महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय में विश्व गौरैया दिवस मनाया

अजमेर। 20 मार्च महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग व बर्ड कन्जर्वेशन सोसाईटी के संयुक्त तत्वावधान में विश्व गौरेया दिवस को लेकर गहन चर्चा हुई। कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत के पश्चात् गौरेया (चिड़िया) की घटती संख्या, और इस दिवस को मनाने की जरूरत जो विश्वभर में मनाया जा रहा है पर गहन मंथन हुआ।
विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रवीण माथुर ने अपने व्याख्यान में इस चिड़िया के वैज्ञानिक वर्गीकरण से लेकर खत्म होने, इसकी घटती संख्या व जन चेतना तथा इसे बचाने के उपायों की गहन चर्चा की। उन्होंने बताया कि भागदौड़ और चकाचौंध की अंधाधुंध दौड़ में इनके आश्रय स्थल खत्म हो गये, साथ में कीटनाशकों के खेत-खलिहानों में छिड़काव से इन्हें भोजन जुटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही हैं हालांकि इनकी संख्या इतनी भी कम नहीं है कि वो खतरे के कगार पर है। शहरों में इनके बसेरे की समस्या एवं खाद्य एवं पीने की पानी की कमी के कारण ये गांवों की ओर अपना पलायन कर रही है। यदि इन्हें समय रहते इनके रहने का माहौल नहीं बनाया गया तो अवश्य ही यह खतरे के कगार पर पहुँच जाएगी।
प्रो. अरविन्द पारीक, विभागाध्यक्ष वनस्पति शास्त्र विभाग ने बताया कि मानव को आज पक्षियों का अपने घरों में आना पसन्द नहीं आता परन्तु क्या कभी सोचा है कि हम क्यों उनके घरों में घुस गये हैं। यही कारण है कि आज हम हेबिटेड डिस्ट्रक्शन जेसे शब्दों पर चर्चा करते हैं। किसी भी इकोसिस्टम से मानव गतिविधियों को अलग कर लेना ही पर्याप्त होगा इस इकोसिस्टम को संरक्षित करने के लिए। हमें आज नही ंतो कल शहरों की सीमा को निर्धारित करना होगा। सीमा निर्धारण के बिना असीमित बढ़ता शहरों का दायरा एक प्रमुख कारण है। खेत और जंगलों को सीमित करने का।
प्रो. सुभाष चन्द्र, विभागाध्यक्ष प्राणी शास्त्र विभाग ने बताया की गौरेया प्रकृति संतुलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाला पक्षी है। आज हम विश्व स्पैरो डे मनाने के दौरान सभी शिक्षक और विद्यार्थी प्रण लें की घरों की छतों पर पानी के परिण्डे रखें, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में वृक्षों को संरक्षित कर उन पर परिण्डे बांधे। घरों की छतों पर प्रातः या शाम को दाना डालकर गौरेया को बचाने में योगदान दे सकते हैं। इस छोटे से प्रयास से आपके आस-पास रहने वाले अन्य लोग के संरक्षण हेतु प्रेरित होंगे। एक दिन ऐसी स्थिति आएगी की गौरेया का कलरव आपको अच्छा लगेगा।
प्रो. आशीष भटनागर, विभागाध्यक्ष सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग ने गौरेया पर लिखी हुई अपनी स्वरचित कविता प्रस्तुत कर कविता के माध्यम से गौरेया के संरक्षण हेतु आह्वान किया। गौरेया की पूरी दिनचर्या को प्रतिबिम्बित किया। उन्होंने आह्वान किया कि इस पक्षी को बचाने का हम सभी को प्रण लेना चाहिए।

पूर्व कुलपति प्रो. के.सी. शर्मा ने बताया कि बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण, खत्म होते पानी के स्त्रोत व मानवीय असंवेदनशीलता भी इनकी घटती संख्या के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने बताया कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण पक्षी है जो कीट-नियंत्रण, पारिस्थितिकी संतलन, पौधें में निशेचन आदि कार्यों को करता है। अतः हमें इसे बचाने के लिए जनचेतना लाने की आवश्यकता है। नही ंतो वह दिन दूर नहीं जब यह भी विलुप्त होती प्रजातियों में शुमार हो जाएगी जो मानव जीवन के लिए खतरे की घंटी है।
कार्यक्रम में सर्टिफिकेट कोर्स इन बर्डिंग के छात्र दिवाकर एवं छात्रा आकांशा ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में पर्यावरण विज्ञान विभाग, वनस्पति शास्त्र विभाग, प्राणी शास्त्र विभाग एवं सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन विभाग की छात्रा सुश्री चंचल ने किया। कार्यक्रम में धन्यवाद सुश्री संगीता पाटन ने दिया।

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