्वारा सूर्य नमस्कार, लाठी, भाला, तलवार, मलखम्भ, जूडो कराटे, स्तूप आदि का भव्य प्रदर्शन आर्यवीरों द्वारा किया गया।

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