राणी सती दादी का भव्य सकीर्तन एवं मंगल पाठ

मुम्बई के ऋषि शर्मा की अमृतमयी वाणी में दादी का मंगल पाठ
Untitledअजमेर। मुंबई निवासी विख्यात गायक कलाकार ऋषि शर्मा जी की अमृतमयी वाणी में झुन्झूनू वाली राणी सती दादी के भव्य मंगल पाठ का आयोजन लोहागल रोड़ स्थित जवाहर रंगमंच पर किया गया ।
ऋषि शर्मा जी ने अपनी मधुर वाणी में राणी सती दादी की महिमा का गुणगान करते हुए बताया कि परम आराध्य श्री दादी जी के प्रताप उनके वैभव व अपने भक्तों पर निःस्वार्थ कृपा बरसाने वाली “माँ नारायाणी” विश्व विख्यात हैं। भारत में ही नही विदेशों में भी इनके भक्त और उपासक हैं| पौराणिक इतिहास से ज्ञात होता है कि महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में वीर अभीमन्यु वीर गति को प्राप्त हुए थे | उस समय उत्तरा जी को भगवान श्री कृष्णा जी ने वरदान दिया था कि कलयुग में वे “नारायाणी” के नाम से श्री सती दादी के रूप में विख्यात होंगी और जन जन का कल्याण करेगी, सारे दुनिया में पूजित होंगी।
ऋषि शर्मा जी ने राणी सती दादी का जीवन परिचय देते हुए बताया कि माँ नारायणी का जन्म वैश्य जाती के अग्रवाल वंश में हरियाणे में धनकुबेर सेठ श्री घुरसमाल जी गोयल के यहां मंगलवार रात के १२ बजे पश्चात हरियाणा की प्राचीन राजधानी ‘महम’ नगर के ‘ढ़ोकवा’ उपनगर में हुआ था। इनका नाम ‘नारायणी’ बाई रखा गया था। ये बचपन में धार्मिक व सतियों वाले खेल सखियों के साथ खेला करती थी। कथा आदि में विशेष रूचि लेती थी। बड़ी होने पर सेठजी ने इन्हे धार्मिक शिक्षा , शस्त्र शिक्षा, घुड़सवारी आदि की भी शिक्षा दिलाई थी। इन्होंने इनमें प्रवीणता प्राप्त कर ली थी। उस समय हरियाणा में ही नहीं उत्तर भारत में भी इनके मुकाबले कोई निशानेबाज बालिका एवं पुरुष भी नहीं था| बचपन में ही ये अपने चमत्कार दिखलाने लगी थी। इनका विवाह अग्रवाल कुल शिरोमणि हिसार राज्य के मुख्य दिवान स्वनाम धन्य सेठ श्री जालानदास जी बंसल के सुपुत्र श्री तनधनदास जी के साथ महम नगर में बहुत ही धूमधाम से समारोह पूर्वक हुआ था। उस समय हिसार का नवाबी राज्य आजकल के हरियाणा प्रदेश से बड़ा था। उसी नवाबी राज्य हिसार के श्री जालानदासजी मुख्य दिवान थे । विवाह के पश्चात श्री तनधनदास जी सायकाल अपनी ससुराल वाली घोड़ी पर सैर करने हिसार में जाया करते थे। इस घोड़ी पर नवाब के शहजादे का मन आ गया। नवाब ने घोड़ी छीनने का प्रयत्न किया। संघर्ष में बहुत से सैनिक सेनापति सहित मारे गये। घोड़ी चोरी करने के प्रयास में नवाबजादा भी मारा गया। दिवानजी ने मिलकर विचार किया और तुरन्त हिसार छोड़कर झुंझनू – नवाब के पास जाने का निर्णय किया। कालांतर में हिसार की फौजों ने झुंझुनू पर आक्रमण कर दिया। वीरता से लड़ते हुए तनधनदास जी वीर गति को प्राप्त गए। इससे पहाड़ी के नीचे क्षेत्र में वातावरण शान्त सा हो गया। पर्देदार रथ में बैंठी नवेली बहु नारायणी जी ने ये देखने के लिए जरा पर्दा हटाया कि क्या बात हुई। पर्दा हटाते ही जो कुछ देखा, वह सब देखकर सन्न रह गई। रथ के सामने उनके प्राणप्रिय तनधन जी का शव पड़ा हुआ था। थोड़े समय बाद ही वीर तनधन जी की मृत्यु समाचार जानकर नवाबी फौजें वापस उसी और घेरा डालने आगे लगी। वीरांगना नारायणी जी ने सब देखा और तुंरत निर्णय कर क्रोध में भर कर अपने पति की तलवार हाथ में लेकर उनकी घोडी पर सवार हो गई और रणचंडी सी फौजों पर टूट पड़ी। श्री नारायणी जी ने कुछ ही समय में अधिकांश नवाबी फौज को मार डाला। श्री नारायणी जी ने कहा की कोई है । ये सुनते ही घोडी का राणा (सेवक) घायल अवस्था में गिरता पड़ता आया। पुछा क्या आज्ञा है। नारायणी ने कहा – मैं इसी पहाड़ी के नीचे सती होउंगी। जल्दी चिता बनाओं, संध्या होने वाली है। राणाजी ने झुंझनू ले चलो – सेवक ने कहा। नारायणी ने कहा – मेरा झुंझनू तो सामने है, वहा जाकर क्या करुँगी। जल्दी चिता बना दो, सूर्य छिपने वाला है। ये सुनकर राणा ने आस पास से तुंरत लकड़िया चुनकर इकट्ठी कर चिता बनाई। सती की आज्ञा से राणा ने, तब वहाँ चिता बना दी थी । श्री नारायणी जी पति का शव लेकर चिता पर बैठ गई। उसी क्षण सती तेज से अग्नि प्रगट हुई । चिता धायं धायं जलने लगी। चिता धायं धायं कर जलने लगी। इसी बीच मारकाट भागदौड़ देखकर आपास के गावों के नर नारियों के झुंड इकट्ठे हो गए। चिता पर नारियल, चावल, घी आदि सामान चड़ने लगे। जय जयकार होने लगी। थोड़े समय बाद आप चिता में से देवी रूप में प्रगत हुई और मधुर वाणी से बोली – हे राणाजी, मेरी चिता ३ दिन में ठंडी हो जाएगी। भास्मी इकट्ठी करके मेरी चुनरी में बाँध हमारी घोड़ी पर रख देना। तुम भी बैठ जाना। घोड़ी ख़ुद ही जहाँ ठहर जाए उसी स्थान पर मै अपने प्यारे पति के साथ निवास करती हुई जन-जन का भला व कल्याण करती रहूंगी| श्री रानीसती जी माँ नारायणी सं. १३५२वि. में ‘देवसर‘ में सती हुई थी। इनके ही परिवार में बारह सतियाँ और हुई। इन बारह सतियों के छोटे छोटे सुंदर कलात्मक मंढ शवेत संगमरमर के एक पंक्ति में बने हुए थे। जिनकी मान्यता व् पूजा बराबर होती आ रही है ।
राजस्थान के झुंझुनू में स्थित है रानी सती का मंदिर। शहर के बीचों-बीच स्थित मंदिर झुंझुनू शहर का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। बाहर से देखने में ये मंदिर किसी राजमहल सा दिखाई देता है। पूरा मंदिर संगमरमर से निर्मित है। इसकी बाहरी दीवारों पर शानदार रंगीन चित्रकारी की गई है। मंदिर में शनिवार और रविवार को खास तौर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। रानी सती जी को समर्पित झुंझुनू का ये मंदिर 400 साल पुराना है। यह मंदिर सम्मान, ममता और स्त्री शक्ति का प्रतीक है। देश भर से भक्त रानी सती मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। भक्त यहां विशेष प्रार्थना करने के साथ ही भाद्रपद माह की अमावस्या पर आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में भी हिस्सा लेते हैं।
श्री रानी सती का मंदिर झूंझुनुं जिले का मुख्य आकर्षण है। श्री रानी सती अपने भक्तो में नारायणी माता, दादी, अम्बिका आदि नामो से प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बनने के पीछे की कथा इस प्रकार है की जब नारायणी माता अपने पति के साथ सती हुई तब उस चिता से एक तेजस्वी राख प्रकट हुई, इस राख को उनके घोड़े ने झुंझुनू में उस जगह पर छोड़ा जहा आज रानी सती का मंदिर है। श्री रानी सती मैया बहूत सारे मारवाड़ियो की कुल देवी के रूप में पूजित हैं। श्री रानी सती का मंदिर सत्रहवीं सदी का बना हुआ है और बहुत ही नयनाभिराम है। इस मंदिर की कलाक्रति अनुपम चित्रकारी इस मंदिर में चार चाँद लगा देती है भादो अमावस्या के दिन एक विशेष उत्सव इस मंदिर में आयोजित किया जाता है रानी सती मंदिर के अलावा पास में हनुमान मंदिर, सीता मंदिर, गणेश मंदिर, शिव मंदिर है। मारवाड़ी लोगो की मान्यता है की रानी सती माँ दुर्गा का अवतार है। मारवाड़ी परिवार और रानी सती भक्त अपने अपने घरो में रानी सती मैया की पूजा करते है।
मंगल कथा आयोजन में उमेश गर्ग, शैलेन्द्र अग्रवाल, शंकरलाल बंसल, ओमजी मंगल, किशनचंद बंसल, गोविन्द गर्ग, गोकुल जी अग्रवाल, ऊषा शर्मा और प्रदीप जी पोद्दार का विशेष सहयोग रहा। आयोजन में दादी परवर की समस्त महिलाएं उपस्थित थीं। दादी परिवार के शिवशंकर फतेहपुरीया एवं जगदीश गर्ग ने बताया की इस अवसर पर दादी का अनूपम श्रृंगार किया गया। साथ ही कथा के दौरान प्रसंगों के अनुस्व विभिन्न लीलाओं की झाँकी का दर्शन भी कराया गया। दादी परिवार के गोविन्द कूचीलीया एवं महेश चंद गुप्ता ने बताया कि मंगल पाठ की पूणहूती पर उपस्थित आस्थावान जनमेदिनी ज़ूम उठी। अरविन्द गर्ग ने बताया कि दादी के मंगल पाठ हेतु ताजा फूलों से भव्य स्टेज सजाया गया एवं कथा के दौरान समय-समय पर सुगंधित द्रव्यों का छिड़काव भी किया गया।

(उमेश गर्ग) मो.- 9829793705

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