अजमेर में तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न
सभी धर्मो के प्रतिनिधि हुए शामिल
अजमेर, (नवाब हिदायतउल्ला) : जमीयत उलेमा-ए-हिंद का तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन यहां कायड़ विश्रामस्थली पर संपन्न हो गया। अंतिम दिन आम जलसे में महत्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकृत किए गए।
जमीयत के 33वें राष्ट्रीय अधिवेशन के अंतिम दिन रविवार को स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, लोकेश मुनि सागर, पंडित एन के शर्मा, अशोक भारती, बरेली के मौलाना तोफिक रजा, कमाल फारूखी, पदमश्री अख्तरूल वासे, अतीक अहमद, पूर्व केन्द्रीय मंत्री रहमान खान, अब्दुल वाहिद खत्री, मौलाना अय्यूब कासमी आदि शामिल हुए। इस मौके पर जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष उस्मान मंसूरपूरी व राष्ट्रीय महासचिव मौलाना असद मदनी ने कहा कि देश में वर्तमान हालातों को देखते हुए जरूरी है कि सभी लोग एक साथ मिलकर नई शुरूआत करें तभी समाज व देश के हालात बदल सकते है। अधिवेशन में शामिल अन्य वक्ताओं ने कहा कि जमीयत ने पहल कर सभी धर्मो के लोगों को एक मंच पर बैठाने का प्रयास किया है इसके दूरगामी परिणाम आएंगे। देश में शीघ्र ही एक नई राजनीति जन्म लेगी। अधिवेशन में देशभर से आए लगभग एक लाख लोगों ने भाग लिया।
अधिवेशन में अनेक प्रस्तावों पर चर्चा हुई जिनमें अहम दलित मुस्लिम और आदिवासी का गठजोड़ बनाना है। इस प्रस्ताव में माना गया है कि समाज का दलित वर्ग उपेक्षित है। हमने गैर मुस्लिम मजदूर वर्ग व हस्तशिल्पियों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया, इसके लिए हमें शर्मिन्दा होना चाहिए, माफी भी मांगनी चाहिए। अब हमारा उद्देश्य पिछड़े वर्ग के दबे-कुचले लोगों के लिए संघर्ष करना भी होगा। जमीयत साम्प्रदायिक सदभाव और हिन्दू मुस्लिम एकता के समर्थक भी है। यदि दलित मुस्लिम आदिवासी का गठजोड़ सफल होता है तो इससे मुसलमानों को ओर मजबूती मिलेगी। तीन दिवसीय अधिवेशन पूर्णरूप से सफल रहा।
एकता के लिए मतभेद खत्म हो
एक अन्य प्रस्ताव में कहा गया है कि आपसी मतभेदों को भुलाकर मुसलमानों में एकता होनी चाहिए। आपसी मतभेदों कील वजह से मुस्लिम सम्प्रदाय को बहुत नुकसान हुआ है। सभी मामलों में पंथ और मस्लक से ऊपर उठकर एक साथ संघर्ष की मिल्ली ऐतिहासिक परंपरा की तरफ पलटने की अपील की गई। जमीयत नेताओं ने कहा कि मतभेद एक ऐतिहासिक सच्चाई है और मानव प्रकृति की मांग हैं। जबकि हर हाल में आक्रामक चरमपंथ और शत्रुता के मामले बहुत बडी बुराई है जिस की मार मिल्लत की प्रतिष्ठा और सामूहिक क़ौमी हितों पर पडती है। जमीयत भारत के सभी मसलकों के अनुयायियों से अपील करती है कि अपने अपने मसलक व मज़हब पर क़ायम रहते हुए आपसी सहयोग के अवसरों को मसलकी पूर्वाग्रहों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय के स्तर पर बदलते हुए राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक माहौल में अब ऐसा समय आ गया है कि सभी मसलकों वाले राजनीतिक व सामाजिक स्तर पर मिल्लत की बेवजनी को दूर करने के लिए सामूहिक विषयों को मजबूती से उठाने और उनके समाधान के लिए एकता का प्रदर्शन करना होगा।
साम्प्रदायिक दंगों की हो रोकथाम
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अधिवेशन में साम्प्रदायिक दंगों को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया और कहा गया कि देश में होने वाले दंगों पर गहरी चिंता व्यक्त करता है, उन्हें रोकने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से प्रभावी उपायों की मांग की। वक्ताओं ने कहा कि दंगे देश के विकास और स्थिरता में बड़ी बाधा हैं, यह शर्मनाक बात है कि धार्मिक समारोहों और त्यौवहारों के अवसरों पर हिंसक घटनाएं होती हैं और उपद्रव फैलाया जाता है। चुनाव में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़का कर वोट हासिल करने के लिए हिंसा को एक रणनीति और हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। पिछले दिनों गाय की रक्षा के नाम पर विभिन्न सम्प्रदायों को निशाना बना कर दंगों के लिए माहौल बनाया गया। सांप्रदायिक दंगों के निवारण और उनका शिकार होने वालों को समान मुआवजे दिया जाएंके भुगतान के लिए ऐसा प्रभावी कानून बनाया जाए जो धार्मिक या अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के भेदभाव से परे हो और जिसमें सर्वोपरि दंगों की जि़म्मेदारी जिला प्रशासन, उच्च अधिकारियों और स्थानीय पुलिस पर हो तथा उन्हें अपने दायित्वों का ठीक से निर्वाह करने के लिए इतना सक्रिय बनाया जाए।
जमीयत ने यह मांग की कि जिन लोगों को बरसों जेल में रखा गया और उनका कोई दोष साबित नहीं हुआ, सरकार उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी ले तथा जिन अधिकारियों ने झूठे मुकदमे बनाए उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
आरक्षण की मांग
अधिवेश में आरक्षण के लिए भी प्रस्ताव पारित कर सरकार से कहा गया कि मुसलमान सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक क्षेत्रों में देश के अन्य वर्गों से पिछड़े हुए हैं। उनको मुख्यधारा में लाने के लिए आवश्यक है कि सकारात्मक हस्तक्षेप के द्वारा उन को इस तरह सहारा दिया जाए जिस तरह देश के अन्य पिछडे वर्गों को दिया गया है। सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू किया जाए और कमजोर मुस्लिम वर्गों अत्यंत पिछड़े (मोस्ट बैकवर्ड) के आधार पर आरक्षण दिया जाए। औक़ाफ की उपयोगिता और पिछड़े मुस्लिम अल्पसंख्यक आर्थिक विकास के हवाले से स्थापित वक्फ़़ डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को सक्रिय करके उसका लक्ष्य प्राप्त करऩे के लिए हर संभव कदम उठाए जाएं और जल्द से जल्द व्यावहारिक उपायों की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
मदरसों की हो स्थापना
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अधिवेशन शिक्षा में पिछड़े क्षेत्रों को दूर करने के लिए इस्लामिक मदरसों की स्थापना की गंभीर आवश्यकता बताया। उन्होंने कहा कि ग्रामीण आबादी और विशेष रूप से दूर-दराज के क्षेत्रों में अशिक्षा और दीन से बेख़बरी आम है। कई लोग सही कलिमा भी नहीं जानते। आधुनिक शिक्षा संस्थानों के छात्रों को दीन की प्रारंभिक और महत्वपूर्ण बुनियादी बातें भी पता नहीं।
(नवाब हिदायत उल्ला ,पत्रकार,मोबाइल 9413383786)