पहली बार बहू ने सास की अर्थी को दिया कंधा

दो पोतियों ने दादी की चिता को दी मुखाग्नि, समाज में कायम की नई मिसाल
ब्यावर। पुरातन काल से चली आ रही सामाजिक रूढ़ियों और मिथक को तोड़ते हुए अपनी सास की आखिरी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए ब्यावर की एक बहू ने सास की अर्थी को कंधा देकर समाज के लिए नई मिसाल पेश की। मुक्तिधाम में दो पोतियों ने दादी की चिता को मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार की रस्में निभाई। संभवत: यह देश का पहला उदाहरण है जब मुक्तिधाम में महिलाओं ने महिला का पूर्ण अंतिम संस्कार किया है।
जानकारी के मुताबिक ब्यावर में रहने वाली राजपूत समाज की 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला नीलम भाटी का देर रात निधन हो गया। परिवार में कोई पुरुष नहीं होने पर बहू यल्पना ने सास की अर्थी को कंधा दिया। मां को देखकर प्रांजल व प्रियांशी ने भी अपनी दादी के अंतिम संस्कार की रस्में निभाई। पोतियों ने दादी की अर्थी को कंधा और मुक्तिधाम में चिता को मुखाग्नि भी दी। सास को कंधा देने वाली बहू यल्पना भाटी का कहना है कि मेरी सास ने मुझे बेटी की तरह रखा। मैंने अपनी मां समान सास की अंतिम इच्छा का सम्मान किया है।
दरअसल विवाह के कुछ समय बाद ही नीलम के पति भैरूसिंह भाटी का निधन हो गया था। इकलौते पुत्र गजेंद्र सिंह भी 15 साल पहले चल बसे। ऐसे में सास-बहू अपनी दो बेटी-पोतियों के साथ रहती थी। मां-बेटियों के इस कदम ने समाज में सास-बहू के रिश्ते की नई मिसाल कायम की है।

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