किसी भी उम्र में वेंटीलेटर है जीवन की संजीवनी

88 वर्शीय पुरुष और 84 वर्षीय महिला की जीवन संजीवनी बना वेंटीलेटर
खर्राटे जानलेवा हों, इससे पहले उपचार जरूरी- डाॅ प्रमोद दाधीच

अजमेर, 6 फरवरी( )। वेंटीलेटर रोगी की जीवन संजीवनी ही है, अस्पताल का बिल बनाने की मशीन नहीं, वेंटीलेटर का सही समय पर इस्तेमाल रोगी को अंत समय से बाहर लाने में बेहद सहायक होता है।
आमजन के लिए यह संदेश दो वयोवृद्ध मरीजों के परिवारजनों ने मीडिया से रूबरू होते हुए दिए। किशनगढ़ निवासी 88 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक श्रीकृष्ण शर्मा के पुत्र कंुज बिहारी व विष्णु दत्त शर्मा तथा धोलाभाटा अजमेर निवासी 84 वर्षीय वृद्धा भगवंती देवी के पुत्र हरीश व पौत्र भरत निहलानी ने बताया कि आज उनके पिताजी और दादीजी यदि उनके बीच हैं तो उसमें वेंटीलेटर सपोर्ट सिस्टम की महती भूमिका है अन्यथा जिस गंभीर अवस्था में वे अपने परिवारजनों को मित्तल हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, अजमेर लाए थे उनका जीवन अत्यंत ही संकट में था।
अत्याधुनिक तकनीक और कुशल, दक्ष व अनुभवी चिकित्सकों अस्थमा, टीबी, निद्रा व श्वास रोग विशेषज्ञ डाॅ प्रमोद दाधीच, कार्डियोलाॅजिस्ट डाॅ राहुल गुप्ता, गुर्दा रोग विशेषज्ञ डाॅ रणवीरसिंह चौधरी, इन्टेन्सिविस्ट डाॅ अंजू गुप्ता सहित हाॅस्पिटल की पूरी टीम ने हर संभव कोशिश कर उनके परिवारजनों के जीवन को संकट से बाहर बनाए रखा।
डाॅ. प्रमोद दाधीच ने बताया कि दोनों ही मरीजों में एक समानता थी। दोनों ही मरीजों की किडनी व दिल कमजोर थे। इनके पीछे मूल कारण दोनों ही मरीजों का स्लीप एप्निया व क्राॅनिक आॅबस्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से ग्रस्त होना था।
इन दो बीमारियों की वजह से षरीर में होने वाली आॅक्सीजन की कमी उनके दिल व किडनी पर असर डालती थी और शरीर में फैला संक्रमण मरीजों के स्वास्थ्य में और गिरावट लाता था। मरीजों को रात में सोते समय आॅक्सीजन कमी महसूस होने पर उन्हें अकेले आॅक्सीजन सपोर्ट पर रखा जाता था तो शरीर में कार्बन-डाई-आॅक्साइड की मात्रा बढ़ जाती थी। मित्तल हाॅस्पिटल लाए जाने पर दोनों ही मरीजों की अवस्था चिंताजनक थी, उन्हें उपयुक्त एंटीबायोटिक व वेंटीलेटर सपोर्ट पर ररवा गया। पहले मरीजों को इनवेज़िव वेंटीलेटर (सांस की नली में ट्यूब डाल कर) पर रखा गया, सुधार होने पर इन मरीजों को नाॅन इनवेज़िव वेंटीलेटर (मास्क लगाकर) पर रखा गया। धीरे धीरे शेष अंगों दिल व किडनी में भी सुधार होने लगा और शरीर में फैले संक्रमण में भी कमी आने लगी तो इन मरीजों को वेंटीलेटर सपोर्ट से हटाकर बाइपेप मशीन पर रखा गया। मरीजों के स्वस्थ होने पर उन्हें हाॅस्पिटल से छुट्टी दे दी गई।
लोगों की धारणा गलतः- आमजन में यह धारणा बन गई है कि रोगी को वेंटीलेटर सपोर्ट सिस्टम पर लिए जाने का मतलब रोगी को पीड़ा पहुंचाना और हाॅस्पिटल का बिल बनाना है, इसलिए लोग रोगी का उपचार अंत समय तक कराने के बजाय उन्हें घर ले जाते हैं। उनकी यह सोच इन मरीजों के हाॅस्पिटल से स्वस्थ्य होकर घर लौटने को देखते हुए गलत साबित होती है। दोनों मरीजों को जब उनके परिवारजन हाॅस्पिटल से घर ले जा रहे थे तो उनके चेहरे की मुस्कराहट उनकी संतुष्टि का बयान कर रही थी। उन्होंने आमजन को संदेश भी दिया कि वेंटीलेटर जीवन की संजीवनी है और खर्राटे जानलेवा हों इससे पहले उपचार जरूरी है।

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