विलफुल डिफाल्टर्स को हो जेल – वेद माथुर

‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘ पुस्तक का लोकार्पण

अजमेर 14 जुलाई। लेखक एवं पूर्व बैंकर वेद माथुर ने कहा है कि भारतीय बैंकों से ‘विलफुल‘ डिफाल्टरांे द्वारा की गयी हुई खरबों रुपये की लूट रोकने, वसूली करने तथा दोषियांे को जेल भेजने के लिए नये कानूनों और त्वरित न्याय प्रणाली की जरूरत है। डूबत ऋणों, धोखाधड़ी एवं घोटालों से बैंक खोखले हो चुके हैं तथा इनकी स्थिति हमारी सोच से भी कई गुना ज्यादा खराब है।
वेद माथुर आज राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के ऑडिटोरियम में अपने व्यंग्य उपन्यास ‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘ के लोकार्पण और लेखक से संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि बैंकांे मंे जोखिम प्रबन्धन की मौजूदा प्रणाली को भी दुरुस्त किये जाने की जरूरत है। बैंकांे में आज आदमी में खून-पसीने की कमाई से खरबों रुपये लुट जाने की घटनाएं रोकने के लिए हर स्तर पर जवाबदेही निर्धारित होनी चाहिए। वर्तमान मंे कमेटी या निदेशक मण्डल द्वारा स्वीकृत ऋणांे के डूब जाने पर सामान्यतया कोई भी जिम्मेदार नहीं होता।
वेद माथुर ने विभिन्न सवाल उठाते हुए कहा कि ज्यादातर बड़े डिफाल्टर्स इरादतन है और वे लाचार व्यवस्था का लाभ उठाकर धोखाधड़ी करके भी ऐशो आराम की जिन्दगी जी रहे हैं। इसके दुष्परिणाम स्वरूप बैंक अपना घाटा पूरा करने के लिए आम आदमी से आवास, शिक्षा एवं स्वरोजगार ऋण मंे ज्यादा ब्याज ले रहे हैं तथा जमाआंे पर कम ब्याज दे रहे हैं।
वेद माथुर ने अपने व्यंग्य उपन्यास ‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘ मंे भारतीय बैंकिंग से जुड़े कई खुलासे किये हैं तथा उन कारणांे व स्थितियांे का वर्णन किया है जिनसे घोटाले और धोखाधड़ी की घटनाएं जन्म लेती हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अजमेर विकास प्राधिकारण के अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा में लेखकों से अपील की कि वे व्यवस्था की खामियां बताने के साथ-साथ सुधार के उपाय सुझाएं। उन्होंने कहा कि लेखकांे व पत्रकारांे का दायित्व है कि वे रचनात्मक एवं अच्छे कार्यों के बारे में लिखकर अच्छे लोगों का मनोबल बढ़ाएं।
कार्यक्रम के एक आकर्षण विजय माल्या के हमशक्ल देवेन्द्र धारया ने माल्या का पक्ष रखते हुए कहा कि वे डकैती करके नहीं भागे हैं बल्कि बैंकांे ने बुलाकर आदर सहित उन्हें ऋण दिये हैं। वे विदेश भागने से पहले ‘डिफाल्ट‘ करने के पांच साल बाद भी भारत मंे रहे तब उनके विरुद्ध कार्यवाही क्यांे नहीं हुई। कार्यक्रम में नीरज शर्मा ने ‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘ का कारपोरेट गीत ‘‘जहां डाल-डाल पर रोज नये उल्लू करते हैं बसेरा, वह बैंक ऑफ पोलमपुर है मेरा!‘‘ प्रस्तुत कर दर्शकों को हंसाया। मैजिशियन एवं मैंटेलिस्ट हरीश यादव ने दूसरांे के ‘दिमाग को पढ़ने‘ के हैरत करने वाले कारनामे दिखाये।
कार्यक्रम में पैनेलिस्ट डॉ. सतीश शर्मा, रास बिहारी गौड़, डॉ. नारायण लाल गुप्ता व डॉ. अनंत भटनागर ने पुस्तक की समीक्षा की। सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट रामबाबू माथुर का शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। संस्कृति स्कूल के चेयरमेन एवं समाज सेवी सीताराम गोयल ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संयोजन दिलीप पारीक ने किया।

‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘: पैनेलिस्ट के विचार
‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘ महज हास्य व्यंग्य का उपन्यास नहीं होकर भारतीय बैंकिंग की डायग्नोस्टिक रिपोर्ट है। सरकार को इसका अध्ययन कर उपचार के उपाय करने चाहिए। यह सिर्फ बैंकों को ही एक्सपोज नहीं करता बल्कि समूचे तंत्र की व्यथा को बताता है। तंत्र रूपी कुएं मंे ही भांग घुली हुई है। यही कारण है कि आज देश की युवा प्रतिभाएं पलायन करके विदेशों मंे जा रही है।
– डॉ. सतीश शर्मा
लेखक तीन प्रकार के होते हैं – एक जो दुनिया रचता हैं, दूसरा दृष्टा बनकर लिखता है और तीसरा दुनिया में जी कर अनुभवों के आधार पर लिखता है। वेद माथुर ने बैंकिंग को जिया हैं और हँसते-हँसाते अपनी बात को कहा है – जिससे ‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘ की मारक क्षमता बहुत अधिक बन पड़ी हैं।
– कवि रास बिहारी गौड़
‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘ कहने को फिक्शन है लेकिन राजकीय विभागांे और बैंकांे की आंतरिक कार्यप्रणाली को थोड़ा बहुत भी समझ रखने वाले इस सत्य के साथ साक्षात्कार की श्रेणी मंे ही रखेंगे।
वेद माथुर के पास विसंगतियांे को परखने वाली दृष्टि-सूंघने वाली नाक है और उसे इस प्रकार रोचक रूप से प्रस्तु करने की कला है कि पाठक पहले पेज से ही बैंक ऑफ पोलमपुर के गुरुत्व में फंसता चला जाता है और अंतिम पृष्ठ पूर्ण होने पर ही बाहर निकल पाता है।
– डॉ. नारायण लाल गुप्ता
यह कृति ‘बैंक ऑफ पोलमपुर‘ बैंकों के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था मंे विद्यमान भ्रष्टाचार, फिजूलखर्ची, कामचारी, चापलूसी, सिफारिश, रिश्वत आदि की पोल खोलती है। बैंक क्षेत्र का निजी अनुभव होने के कारण इसमें अभिव्यक्त घटनाएं सत्य के निकट जान पड़ती हैं। स्वार्थसिद्धि, प्रचार की कामना व अतिरिक्त महत्वाकांक्षा रखने वाले चरित्रांे का चित्रण लोटपोट कर देता है। यह कृति वर्तमान समय में बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार की दिशा भी दिखलाती है, बशर्ते बैंकांे के कर्णधार इसके लिए तैयार हांे।
– डॉ. अनन्त भटनागर

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