कोरोना के भय से राहत दिलाई हास्य इम्यूनिटी ने

विश्व हास्य दिवस पर नाट्यवृंद ने सजाई हास्य की अनूठी महफ़िल

वर्तमान विकट समय के विषाद और अवसाद से भरे माहौल में हास्य से बढ़कर कोई और दवा नहीं हो सकती। इसीलिए आज विश्व हास्य दिवस के अवसर पर कला एवं साहित्य के प्रति समर्पित संस्था नाट्यवृंद द्वारा ‘‘राष्ट्रीय हास्यरस गोष्ठी’’ का आयोजन कर थोड़ी राहत देने का अनूठा कार्य किया। संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने बताया कि वर्चुअल रूप से हुई इस हास्य गोष्ठी में देश के 65 रचनाकारों ने हास्य-व्यंग्य से ओत प्रोत उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत कर कोरोना काल में हास्य इम्यूनिटी उत्पन्न कर दी। ना केवल लेखक वरन गोष्ठी में बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोता भी सारा तनाव को भूलकर आनंद में डूब गए।
दाल-बाटी के अंतरराष्ट्रीय महाभोज के बहाने रामविलास जांगिड़ ने खूब हंसाया और बताया कि दाल पीते-पीते आंसुओं की ऐसी धारा छूटी कि कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री अपने राज्यों की पेयजल समस्या समाधान के लिए आंसुओं से बांध बनाने लग गए। प्रदीप गुप्ता ने अपनी रचना कवि और कोरोना में कोरोना को भगाने का सारा जिम्मा केवल कवि के माथे ही मढ दिया। यह इतवार न होता तो जाने इतनी खुशगवार सुबह नहीं होती। उमेश कुमार चौरसिया ने सहज हास्य ‘बेगम छुट्टी पर हैं’ में जीवन की तमाम विसंगतियों के बीच घर-परिवार के साथ आराम के महत्व को उजागर किया है। बीबी तुम केवल बाधा हो सदा बाधाएं बढ़ाती रहती हो कहकर कानपूर के विद्या शंकर अवस्थी ने अपनी आत्मकथा प्रस्तुत की। कुत्ते ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, कौन आदमी के मुंह लगे कहकर गोविंद भारद्वाज ने बेहतरीन व्यंग्यकथा को प्रस्तुत किया। जोधपुर से जेबा रशीद ने सास बहू के झगड़े में बेचारे पति की करुण कथा पर खूब हंसाया। ड्रिल सी बज रही है तुम्हारी डांट तन मन में कहकर अमन अदाम्य ने एक मिस्त्री की प्रेम गाथा पर हंसी के फव्वारे छोड़े। भरूच गुजरात से कविता मोदी ने राजनितिक कटाक्ष ‘सपना’ , डॉ ब्रिजेश माथुर ने ‘ शायद कोरोना मर रहा है के बहाने और सोनू सिंघल ने नेताजी के पैदल चलने पर पैदा हुई विषम परिस्थितियों पर हास्य फुहारें छोड़ी। ऊना हिमाचल से बलविंदर सिंह ने ‘मोबाइल चालीसा’, जनार्दन शर्मा ने ‘जरा हंस भी लीजिए’, जगदलपुर छत्तीसगढ से अंजलि तिवारी ने ‘हाय ये मंहगाई’, बदायूं से विष्णु असावा ने ‘मिटटी के आम’, मुंबई से नुपुर शांडिल्य ने ‘करम की गति न्यारी’, पूना से शिवशंकर गोयल ने ‘पीहर ससुराल एक जगह’, नागपुर से विना अडवानी ने ‘ओरत की पोल’, सुमन शर्मा ने ‘लोंक डाउन प्रेम’, मधु खंडेलवाल ने ‘कोरोना नाश हो तेरो’, विनीता बाडमेरा ने ‘शादी का लड्डू’, लौकी की सब्जी और करेले की ग्रेवी में पकी हुई कवि की आत्मा को पूनम पांडे ने और डा हिमांशु माथुर ने राजनेतिक हालात को बहुत बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया। उदयपुर से नीलम विजयवर्गीय ने ‘हसीन कलियाँ’, शुभदा भार्गव ने ‘खाली दिमाग’, संदीप पांडे ने ‘बंद का फंद, डॉ महिमा श्रीवास्तव ने ‘जान बची लाखों पाए’, प्रतिभा जोशी ने ‘अतिथि कब आओगे’, डॉ विनीता अशित जैन ने ‘फोटू’, काजल खत्री ने ‘पड़ोस वाली चाची’, डॉ पी के शर्मा ने हंस के तो देख, कविता अग्रवाल ने ‘मन की बात’, डॉ नीलिमा तिग्गा ने ‘हमरा इलेक्शन’, रेखा भाटिया ने’बिंद्नी घणी जाडी’, डॉ के के शर्मा ने पहले वाली बात नहीं, डॉ चेतना उपाध्याय ने ‘कंगाली में आता गीला’ और रिंकी माथुर ने ‘होशियारी पड़ी भारी’ व्यंग्य रचनाएँ प्रस्तुत की ।

उमेश कुमार चौरसिया संयोजक

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