दिनांक 21 जून, 2019। विश्व में दो प्रकार की दष्टि है जो भोग एवं योग का प्रतिनिधित्व करती है। भोग की दृष्टि जहां व्यक्ति का सर्वनाश कर देती है वहीं योग की दृष्टि से व्यक्ति आत्मकल्याण तक कर सकता है। आज भारत विश्व में जिस योग की परम्परा का प्रवर्तक है उसके व्यक्ति को राष्ट्रीयप्राणायाम के रूप में भारत का चिंतन करने की आवष्यकता है। जब हमारे जीवन की सारी आवश्यक्ता समाज के उपर ही निर्भर करती है तो हमारी कमाई का एक अंश समाज धारणा के लिए देना ही यज्ञ का रूप होता है। आज समाज धारणा के लिए संवेदनशीलता की आवश्यकता है और यही संवेदनशील व्यवहार ही योग है। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी राजस्थान प्रान्त की प्रान्त संगठक सुश्री प्रांजलि येरीकर ने राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद् नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की अजमेर शाखा के रामकृष्ण विस्तार के सहयोग से योग आधारित जीवन पद्धति विषयक एक संवाद के अवसर पर शिवाजी पार्क कृष्ण गंज में व्यक्त किए।
मुख्य अतिथि प्रो वासुदेव देवनानी ने कहा कि योग की अनुभूति गर्व का विषय है तथा हमें सात्विक इच्छा शक्ति का जागरण करते हुए योग का आचरण करना चाहिए।
परिषद् के सदस्य डॉ0 सुरेश बबलानी ने कार्यक्रम में सिंधी भाषा के गौरव को योग की थाती बताया तथा सिंधी भाषा के विकास में राष्ट के योगदान को भी प्रतिपादित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विस्तार संचालक डॉ. श्याम भूतड़ा ने कहा कि योग पर संवाद के साथ ही हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि योग का उपयोग हमारी जीवनशैली में शुद्ध आचरण एवं व्यवहार के लिए होना चाहिए जिसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता होती है।
इस अवसर पर विवेकानन्द केन्द्र के रामकृष्ण विस्तार के सभी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कार्यक्रम में सुभाष नुवाल, राधी राठी, सुधा मालू, राकेश शर्मा, मनोज बीजावत, तृप्ति चन्द्रावत, राजेन्द्र सोमानी, शशांक बजाज, दिनेश नुवाल आदि का सहयोग रहा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनिता खुराना ने किया।
नगर प्रमुख अखिल शर्मा ने बताया कि इस अवसर पर संवाद में भाग लेने वाले प्रत्येक सहभागी को परिषद् की ओर से योग की निःशुल्क पुस्तक उपलब्ध कराई गई।
(डॉ0 सुरेश बबलानी)
सदस्य
राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास समिति,
नई दिल्ली