अजमेर ! महर्षि पतंजलि की अष्टांग योग साधना में यम नियम आसन प्राणायाम एवं प्रत्याहार का निरूपण बहिरंग योग के अंतर्गत आता है तथा ये जीवन के अत्यावश्यक अंग हैं। यम में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह को जीवन में उतारना ही योग साधना है। आज अहिंसा एवं सत्य के सही परिप्रेक्ष्य को जानने की आवश्यकता है। धर्म संस्थापना के लिए मानव मात्र के कल्याण हेतु की गई हिंसा को भी अहिंसा कहा गया है। आज समाज में ब्रह्मचर्य की साधना के अभाव में लिव इन रिलेशनशिप एवं व्यभिचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं तथा अपरिग्रह को न अपनाने के कारण बाजार संस्कृति से मनुष्य इसके चंगुल में फंसकर तनावग्रस्त हो रहा है। इन सबसे मुक्ति का एकमात्र उपाय योग अभ्यास है। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र के प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डॉ. स्वतन्त्र शर्मा ने क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान में चल रहे दस दिवसीय योग सत्र के चौथे दिन छात्रों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
नगर प्रमुख रविन्द्र जैन ने बताया कि इससे पूर्व विद्यार्थियों को सूर्यनमस्कार, अद्धकटिचक्रासन, पादहस्तासन, वज्रासन, शशांकासन एवं ऊष्ट्रासन का अभ्यास कराया गया। इस योग सत्र में 150 से अधिक विद्यार्थी योग का व्यवहारिक एवं सैद्धांतिक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। सत्र में नगर सह प्रमुख अखिल शर्मा, योग प्रमुख अंकुर प्रजापति, लक्ष्मीचंद मीणा, अमरेन्द्र त्रिपाठी एवं रीना सोनी सहयोग कर रहे हैं।
(रविन्द्र जैन)
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