अंग्रेजी का प्रभुत्व हिन्दी पर प्रभाव डाल रहा है

अजमेर 16 सितम्बर। साहित्यकार गोविन्द भारद्वाज ने कहा है कि किसी भी घटना या परिस्थिति को देख कर जो भाव मन में आते है उन्हें शब्दों में बांध लेना ही संवेदनशील कविता की शुरुआत होती है। हिन्दी यँू तो हमें परम्परा से मिली भाषा है, इस कारण से इसे पैत्रृक सम्पत्ति ही माना जाना चाहिए। जब हम छोटे बच्चे थे और बोलना सीख रहे थे, उस समय हमारे परिवेश की जो भाषा थी वह उम्र के किसी भी पडाव पर जाने के बाद भी सहज और सरल लगती है। मगर अब लगता है कि अंग्रेजी का प्रभुत्व हिन्दी पर प्रभाव डाल रहा है।
श्री भारद्वाज राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सभागार में हिन्दी सप्ताह के दूसरे दिन कविता लेखन प्रतियोगिता के दौरान बोर्ड के कर्मियों से संवाद कर रहे थे। उन्होंने बेटियों को समर्पित कविता ‘‘मेरे आंगन की किलकारी हो, बेटी तुम सबको प्यारी हो‘‘ तथा हिन्दी गजल ’’जब भी आए झमझम बरसे वो बादल होता है‘‘ सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
इस अवसर पर राजकीय कन्या महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं साहित्यकार डॉ. शमा खान ने कविता लिखने के शिल्प और शैली के विषय में जानकारी देते हुए ‘‘सी उठती है भीतर से कोई बात गहराई तक उतर जाती है तब कविता बनती है‘‘। उन्होंने कहा कि वस्तुतः हिन्दी वह भाषा है जो भारत में लोगों की अभिव्यक्ति का प्राण है। हिन्दी एक ऐसी भाषा है जो आसानी से लोगों की जुबान पर चढ़ जाती है। हिन्दी भाषा तमाम् झंझावातों के बावजूद अब तक जीवित है तो उसका एक और कारण यह है कि हिन्दी भाषा ने अपने अन्दर अनेक भाषाओं के शब्द समाहित कर लिए है। उन्होंने अपनी काव्य रचना ‘‘ममता में भीग जाती है पल-पल से जूझती घर-दफ्तर झूलती ये कामकाजी औरते’’ के द्वारा नौकरी-पेशा महिलाओं की स्थिति को उकेरा। काव्य लेखन प्रतियोगिता में 32 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
हिन्दी सप्ताह आयोजन समिति के संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने प्रारम्भ में अतिथियों का परिचय दिया तथा गुरूसेवक बाकलीवाल ने कार्यक्रम का संचालन किया। अन्त में संजय तायल ने आगुन्तकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। हिन्दी सप्ताह के तहत् मंगलवार को कहानी सुनाओं प्रतियोगिता होगी जिसमे त्ण्श्रण् अजय, डॉ. पूनम पांडे, व डॉ. श्रुती गौतम के सानिध्य में रोचक कहानियों का पाठ किया जायेगा।

उप निदेषक

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