परंपरागत कलाओं का संरक्षण संस्कृति का संरक्षण है – सुनील दत्ता जैन

भारत में चौसठ कलाएं विकसित हुई जिन से युक्त होकर इतिहास में भारतीय प्रतिभाओं ने संपूर्ण विश्व में भारत को विश्व गुरु की भूमिका में पहुंचाया था।वर्तमान समय में कैरियर के बोझ के कारण कलाओं की ओर ध्यान ना देने से हमारी कई परंपरागत कलाएं समाप्त होने लगी है। कलाओं का संरक्षण और संवर्धन करने की आज महत्वपूर्ण आवश्यकता है क्योंकि परंपरागत कलाओं के संरक्षण से ही हमारी संस्कृति सुरक्षित रह सकेगी यह विचार सुनील दत्त जैन ने संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार तथा विद्या भारती के संयुक्त तत्वावधान में आदर्श विद्या निकेतन माध्यमिक विद्यालय पुष्कर रोड में आयोजित द्वि दिवसीय सांस्कृतिक विधाओं की कार्यशाला के समापन अवसर पर कहीं।वे मुख्य अतिथि के रूप में समारोह को संबोधित कर रहे थे।
लोक कलाओं के संरक्षण एवं संवर्धन की दृष्टि से विगत 2 वर्षों से इस प्रकार की कार्यशाला ओं का आयोजन विद्या भारती द्वारा किया जा रहा है गुरुवार को प्रारंभ हुई इस कार्यशाला में 7 विद्यालयों के 350 विद्यार्थियों एवं 40 आचार्य ने हिस्सा लिया। कार्यशाला में कत्थक,घूमर नृत्य, मधुबनी शैली की चित्रकला, रंगोली, मांडना,कैलीग्राफी,संगीत आदि का प्रशिक्षण मीनाक्षी मंगल, दृष्टि राय,पल्लवी जोशी,संजय सेठी, अलका शर्मा, शालिनी सेन, निवेदिता पाठक, लोकेंद्र दत्त, ललित कुमार एवं रौनक कुमार जैसे योग्य प्रशिक्षकों द्वारा दिया गया। सभी प्रशिक्षकों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया गया।
कार्यशाला के मार्गदर्शक संजय सेठी ने कार्यशाला में प्राथमिक रूप से सीखी गई कलाओं का सतत अभ्यास करके दक्षता प्राप्त करने के लिए सभी प्रतिभागियों को प्रेरित किया।कार्यक्रम के अंत में कार्यशाला संयोजक एवं विद्यालय प्रधानाचार्य ने सभी का आभार व्यक्त किया।
विद्या भारती संपूर्ण भारत में 13300 विद्यालयों के माध्यम से 35 लाख विद्यार्थियों को संस्कार एवं देशभक्त बनाने के लिए कार्यरत है।
भूपेन्द्र उबाना
(कार्यशाला संयोजक एवं प्रधानचार्य)

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