‘‘बाल विवाह पर लटकी हुई है पोक्सो कानून की तलवार !‘‘

प्रशासनिक अधिकारी भी हो सकते हैं जिम्मेदार
दिनांक 22.09.2021 को राजस्थान पत्रिका के अजमेर अंक में छपी खबर ‘‘शैक्षणिक नगरी अजमेर के कई गाँवों में पल-बढ रहे दुल्हा-दुल्हन‘‘ पर संज्ञान लेते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव एवं अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश श्री रामपाल जाट ने अजमेर जिले के पालरा ग्राम के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में विधिक चेतना शिविर का आयोजन किया। उन्होनें बाल विवाह के दुष्परिणामों, बाल विवाह निराकरण, बाल विवाह एक अपराध एवं बाल विवाह के विरूद्ध जागरूकता अभियान के साथ-साथ बालक-बालिकाओं को उनके मूलभूत अधिकार, सामाजिक बुराईयों के दुष्परिणाम, बेटी बचाओ, बेटी पढाओ, सामाजिक व नैतिक मूल्यों की मजबूती, महिला सशक्तिकरण और विधिक प्रावधानों की महत्वता को समझाते हुए यह भी कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र के बालक व बालिकाओं के साथ यौन संबंध बनाना, यौन उत्पीडन के लिए पीछा करना, यौन उत्पीडन के लिए देखना, संपर्क करना, फुसलाना तथा उन सब कार्यो के लिए दूसरे व्यक्ति द्वारा दुष्प्रेरणा देने, लैंगिक अपराधों से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 के अधीन दण्डनीय अपराधों की श्रेणी में आता है। चाहे उक्त कृत्यों के लिए बालक-बालिका की सहमति हो या नहीं। ग्राम में नियुक्त लोकसेवकों पर भी ऐसे कार्यो पर प्रतिबन्ध लगाने की जिम्मेदारी है क्योंकि व्यवस्था बनाये रखना, अपराधों का निवारण या व्यक्ति या संपति के क्षेम पर संभावित प्रभाव डालने वाला कोई विषय जिसमें जिला मजिस्ट्रेट ने उसे निर्देश दिया है कि वह उस विषय पर जानकारी संसूचित करने का ग्राम अधिकारियों का दायित्व है।
इस प्रकार जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिऐ गए निर्देश कि अगर ग्राम में नियुक्त लोकसेवक जानबूझ कर अवज्ञा करता है तो वह धारा 188 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है और ऐसे लोकसेवक को अभियोजन का सामना करना पड सकता है। ऐसी स्थिति में बाल विवाह के रोकथाम के लिए जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिए आदेशों की गा्रम के लोकसेवकों द्वारा अवज्ञा करना न केवल लोगों को बाल विवाह एवं पोक्सो एक्ट के अधीन अपराध करने को प्रोत्साहन देना है बल्कि दण्डनीय अपराध भी है।

सचिव
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण
अजमेर

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