तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा Part 1

dr. j k garg
नेताजी कहते थे कि हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो, लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही है | सफलता का दिन दूर हो सकता हैं, लेकिन उसका आना अनिवार्य ही है | राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम, शिवम्, सुन्दरम से प्रेरित है | द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। उन्होनें युवाओं को “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा” का नारा दिया |
21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड समेत 11 देशों ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नाम करण किया। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं | इस भाषण के दौरान नेताजी ने गाँधीजी को राष्ट्रपिता कहा तभी गाँधीजी ने भी उन्हे नेताजी कहा, तभी से उन्हें नेताजी कहा जानें लगा । नेताजी ने कहा था कि हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं | हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए |
प्रस्तुतिकरण डा. जे. के. गर्ग
नेताजी कहते थे कि हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो, लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही है | सफलता का दिन दूर हो सकता हैं, लेकिन उसका आना अनिवार्य ही है | राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम, शिवम्, सुन्दरम से प्रेरित है | द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। उन्होनें युवाओं को “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा” का नारा दिया |
21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड समेत 11 देशों ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नाम करण किया। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं | इस भाषण के दौरान नेताजी ने गाँधीजी को राष्ट्रपिता कहा तभी गाँधीजी ने भी उन्हे नेताजी कहा, तभी से उन्हें नेताजी कहा जानें लगा । नेताजी ने कहा था कि हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं | हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए |
प्रस्तुतिकरण डा. जे. के. गर्ग

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