खा पीकर ऊगाली कर रहे किशनगढ वासियों के लिए एक सटीक व्यंग्य

*अभी अभी शहर में बारिश हुई है..पर मैं यह नहीं कहने जा रहा हूं कि मौसम खुशगवार हो गया और यह भी नहीं कहूंगा कि तेज पड रही गर्मी से राहत मिली।कारण साफ है..बरसात के शुरु होने के ऐनवक्त किशनगढ का बिजली महकमा ना जाने कितनी पीढियों से शहर की बिजली काट देने में मुस्तैद बना रहा है..जबकि वह इतनी मुस्तैदि अपने किसी अन्य काम में नहीं दिखलाता।यहां पीढियों की बात इसलिए कर रहा हूं,क्योंकि बिजली महकमे का यह बरसात के टाईम बत्ती गुल कर देने वाला फितूर मेरे बच्चे देख रहे हैं..मैं भी देखता आया हूं..पूंछने पर पता पडा कि मेरे बाप ने भी देखा है..पर मेरे बापू ने बताया कि वे अपने बाप से पूंछना भूल गये यानि कि मेरे दादा के जमाने में बिजली महकमे का यह फितूर बरकरार था या नहीं..कुछ कहा नहीं जा सकता।खैर छोडिये..२..३ पीढियां तो बीती ही है।*
*बहरहाल मुद्दे की बात पर आयें..वह यह कि किशनगढ का बिजली महकमा बरसात शुरु होने के साथ ही अथवा आंधी की आशंका उपजने के साथ की आखिरकार शहर की बिजली क्यों❓काट देता है।*
*इसके लिए कौन सा जवाब सही है..इसे ‘बेताल की कथा’ वाले विक्रमादित्य से पूंछना होगा..ताकि वह सही जवाब खोज कर हमें बता सके।*
*वैसे इसका जवाब ढूंढते हमारे दिमाक में आया कि हो सकता है किशनगढ में बिजली महकमे के पास अंग्रेजों के जमाने के तकनीकी यंत्र-तंत्र हों जो बरसात में धोखा देते हों।इसके साथ ही यह भी सुनने में आया कि किशनगढ बिजली महकमे के कर्मचारी पीढियों से अभ्यस्त हैं साल भर ठाले बैठे रहने के..विद्युत लाईनों व अन्य व्यवस्थाओं का पूरे साल प्रॉपर मैंन्टनेस नहीं रखते..जहां बरसात के दिनों में खतरा की आशंका के चलते ऐनवक्त पर ‘ना रहे बांस और ना बजेगी बांसुरी’ की कहावत के चलते उन्हे शहर की बिजली गुल कर देने के अलावा कोई अन्य बात नहीं सूझती…भले ही शहर वासी हैरान परेशान हो तो हो..।* *बिजली महकमे को लेकर इतनी गिरी और घटिया व्यवस्थायें प्रदेश में किसी अन्य शहरों में देखने को नहीं मिलेगी जहां तक मेरी जानकारी में है।लेकिन किया क्या जा सकता है..प्रसंग वश मैं आज अपने शहर वासियों को बता देना चाहता हूं कि आज किशनगढ के आम नागरिकों को सामान्य जीवन की सामान्य जरुरतों के लिए तरसना पड रहा है..बिजली..पानी व चलने को सडक आम जरुरत है..क्या यह सब उन्हे सकून के साथ नसीब हो रहा है..❓* *यहां बता देना चाहूंगा कि किशनगढ अब आम लोगों के लिए आम जरुरतें आसानी से हासिल कर लेने वाला शहर नहीं रहा…यह धनिकों का शहर हो चुका है..जहां बिजली का तोड एक घर में 4-5 इनर्वटर..घरों में पाने के 2-3 टेंक का होना सामान्य है।टूटी फूटी सडकों से उन्हे परेशानी नहीं होती..क्यूंकि लग्जैरी मोटर गाडियों में उनका आवागमन होता है।आसमान में उडने का इंतजाम भी धनिकों ने जुटा लिया है।ऐसे में आम लोगों की आम जरुरतें इस शहर से हवा होती जा रही है। शहर का दुर्भाग्य ही कहूंगा कि अब यहां बेताल की कहानियों वाले जवाब किसी विक्रमादित्य के पास नहीं है।😔*

सर्वेश्वर शर्मा
संपादक.. *’कुछ अलग’*
*मो.9352489097*

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