ज्ञान को अभिमान का आधार न बनाएं

केकड़ी:-इंसान को तन का,मन का,धन का और ज्ञान का अहंकार नहीं करना चाहिए।समय के अनुसार हर वस्तु बदलती रहती है तन की मेल तो नहाने से चली जाएगी पर मन की मैल तो सत्संग से ही जाएगी हमें परमात्मा का स्मरण कर मन को पाक,पावन बनाना है।उक्त उद्गार बहन आशा ने लाभचंद मार्केट स्थित किशन निवास पर आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किए।
मंडल प्रवक्ता राम चंद टहलानी के अनुसार बहन आशा ने कहा कि हर ग्रंथ,शास्त्र हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं अगर हम ग्रंथ,शास्त्र को मानते हैं तो उसमें लिखे वचनों को भी मानकर हम अपना जन्म सुहेला कर सकते हैं।आज हम श्री राम जी को तो मानते हैं पर उनकी नहीं मानते जो कि हमारे लिए दुख का कारण है। सत्संग से हमारा विवेक जागृत होता है बुद्धि उज्जवल होती है,व्यवहार में पावनता आती है और यह गुरु के द्वारा ही संभव है।गुरु धोबी है,कारीगर है अपने वचनों से हमें धोकर पाक व् पावन बनाते हैं जिस प्रकार परमात्मा अनंत है उसी प्रकार गुरु की महिमा भी अनंत है अपरंपार है।हर हाल में परमात्मा का,दाता का शुकर मनाऐं हर पल का,हर सांस का धन्यवाद करें बीता हुआ पल कभी वापस नहीं आता इसलिए हर पल का भरपूर आनंद लें।गुरु से जुड़ने पर इंसान में गुरसिखी का होना आवश्यक है गुरु की कृपा से,सद्गुरु की कृपा से गूंगा बोल सकता है,पिंगला पर्वत चढ़ सकता है,लुन्जा गहने घड़ सकता है,एक छोटी सी चींटी से हाथी को भी मरवा सकता है। गुरु हमें ज्ञान देकर एक सुंदर मूर्ति के रूप में निखारते हैं।गुरु का ज्ञान ही,वचन ही हमें मजबूती प्रदान करता हैं ज्ञानी और अज्ञानी दिखने में दोनों एक समान होते हैं ज्ञानी अपना समय ज्ञान से काटता है और अज्ञानी रो कर अपना समय बर्बाद कर रहा होता है।इंसान का बचपन जवानी में बदला,जवानी बुढ़ापे में बदली, और बुढ़ापा राख़ में बदल जाता है इसलिए समय रहते संतों का संग कर उनके वचनों को अपनाकर सत्संग,सेवा,सुमरण कर इंसान अपना लोक और परलोक सुहेला कर ले तो ही जीवन की धन्यता है।
सत्संग के दौरान समृद्धि,सानिया सिमरन,नमन,दीपक,विधि,गीता, सभ्यता,लवीना,आरती,गौरव, मोहित,दक्ष,नरेश,अशोक,दिव्या आदि ने गीत,विचारभजन प्रस्तुत किए संचालन भरत भगतानी ने किया।

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