14वें अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में गीत-गज़ल पर हुई सार्थक चर्चा

DSC_4020अजमेर/हिन्दी में गीत और उर्दु में गज़ल छांदय विधा के प्राचीन प्रतीक हैे, इनमें समय के साथ बहुत से बदलाव आए हैं। महफिल से निकलकर गज़ल मुफलिसों की अंजुमन तक पहुँच गयी है। वेदों की ऋचाओं से निकले छंद और गीत रीतिकाल, छायावाद से होते हुए लोकगीतों से आगे नवगीत तक जा पहुँच गए हैं। अब तो गीत गज़ल में वैयक्तिक बातें भी होने लगी हैं व्यथागान भी दिखाई देता है। रूप कोई भी बदल जाए फिर भी गीत हो या गज़ल उनका सरोकार मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक सरोकारों की अभिव्यक्ति में ही सार्थक लगता है। उर्दु के साथ हिन्दी में भी गज़ल लोकप्रिय हो रही है और गीत को तो लगभग सभी भारतीय भाषाओं ने अपनाया है। ऐेसे ही विचार ‘सृजनगाथा‘ संस्था की ओर से शिक्षा बोर्ड के रीट कार्यालय सभाभवन में आयोजित ‘14वाँ अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन‘ के प्रथम सत्र ‘‘गीत और गज¬़ल-सामर्थ्य और सरोकार‘ में उभरकर आए। अध्यक्षता कर रहे बोर्ड अध्यक्ष प्रो बी.एल.चौधरी ने कहा कि साहित्य समाज को राह दिखाता है और गीत और गज़ल उसके सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम हैं। राजस्थान में तो वीरगाथाओं को गीतों के माध्यम से कहने की गौरवशाली परम्परा रही है।
मुख्य अतिथि मण्डल रेल प्रबन्धक पुनीत चावला ने आह्वान किया कि हिन्दी को यदि सरल-सहज बनाकर सभी अपने व्यवहार में अपना लें तो हिन्दी दिवस मनाने की आवश्यकता नहीं रहे। हिन्दी हम सबकी भाषा बन जाए। विशिष्ट अतिथि मदस विश्वविद्यालय के डीन प्रो नगेन्द्र सिंह ने कबीर, तुलसी, रहीम, सूर इत्यादि के संदर्भ से भारतीय संस्कृति में रचे-बसे गीतों की विशिष्टता पर चर्चा की। सम्मेलन के प्रमुख संयोजक और स्वागताध्यक्ष स्वामी शिवज्योतिषानन्द ने सभी अतिथियों का शॉल ओढ़ाकर अभिनन्दन किया। राजस्थान साहित्य अकादमी के सदस्य उमेश कुमार चौरसिया ने प्रसिद्ध कवियों के साथ नये रचनाकारों का उल्लेख कर उन्हें भी पहचान दिलाने की अपील की। सम्मेलन समन्वयक डॉ जयप्रकाश मानस, सर्वधर्म मैत्री संघ के प्रकाश जैन, उपाध्यक्षा डॉ रंजना अरगड़े और मारवाड़ रतन देवकिशन राजपुरोहित ने भी संबोधित किया। सत्र में मुख्य वक्ता डॉ कृष्ण कुमार प्रजापति और राकेश अचल ने गीत और गज़ल पर विस्तार से विमर्श प्रस्तुत किया। डॉ भीखी प्रसाद, डॉ रजनीश चारण और डॉ अनन्त भटनागर ने भी विचार व्यक्त किए। सत्र संचालन डॉ अजय पाठक ने किया।
गज़ल संध्या की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री डॉ चन्द्रप्रकाश देवल ने कहा कि साहित्य की कोई भी विधा हो उसमें संवेदना होनी चाहिए और साहित्यकार की निष्ठा झलकनी चाहिए। जीवन के प्रत्येक क्षण में गीत संगीत का महत्व है। मनुष्य का मनुष्य से रिश्ता होना आवश्यक है, रिश्ता रहेगा तो संवेदना होगी और संवेदना होगी साहित्य श्रेष्ठ बन ही जाएगा। इस सत्र में छंद, दोहों, मुक्तक, गीत और गजलों का खूब रंग जमा। कृष्ण कुमार प्रजापति ने ‘आमी तो हैं बहुत इंसान यहाँ कोई नहीं, सबकी लम्बी है जुबां बेजुबा कोई नहीं‘, देवीप्रसाद चौरसिया ने ‘तुलसी की मानस गंगा की धारा घर घर में बहने दो‘, हेमचन्द सकलानी ने ‘शब्द कितने पवित्र सुन्दर फूल होते हैं‘, रूपेश तिवारी ने ‘ज्ञान ज्योति का दीप जलाएं‘ और डॉ अजय पाठक ने प्रकृति से जुड़े गीत ‘सौ दोहे सौ छंद शरद पूर्णिमा की रातों में‘ गीत से सभा को नयी उँचाइयां दीं। संचालन हास्य कवि मनोहर श्रीमाली ने किया। संगीत यामिनी के दौरान डॉ रजनीश चारण ने पधारो म्हारै देस के साथ मोहक गज़लें सुनाकर तालियां बटोरीं और डॉ अनुराधा दुबे ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया। संचालन किरणबाला जीनगर ने किया।
प्रातःकाल स्वामी शिवज्योतिषानन्द के नेतृत्व में ‘अहिंसा सद्भावना यात्रा‘ का आयोजन भी रखा गया। जिला कलक्टर गौरव गोयल ने महावीर सर्किल स्थित सन्यास आश्रम से ध्वज दिखाकर यात्रा को रवाना किया। देश-विदेश से आए सभी प्रतिभागी लेखकगण के साथ सभी स्थानीय धर्मावलम्बियों ने सन्यास आश्रम से प्रारंभ होकर गंज गुरूद्वारा, दरगाह, सेंट एन्सलम्स चर्च होते हुए नारेली जैन तीर्थ और पुष्कर ब्रह्मा मंदिर व पवित्र सरोवर के दर्शन किये।

स्वामी शिव ज्योतिषानन्द
मुख्य संयोजक
14वाँ अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन
(अजमेर सत्र)
संपर्क- 9414739329

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