जिसके मर गये बादशाह रोते फिरै वजीर

किशनगढ।* बिखर कर तार तार हो रहा है शहर।धरती की काया छलनी हो रही है।छोटे से छोटे गली मौहल्ले की कोई सडक बाकी नहीं बची,छिल जाने से।धूल उडती है समूचे शहर में।लगता है इस शहर का कोई धणी धोरी नहीं।कमोबेश जिसके मर गये बादशाह रोते फिरै वजीर वाली हालत हो रही है।बाउजूद इसके शहर के भाग्य विधाता इसे स्मार्ट सिटी बनाने की पेशकश करते हैं। *फटै पर कब तक पैबन्द लगाओगे मेरे यार*,कुछ समझ नहीं पडता।जूते फटै हों तो मुखडे को संवार लेने का क्या औचित्य..ठीक वैसे ही जैसे ट्रेफिक लाईट और अब कैमरे नकारा साबित होने वाले हैं..चलना तो टूटी फूटी सडक पर ही पडेगा।आज शहर के हालात यह है कि इसके जहां हाथ रख दो,वहीं दर्द ही दर्द है।बात सडकों की हो या सिपहलसारों की..सब
*बे-लगाम* हो रहे हैं।ले देकर एक से डेढ सडक पर बसा है किशनगढ,जिन्हे हम यहां की मुख्य सडकें कहते हैं।वह भी आज तलक जनसेवकों से दुरुस्त नहीं रह पाई।गली-मौहल्लों की सडकों की तो बात ही रहने दें।जहां चेहरा ही नहीं सुधर पाता,वहां हाथ पांव का मैल क्या खाक साफ करेंगे।
इस शहर के जनसेवक हों या प्रशासनिक नुमाइंदे…सब इस बात को चरितार्थ कर रहे हैं कि
*’जहां हर शाख पर उल्लू बैठा है,अंजामें गुलिस्ता क्या होगा…*।नल-बिजली की माकूल व्यवस्थायें नहीं,शहर में सीवरेज कौन बिछा रहा है,उसका दफ्तर कहां है_कोई अता पता नहीं।एक सडक को अनेक लोग कब और क्यूं बार बार तोड-मरोड कर चले जाते हैं,इसका शहरवासियों को कोई पता नहीं पडता।क ई क ई महीनों से सडके इस तरह तोडी फोडी जा रही है जैसे बाजार में व्याप्त मंदी का गुस्सा कोई इन पर बेहताशा उतार रहा हो,जैसे यही बेचारी *आला हजरतों* को कमा कर दे देगी।लगता है शहर की सुनियोजिता का सबक तो शहर के भाग्य विधाताओं ने अब तलक पढा ही नहीं।अलबत्ता *उनकी मेथेमेटिक्स जरुर तारिफे काबिल है,जहां वे जमीनों के क्षेत्रफल फलाने में माहिर हैं।तीन और दो को पांच नहीं,सात करने की बात सोचते हैं।*
*बहरहाल देखते हैं,शहर का विकास किन किन चरणों से होकर गुजरता है।*
*__सर्वेश्वर शर्मा*
*संपादक*..’कुछ अलग’
*अध्यक्ष* ..मार्बल सिटी प्रेस क्लब,किशनगढ
*मो.9352489097*

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