उत्साहवद्र्धन के दो बोल

Dinesh Garg
प्राय: व्यक्ति सबसे ज्यादा कृपण दूसरो के किए गए कार्य के उत्साहवद्र्धन ओर प्रशंसा करने में होता है। वह चाहता तो है उसे दूसरो से हमेशा प्रशंसा के दो बोल मिले लेकिन वह स्वयं के मुख से दूसरो के कार्यों की प्रशंसा करने में अक्सर संकोच करता है। दूसरो का उत्साहवद्र्धन करने में उसके शब्द चब कर ही रह जाते हैं यही कारण होता है कि आत्मीयता का जो संबंध एक दूसरे की प्रशंसा कर बन सकता था उसका मौका व्यक्ति स्वयं ही खो देता है। इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण यह हो सकता है कि किसी की तारीफ लायक कृति को देखकर पहली प्रतिक्रिया यही होती है कि यह मेरे पास क्यों नहीं है या ऐसा मेरे साथ क्यों नहीं हुआ? ईष्र्या, द्वेष, जलन हमारी जीभ में ताला लगा देती है। दूसरा कारण यह है कि हम यह सोचते है कि हम दूसरों की प्रशंसा करेंगे तो हम स्वयं उससे छोटे या हीन हो जाएंगे जो कभी भी कोई व्यक्ति होना नहीं चाहता। एक डर यह भी रहता है कि हम किसी की प्रशंसा करे और वह उल्टा हम पर ही अधिकार जमाने न लग जाएं। इन्हीं कारणों से हम चाहते हुए भी किसी की प्रशंसा या तारीफ नहीं कर पाते। इन नकारात्मक दृष्टिïकोण से हट कर यदि हम खुले दिल से किसी की प्रशंसा करे उसे ओर अधिक करने के लिए उत्साहित करे तो यह हमारी यह विशेषता बन सकती है। इससे हमारा ही सामाजिक दायरा विस्तृत होता है। प्रशंसा प्राप्त व्यक्ति की नजर में हम स्नेहिल और पूज्य बन जाते हैं। हम प्यार की ऊॅंचाईयों को छूने लगते हैं। जिसकी हम उत्साहवद्र्धन करते हंै उसे हमारे शब्दों से प्रेरणा मिलती है और वह अपनी कमियों को सुधाकर कर कार्य करने लगता है।
गीता में कृष्ण ने पग पग पर अर्जुन का उत्साहवद्र्धन किया है। उसे उसके गुणों के अनुरूप अनेक नामों से संबोधित करके उसका बखान किया है। धनंजय, पार्थ, प्रथापुत्र, महाबाहो, सखा, कुंती पुत्र आदि नामों से उसमें प्रशंसा के भाव जगाए हैं एक अपनापन पैदा किया किया है और यही कारण रहा कि अर्जुन के मन में अदम्य साहस का संचार हुआ और महाभारत का युद्घ उसने वीर यौद्घा की भांति किया। यह होता है प्रशंसा का प्रभाव। मेरी बात को आप यदि अपने हर रिश्ते संबंधो में अपना लेगे तो आप शीघ्र ही सभी के प्यारे बन जाएंगे। मेरा यहा कहने का तात्पर्य है कि किसी का उत्साह बढ़ाने में अपना कुछ नहीं जाता लेकिन आपके द्वारा बोले गए दो बोल उसके भविष्य को तय करते है तो क्या हम आज दूसरो के लिए इतना भी नहीं कर सकते। आज सोशल मीडिया का जमाना है आपको किसी का प्रशंसनीय कार्य देखने को सूनने को मिले तो आप तुंरत प्रभाव से उसके लिए दो शब्दो का प्रवाह तो उस तक पहुंचा ही सकते है। उत्साहवद्र्धन करने के लिए किसी का सामथ्र्यवान होना आवश्यक नहीं है आप अपने अधीनस्थ कर्मचरियो सहयोगियों का पग पग पर उत्साहवद्र्धन कर उनका दिल जीत सकते है। यह तो ऐसा भाव है जो देने वाला भी विनम्र हो कर देगा और लेने वाला भी सिर झुकाकर मंद मंद मुस्कान के साथ लेगा। उपहार में दी वस्तु की कोई व्यक्ति कद्र करे ना करें, लेकिन किसी के दिए हुए प्रशंसात्मक शब्दों का वह ताउम्र हृदय में संजो कर रखता है। हां इतना अवश्य है कि प्रशंसा करते समय इतना अवश्य ध्यान रखना होगा कि झूठी तारीफ न करें और किसी का दिल न दुखाएं। चापलूसी और प्रशंसा में फर्क समझें। चाटुकारिता में सच्चाई नहीं होती पर सच्चे मन से निकला हुआ एक वाह हजारों कमल खिला जाता है तो आज से ही प्रशंसा के दो बोल बोलकर अपनो का दिल जीत ले। विशेषकर आज के इस संकट के समय में आज जो भी हमें अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहे है उनके प्रति हमें प्रंशसा का भाव रख कर उन्हें और उत्साहित करना होगा। वे भले ही अपनी प्रंशसा करवाने के लिए कार्य नहीं कर रहे हो लेकिन हमें उनका उत्साहवद्र्धन करने के लिए उनके प्रति दो शब्द तो प्रशंसनीय कहने ही चाहिए ताकि उनका मनोबल और बढ़ सके।

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